भारत एक कृषि प्रधान देश है. भारतीय कृषि मुख्यत: मानसून आधारित है. वर्तमान में कृषि में सिंचाई के नए-नए तरीके खोजे गए हैं. भारत के पानी के उपयोग का लगभग 80% कृषि क्षेत्र में होता है जो कि मुख्यतः सिंचाई, कीटनाशक और उर्वरक और पशुधन के लिए इस्तेमाल किया जाता है. भविष्य के अनुमानों से पता चलता है कि 2050 तक कुल पानी की मांग बढ़कर 1,447 km3 हो जाएगी.
कृषि में सबसे ज्यादा भूमिगत और सतही जल का उपयोग किया जाता है. चावल और गन्ना जैसी फसलों के उत्पादन में जल का बहुत उपयोग होता है. इनकी खेती में बोरवेल-पंपों का उपयोग होता है. जिसके चलते भूमिगत जलस्तर नीचे गिर रहा है. इसको देखते हुए अब खेती में उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग होने लगा है. हमारे घरों से निकलने वाले अपशिष्ट जल (किचन + बाथरूम) के उपचार करने के बाद उपचारित खेती योग्य जल प्राप्त होता है. इसके अलावा नालों, सीवेज पानी को विभिन्न प्लांटों में उपचारित कर इसका उपयोग खेती में होने लगा है.
उपचारित जल के प्रयोग के फायदे
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उपचारित जल फसलों की सिंचाई के लिहाज से महत्वपूर्ण है, इससे ताजे पानी की बचत की जा सकेगी.
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पानी के स्रोतों में पोषक तत्त्व प्रदूषण को रोका जा सकेगा. सीवेज के पोषण मूल्य का सिंचाई में उपयोग किया जा सकेगा.
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किसानों के लिए भी उपचारित जल अनेक वजहों से फायदेमंद है, यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है जिससे की किसानों को उर्वरक पर निर्भरता कम हो जाती है.
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यह खेत की मिट्टी की उर्वकता भी बढ़ा देता है, जिससे अल्पावधि में फसल की पैदावार में वृद्धि होती है.
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चूंकि यह अपशिष्ट जल रहता है तो इससे किसान की लागत में भी कमी आती है. इस तरह से यह किसान और पर्यावरण दोनों के लिए उपयोगी साबित होता है.
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इसके अलावा जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ेगा, नगरपालिका अपशिष्ट जल की मात्रा भी बढ़ेगी जिससे सिंचाई के लिए एक बड़ा संसाधन बन जाएगा.
अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान द्वारा कृषि के लिए विभिन्न शहरों के नगरपालिका अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग की संभावना का अनुमान लगाया गया था. अपशिष्ट जल लगभग 38,254 MLD है, जिसमें से लगभग 31% का उपचार किया जाता है. इस कुल अपशिष्ट जल से लगभग 11,02,935 हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने की क्षमता है.
चारा फसलों और गेंदे जैसे फूलों को उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग करके उगाया जा रहा है. खेती में अपशिष्ट जल से प्रयोग से कई बातें सामने आई. खेती में अपशिष्ट जल के प्रयोग से मिट्टी के भौतिक और रासायनिक गुणों में बदलाव नहीं आता.
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बल्कि अपशिष्ट जल के प्रयोग से मिट्टी में कुल कार्बन और कुछ प्रमुख रासायनिक गुणों में काफी वृद्धि देखी गई है. इसके अलावा पौधों की उत्पादकता में एक महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई जब पौधों को उपचारित अपशिष्ट जल से सिंचित किया गया था. अगर किसानों को सही उपचारित जल मिल जाए तो सूखे क्षेत्रों में भी सिंचाई की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा.