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Updated on: 15 May, 2024 12:34 PM IST
वर्मीवाश तैयार करने की पूरी विधि, सांकेतिक तस्वीर

भारत एक कृषि प्रधान देश है. जहां की अधिकतर जनसंख्या के आय का स्रोत कृषि है. भारतमें हरित क्रांति सन् 1966-67 में शुरू हुआ जिसके फलस्वरूप रासायनिक उर्वरकों कीटनाशको, खरपतवारनाशी तथा उन्नत किस्म के बीजों का अंधाधुंध प्रयोग कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने के लिए हुआ है, जिसके फलस्वरूप आज के समय में मिट्टी केस्वस्थ्य, उसके जैविक, भौतिक एवं रासायनिक गुणों में काफी ह्रास हुआ है. अर्थात मिट्टी पूर्णतया बीमार होती गयी रसायनों के अधिक प्रयोग से अन्न की गुणवत्ता में गिरावट, खाद्य पदार्थों में इन रसायनों के अवशेष मिलने लगे जिससे खाद्य पदार्थ में जहरीलापन हो गया एवं हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो गया है. ऐसे में उपरोक्त विकट समस्याओं से निदान पाने के लिए रासायनिक उत्पादों का प्रयोग कम करके उनके स्थान पर जैविक उत्पादों जैसे खाद, कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, वर्मीवाश इत्यादि का उपयोग कर मिट्टी की उर्वरता एवं गुणवत्ता तथा मनुष्य के स्वास्थ्य को बेहतर किया जा सकता है. वर्मीवाश एक तरल पदार्थ है जो केंचुआ द्वारा स्रावित हार्मोन, पोषक तत्वों एवं एंजाइम युक्त होता है जिसमें अधिकतर रोग रोधक गुण पाए जाते है. दूसरे शब्दों में यह एक भूरे रंग का तरल जैव उर्वरक है जिसमें ऑक्सिन एवं साइटोकाइनिन हार्मोन उपस्थित होते हैं. और विभिन्न एंजाइम जैसे प्रोटीएज, एमाइलेज, यूरिएज एवं फॉस्फेट आदि पाए जाते हैं. वर्मीवाश के सन्दर्भ में माइक्रोबायोलॉजिकल अध्ययन द्वारा ज्ञात हुआ है कि वर्मीवाश में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया जैसे- एजोटोबैक्टर स्पीशीज, एग्रोबैक्टीरियम स्पीशीज एवं फास्फोरस घोलक बैक्टीरिया भी पाए जाते हैं.

वर्मीवाश के उपयोग से न केवल उत्तम गुणवत्ता युक्त उपज प्राप्त कर सकते हैं बल्कि इसे प्राकृतिक जैव कीटनाशक के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है. वर्मीवाश में घुलनशील नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश मुख्य पोषक तत्व होते हैं. इसके अलावा इसमें हार्मोन, अमीनो एसिड, विटामिन, एंजाइम, और कई उपयोगी सूक्ष्म जीव भी पाये जाते हैं. इसके प्रयोग से बीस से पच्चीस प्रतिशत तक उत्पादन में वृद्धि हो सकती है.

वर्मीवाश तैयार करने की विधि/ Method to Prepare Vermiwash

आवश्यकतानुसार वर्मीवाश की इकाई ड्रम, बाल्टी, या टंकी लें. सर्वप्रथम ड्रम की सबसे निचली सतह पर 5-7 सेंटीमीटर ईंट या पत्थर की गिट्टी अच्छी प्रकार से बिछा दिया जाता है तत्पश्यात इसके ऊपर 8 -10 सेंटीमीटर मोरंग या बालू बिछा देनी चाहिये अब इसके ऊपर 12-15 सेंटीमीटर दोमट मिट्टी बिछाएं अब इसमें एपिजिक केचुए की किस्म डाल दिया जाता है इनके ऊपर 15-20 दिन पुराना गोबर का ढेर 30-40 सेंटीमीटर बिछा दें.गोबर के ऊपर 5-10 सेंटीमीटर मोटी पुआल तथा सुखी पत्तियों की तरह बना दें.प्रत्येक तह को बनाने के बाद पानी डालें और नल की टोंटी स्प्रे करके खुला रखें मोटी पुआल व सुखी पत्तियों वाली सतह को 15-20 दिन तक शाम को पानी से गीला करें. इस प्रक्रिया में नल की टोंटी अवश्य खुली रखें.16-20 दिन के बाद इकाई में वर्मीवाश बनना शुरू हो जायेगा और इसके पार्श्व में टोटी लगा दे प्रतिदिन प्रातः हमें 3 से 4 ली० वर्मीवाश तैयार प्राप्त हो जायेगा.

