Cultivation of Turnip: भारतीय किसानों के द्वारा शलजम की खेती को करने पर सबसे अधिक जोर दिया जा रहा है. देखा जाए तो देशभर में शलजम की खेती का चलन बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है. इस खेती को लेकर भारत के ज्यादातर किसान जागरूक हो रहे हैं. इसी के चलते किसान भाई अपने खेत में पारंपरिक खेती के साथ-साथ अन्य नई फसलों को भी अपना रहे हैं और उसे उगाकर बाजार से लाभ प्राप्त कर रहे हैं. इन्हीं फसलों में शलजम की खेती भी है. आइए सबसे पहले शलजम के फायदे के बारे में जानते हैं.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि शलजम के सेवन से इम्यून सिस्टम मजबूत होता है. कैंसर और ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है. साथ ही हृदय रोग में भी फायदेमंद है, शलजम खाने से वजन कम होता है, इसके सेवन से फेफड़े भी मजबूत होते हैं. यह आंतों के लिए भी फायदेमंद है. मिली जानकारी के मुताबिक, शलजम लिवर और किडनी के लिए भी फायदेमंद है. इसके साथ ही मधुमेह के रोगियों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है. कुछ लोग तो इसे सलाद में रूप में भी खाते हैं. इसके कई गुणों के कारण इसकी मांग अधिक है. ऐसे में किसानों को शलजम की खेती से लाखों का मुनाफा होता है, तो आइए इस लेख में आज हम शलजम की फसल के बारे में विस्तार से जानते हैं...
शलजम की फसल से कमाई
शलजम की फसल 40 से 60 दिन में तैयार हो जाती है. पूसा चंद्रिका शलजम और स्नोवल शलजम 55 से 60 दिनों में तैयार हो जाते हैं जबकि पूसा स्वीट शलजम सबसे कम समय 45 दिनों में तैयार हो जाते हैं. शलजम का उत्पादन 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है. जानकारी के लिए बता दें कि बाजार में शलजम 2500 रुपये प्रति क्विंटल तक बिकता है. ऐसे में अगर हिसाब लगाया जाए तो किसान भाई इस फसल से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
मिट्टी एवं जलवायु
शलजम की खेती के लिए सबसे पहले एक अच्छी जमीन का चयन करें. इसके लिए रेतीली या दोमट तथा बलुई मिट्टी का खेत आवश्यक है. शलजम की जड़ें भूमिगत होती हैं, इसलिए आपको तापमान का विशेष ध्यान रखना होगा. जोकि 12 से 30 डिग्री के बीच होना चाहिए. इसका उपयोग लो कास्ट में किया जा सकता है.
शलजम की खेती की विधि
किसी भी तरह की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेती के लिए मिट्टी बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए नई फसल के लिए पिछली फसल के अवशेषों को हटाने के लिए खेत की जुताई करें, फिर खेत में खाद डालें और पानी डालकर अच्छी तरह जुताई करें. मिट्टी के भुरभुरा हो जाने पर उसे समतल कर लें.
इस प्रकार शलजम की बुवाई करें
शलजम को एक कतार में बोना चाहिए. इसके लिए बीजों को तैयार कुंडों में 20 से 25 सेमी की दूरी पर बोना चाहिए. बुआई के समय ध्यान रखें कि पौधों के बीच की दूरी 8 से 10 सेमी होनी चाहिए. जब शलजम के पौधों में 3 पत्तियां आ जाएं, तो मृत पौधों को हटा दें और उनकी दूरी 10 सेमी तक कम कर दें.
शलजम फसल की सिंचाई
शलजम की खेती में 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. शलजम में हल्का पानी अवश्य डालें. ताकि यह सही तरीके से विकसित हो सके.