लहसुन भारतीयों के खाने के जायके को और बढ़ाता है या कहें कि लहसुन के तड़के के बिना खाने का स्वाद अधूरा है. लहसुन का इस्तेमाल खाने के अवाला अचार, चटनी व अन्य व्यंजनों में किया जाता है. लहसुन कई बीमारियों से लड़ने में भी कारगर है. लहसुन के विकसित होने से पहले उसके हरे मुलायम पत्तों का सब्जी बनाने में प्रयोग किया जाता है. देखा जाए तो देश में लहसुन की मांग भी बहुत अधिक है. भारत में लहसुन का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है. ऐसे में किसानों को लहसुन की उन उन्नत किस्मों की बुवाई करनी चाहिए जिनकी पैदावार अच्छी हो. आज हम किसानों को इस लेख के माध्यम से लहसुन की उन्नत किस्मों की जानकारी देने जा रहे हैं.
रबी सीजन में इन राज्यों में होती है लहसुन की खेती
लहुसन की खेती जलवायु अनुसार रबी व खरीफ सीजन दोनों में की जाती है. रबी सीजन में छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सितंबर से नवंबर के दौरान लहसुन की खेती होती है. तमिलनाडु, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में अक्टूबर से नवंबर के बीच. उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तराखंड में अक्टूबर से नवंबर के बीच लहसुन की खेती होती है.
लहसुन की उन्नत किस्में
जी.1 (G1)
लहसुन की जी.1 किस्म राष्ट्रीय उद्यान शोध एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित की गई है. यह दिखने में आम सफेद लहसुन की तरह ही है. इसमें प्रति गांठ में 15 से 20 कलियां आती हैं. बुवाई के 160 से 180 दिनों में यह फसल तैयार हो जाती है. जी 1 लहसुन की पैदावार क्षमता प्रति एकड़ 40 -44 क्विंटल है.
एच. जी 17 ( HG 17)
एच. जी 17 लहसुन की यह खास किस्म हरियाणा राज्य के लिए उपयोगी मानी गई है. एच. जी 17 किस्म के एक लहसुन का वजन 25-30 ग्राम होता है. इसके प्रति गांठ में 28 से 32 कलियां आती हैं. लहसुन की एच. जी 17 किस्म वुवाई के 160-170 दिनों में तैयार हो जाती है. एच. जी 17 लहसुन की उत्पादन क्षमता 50 क्विंटल प्रति एकड़ है.
भीमा ओंकार (Bhima Onkar)
भीमा ओंकार का लहसुन मध्यम आकार में सफेद व ठोस होता है. लहसुन की यह खास किस्म बुवाई के 120 से 135 दिनों में तैयार हो जाती है. भीमा ओंकार की उत्पादन क्षमता 80 से 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. जलवायु के अनुसार भीमा ओंकार दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान व गुजरात के लिए उपयुक्त मानी गई है.
भीमा पर्पल (Bhima Purple)
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है पर्पल, जिसे हिंदी में बैंगनी रंग कहा जाता है. भीमा पर्पल किस्म के लहसुन दिखने में बैंगनी रंग के होते हैं. लहसुन की यह खास किस्म वुवाई के 120 से 125 दिनों में तैयार हो जाती है. इसकी उत्पादन क्षमता 60 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. भीमा पर्पल उत्तर प्रदेश , बिहार, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश व महाराष्ट्र की भूमि के लिए उपयुक्त माना गया है.
जी-50 (G- 50)
जी- 50 लहसुन की गांठें ठोस होती है. दिखने में सफेद तथा गूदा क्रीम रंग का होता है. झुलसा रोग तथा बैंगनी धब्बा वाले रोग के प्रति सहनशील है. बता दें कि जी-50 लहसुन की किस्म बुवाई के 170 दिनों में तैयार हो जाती है. खास बाद यह कि इसकी उत्पादन क्षमता 150 से 160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
जी-282 (G-282)
जी-282 यमुना सफेद-3 की किस्म है. इस किस्म के लहसुन की प्रति गांठ में 15 से 18 कलियां आती हैं. जी -282 बुवाई के 140 से 150 दिनों में तैयार हो जाती है, तो वहीं इसकी उपज क्षमता 150-175 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. खास बात यह कि इस किस्म को निर्यात के लिए भी सर्वोत्तम माना गया है.
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जी-323 (G-323)
जी-323 लहसुन की किस्म की गांठें दिखने में चांदी की तरह सफेद होती हैं तथा आकार में 3-4 से.मी बड़ी होती हैं. जी-323 लहसुन की हर एक गांठ में 20 से 25 कलियां पाई जाती हैं. यह किस्म बुवाई के 165 से 170 दिनों में तैयार हो जाती है. जी-323 लहसुन की उत्पादन क्षमता 160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.