वर्मीवाश तैयार करने में सावधानियां

वर्मीवाश तैयार करने हेतु कभी भी ताजा गोबर का उपयोग नहीं करना चाहिए, इससे केंचुए मर जाते हैं. वर्मीवाश इकाई हमेशा छायादार स्थान पर होना चाहिए जिससे केंचुए धूप से बच सकें. केंचुओं को साँप, मेंढ़क एवं छिपकली से बचाव का उचित प्रबन्ध करना चाहिए. स्वच्छ पानी का प्रयोग 20 दिनों तक नमी बनाए रखने हेतु करना चाहिए. वर्मीवाश इकाई को उचित स्टैंड पर रखना चाहिए जिससे वर्मीवाश एकत्र करने में आसानी हो. केंचुओं की उचित प्रजातियों का उपयोग करना चाहिए जैसे- आइसीनिया फोटिडा.इन सभी बातों का विशेष ध्यान देना चाहिये .

वर्मीवाश का प्रयोग/Use of Vermiwash

  • एक लीटर वर्मीवाश को 7-10 लीटर पानी में मिलाकर पत्तियों पर शाम के समय छिड़काव करते हैं. छिड़काव करते समय ध्यान रखना चाहिए की हवा का वेग सामान्य हो .

  • एक लीटर वर्मीवाश को एक लीटर गोमूत्र में मिलाकर उसमें 10 लीटर पानी मिलाया जाता है फिर इसे रातभर के लिये रखकर ऐसे 50-60 लीटर वर्मीवाश का छिड़काव एक हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों पर करने से विभिन्न बीमारियों के रोकथाम की जा सकता है .

  • ग्रीष्मकालीन सब्जियों में शीघ्र पुष्पन एवं फलन के लिये पर्णीय छिड़काव किया जाता है जो एक हार्मोन्स की तरह कार्य करती है जिससे उनके उत्पादन में वृद्धि होती है.

वर्मीवाश के लाभ/ Benefits of Vermiwash

  • वर्मीवाश के प्रयोग से पौधे की अच्छी वृद्धिएवं विकास होती है जिससे उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है .

  • वर्मीवाश के प्रयोग करने से जल की लागत में कमी आती है तथा अच्छी खेती करना संभव हो जाता है .

  • वर्मीवाश के प्रयोग से पर्यावरण स्वच्छ हो जाता है जिससे कि वायुमंडल की दशाओं में सुधार हो जाता है जो कि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है.

  • वर्मीवाश के उपयोग से मृदा में कार्य करने वाली सूक्ष्म जीवो की क्रियाशीलता में बढ़ोत्तरी होती है जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती हैजिससे लागत कम लगती है.

  • मृदा के भौतिक, रासायनिक, एवं जैविक गुणों में बढ़ोत्तरी होने साथ साथ मृदा की संरंचना में भी सुधार होता है.

  • वर्मीवश के उपयोग से पौध रक्षक दवाइयां कम लगती हैं. जिससे उत्पादन लागत में कमी की जा सकती है .

  • मृदा की धारणक्षमता में बढ़ोत्तरी हैजिससे मृदा में नमी लम्बे समय तक बना रहता है.

  • इससे पैदा किया गया उत्पाद स्वादिष्ट एवं गुणवत्ता युक्त होता है.

  • इसके उपयोग से ऊर्जा की बचत होती है.

    लेखक: राकेश कुमार (शोध छात्र-सस्य विज्ञान विभाग) दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर
    डॉ. संजीव कुमार यादव आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधोगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज,अयोध्या
    प्रकृति चौहान (शोध छात्र–बीज विज्ञान विभाग) आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या
    सौरभ सिंह (शोध छात्र–फसल कार्यकी विभाग) आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या
English Summary: Use of Vermiwash in the Field of Agriculture Vermiwash preparation process
Published on: 15 May 2024, 12:39 PM IST

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