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Updated on: 7 January, 2020 1:59 PM IST

कृषि क्षेत्र में समय-समय पर बदलाव होते रहते हैं. पुराने दौर की बात करें, तो किसानों को खेती करने में कड़ी मेहनत और अधिक समय लगाना पड़ता था. उस वक्त कृषि संसाधनों की कमी थी, जिससे किसानों को बहुत मुश्किल होती थी, लेकिन आधुनिक समय में ऐसा बिल्कुल नहीं है. आज कृषि के क्षेत्र में इतना विकास हो गया है कि किसान आराम से खेती कर सकता है, क्योंकि आज फसलों की सिंचाई करने के तरीके में काफी बदलाव हो चुका है. जिससे सिंचाई व्यवस्था काफी आसान हो गई है. आज के समय में किसान सोलर पंप, ट्यूबवेल से सिंचाई करते हैं, लेकिन फिर भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां अभी भी सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था नहीं है. इसी कारण किसानों को फसलों की सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर होना पड़ता है. किसान कई तरीके से फसलों की सिंचाई कर सकता है. आज हम अपने इस लेख में इसकी पूरी जानकारी देने वाले हैं.

सिंचाई के प्रकार

  • टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली

  • फव्वारा सिंचाई

  • सतही सिंचाई प्रणारेनगन से सिंचाई

  • ढेकुली से सिंचाई

  • नहर से सिंचाई

  • कुएं एवं नलकूप से सिंचाई

  • तालाब से सिंचाई

  • रहट से सिंचाई

  • बेड़ी से सिंचाई

  • सोलर पंप से सिंचाई

टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली – यह सिंचाई करने की एक उन्नत विधि मानी जाती है, क्योंकि इसमें पानी की बचत होती है. यह सिंचाई मिट्टी, खेत के ढाल, जल के स्त्रोत के मुताबिक की जाती है. इस विधि में पानी को पौधों के मूलक्षेत्र के आस-पास लगाया जाता है. जिससे पौधे को ज़रूरत के हिसाब से पानी मिलता है. इसमें उर्वरक और जल, दोनों की बचत होती है.

फव्वारा सिंचाई – यह एक ऐसी पद्धति है, जिसमें हवा में पानी का छिड़काव होता है और पानी भूमि की सतह पर कृत्रिम वर्षा के रूप में गिरने लगता है. इसमें पानी का दबाव पंप से भी प्राप्त किया जा सकता है. इस सिंचाई से जमीन और हवा का सबसे सही अनुपात बना रहता है, साथ ही बीजों में अंकुर भी जल्दी फूटते हैं.

सतही सिंचाई प्रणाली - इसमें नहरों और नालियों से खेत में पानी लगाया जाता है. ध्यान दें कि पहले खेत को समतल बना लें. इसके बाद सिंचाई करें. इससे पानी की बचत होती है.

रेनगन से सिंचाई -  इस विधि में लगभग 20 से 60 मी. की दूरी तक प्राकृतिक बरसात की तरह सिंचाई की जाती है. खास बात है यह कि रेनगन सिंचाई में अधिक क्षेत्रफल को कम पानी से सींचा जा सकता है. यह दलहन फसलों और सब्जी के लिए बहुत उपयोगी है.

ढेकुली से सिंचाई - यह कुओं से पानी निकालने का सबसे आसान साधन है. इस विधि में Y के आकार के पतले वृक्ष के तने को कुएं के पास गाड़ दिया जाता है, फिर एक लम्बे बांस या फिर लकड़ी को संतुलित करके एक सिरे पर मिट्टी का लोंदा छापा जाता है. इसके बाद एक दूसरे सिरे पर रस्सी को बांधकर कुएं से पानी निकालने के लिए एक बर्तन को लटकाकर कुएं से पानी निकाला जाता है.

नहर से सिंचाई - देश में लगभग 40 प्रतिशत कृषि भूमि की सिंचाई नहर से की जाती है. देश की सबसे ज्यादा नहरों का विकास उत्तर के विशाल मैदानी और तटवर्ती डेल्टा के क्षेत्रों में होता है क्योंकि नहर का निर्माण समतल भूमि और जल की निरन्तर आपूर्ति पर निर्भर होता है.

कुएं और नलकूप से सिंचाई - जहां चिकनी बलुई मिट्टी पाई जाती है, वहां कुओं का निर्माण ज्यादातर होता है. कृषि में तीन प्रकार के कुएं का सिंचाई में उपयोग किया जाता है.

1. कच्चे कुएं

2. पक्के कुएं

3. नलकूप

तालाब से सिंचाई - फसलों की सिंचाई के लिए प्राकृतिक और कृत्रिम, दोनों प्रकार के तालाब का उपयोग होता है.

रहट से सिंचाई - कई क्षेत्रों में जब सिंचाई के संसाधन नहीं उपलब्ध होते थे, तो किसान सिंचाई करने के लिए कुएं को खोदकर उसमें एक लोहे की बनी रेहट नामक मशीन लगा देते थे, लेकिन अब कुएं की संख्या में कमी आ रही है, इसलिए किसान रेहट से दूर होता जा रहा है. फिलहाल आज भी कहीं-कहीं यह मशीन देखने को मिल जाती है.

सोलर पंप से सिंचाई – यह सिंचाई करने का एक नया तरीका है. इसमें बिजली और ईंधन की ज़रूरत नहीं पड़ती है. यह एक मोटर के रूप में आता है, जो ज़मीन से पानी खींचता है. इसको चलाने के लिए सोलर पैनल होते हैं, जो सूरज की किरणों से ऊर्जा उत्पन्न करते हैं.

बेड़ी से सिंचाई – जब तालाब और झील के पानी से सिंचाई की जाती थी, तब बेड़ी की ज़रूरत पड़ती थी. इसमें बांस और लकड़ी से एक पर्तन को बनाकर रस्सी से बांधते हैं. इसके बाद तालाब से पानी को खींचकर खेत में बनी नाली में डाल देते हैं.

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English Summary: types and method of irrigation
Published on: 07 January 2020, 02:05 PM IST

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