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Updated on: 16 October, 2020 11:49 AM IST
Wheat

देश में गेहूं के उत्पादन को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक और किसान लगातार प्रयास कर रहे हैं. कृषि वैज्ञानिकों द्वारा लगातार नई किस्में ईजात की जा रही है. इसके बावजूद हम अंतर्रराष्ट्रीय बाजार की पूर्ति को पूरी नहीं कर पा रहे हैं. इस साल 25 अक्टूबर से गेहूं की बुवाई शुरू हो जाएगी. आज हम आपको गेहूं उन 3 किस्मों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी इस साल जबरदस्त मांग है.

इन 3 किस्मों की है मांग

करनाल के भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अनुज कुमार का कहना है कि गेहूं की तीन किस्मों की किसानों में जबरदस्त मांग है. ये किस्में हैं-करन वंदना, करन नरेन्द्र यानि डीबीडब्लयू 222 और पूसा यशस्वी (एचडी 336). गेहूं की ये तीनों किस्म अगेती किस्म है और प्रतिहेक्टेयर 80 से 82 क्विंटल का उत्पादन देने में सक्षम है. तो आइये जानते हैं इन किस्मों के बारे में विस्तार से -

करन वंदना (Karan Vandana)

इस किस्म को डीबीडब्ल्यू-187 (DBW-187 ) के नाम से जाना जाता है. इसमें पीला रतुआ और ब्लास्ट जैसी बीमारियां लगने की संभावना बेहद कम रहती है. इस किस्म को करनाल के गेहूं एवं जौ अनुसंधान केन्द्र ने विकसित की थी. करन वंदना उत्तर-पूर्वी भारत के गंगा तटीय क्षेत्र के अनुकूल है. इसमें कई पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, लौहा, जस्ता और खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि इस किस्म में प्रोटीन तत्व 12 प्रतिशत तक होता है जबकि अन्य किस्मों में प्रोटीन की मात्रा 10 से 12 प्रतिशत तक होती है. बुवाई के 77 दिनों बाद बालियां निकल आती है, वहीं 120 दिनों यह पककर तैयार हो जाती है. गेहूं की इस किस्म में 5-6 सिंचाई की जरूरत पड़ती है. इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 75 क्विंटल की पैदावार ली जा सकती है. वहीं अन्य किस्मों से प्रति हेक्टेयर 65 क्विंटल की पैदावार होती है. 

करन नरेन्द्र (Karan Narendra)

इस किस्म को डीबीडब्ल्यू 222 (DBW-222 ) के नाम से जाना जाता है. इसे करनाल के गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान ने विकसित किया है. यह किस्म किसानों के बीच 2019 में ही आई है. 25 अक्टूबर से 25 नवंबर के बीच इसकी बुवाई सही रहती है. इसकी रोटी अच्छी गुणवत्ता की बनती है. जहां दूसरी किस्मों में 5 से 6 सिंचाई की जरूरत पड़ती है वहीं इसमें सिर्फ 4 सिंचाई करना पड़ती है. इस तरह इस किस्म की खेती से 20 प्रतिशत पानी की बचत होती है. यह किस्म 143 दिनों में पक जाती है. वहीं प्रति हेक्टेयर इससे 65.1 से 82.1 क्विंटल की पैदावार होती है.

पूसा यशस्वी (Pusa yashasvi)

इसे एचडी 3226 (HD -3226 ) के नाम से जाना जाता है. गेहूं कि यह किस्म उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान के उदयपुर और कोटा संभाग, उत्तर प्रदेश के झांसी संभाग को छोड़कर, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड के लिए अनुकूल है. यह करनाल बंट, फफूंदी और गलन रोग प्रतिरोधक होती है. इसमें प्रोटीन 12.8 प्रतिशत तक होता है. पहली सिंचाई बुवाई के 21 दिन बाद की जाती है. इसकी बुवाई 5 नवंबर से 25 नवंबर तक उचित मानी जाती है. बुवाई के लिए प्रतिहेक्टेयर 100 किलो बीज की जरूरत पड़ती है. वहीं इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 57.5 से 79. 60 क्विंटल की उपज ली जा सकती है.

कृषि वैज्ञानिक की सलाह

डॉ अनुज का कहना है कि ये तीनों गेहूं की उन्नत किस्म है और इनसे 80 क्विंटल प्रति हेक्टयेर का उत्पादन लिया जा सकता है. देश के कई किसानों इतना उत्पादन लिया है. लेकिन इसके लिए इन किस्मों की बुवाई समय पर करें साथ ही नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की पर्याप्त मात्रा खेत में डालें. 

कहां से ले बीज

इन तीनों किस्मों को बीज गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल से लिया जा सकता है.

English Summary: top 3 wheat variety in india
Published on: 16 October 2020, 11:54 AM IST

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