तिलहन फसलों में अलसी दूसरी महत्वपूर्ण फसल है. इसके तने से लिनेन नामक बहुमूल्य रेशा प्राप्त होता है, तो वहीं बीजों से तेल प्राप्त होता है. आयुर्वेद में अलसी को दैनिक भोजन माना जाता है. अगर किसान भाई अलसी की उन्नत खेती (Alsi Ki Kheti) करना चाहते हैं, तो जरूरी है कि उन्हें अलसी की उन्नत किस्मों की जानकारी हो, ताकि इसकी फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सके. किसानों के लिए हमने इस लेख में आलसी की 10 उन्नत किस्मों की विशेषताओं और पैदावार का उल्लेख किया है, इसलिए हमारे इस लेख के साथ अंत तक बने रहिए.
अलसी की 10 उन्नत किस्में (15 Improved Varieties of Alsi)
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टी 397
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जवाहर 23
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जवाहर 552
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एल सी के 8528 (शिखा
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एल एम एच- 62 (पदमिनी
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आर एल- 933 (मीरा
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प्रताप अलसी 1
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प्रताप अलसी 2
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जीवन
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गौरव
टी 397 (T 397)
इस किस्म की ऊंचाई करीब 60 से 75 सेंटीमीटर होती है और इसकी पत्तियों का रंग हरा एवं फूल नीला होते हैं. इसके केपस्यूल मध्यम मोटाई वाले गोल होते हैं. इसके 1000 दानों का वजन करीब 7.5 से 9 ग्राम होता है, तो वहीं दानों में तेल की मात्रा करीब 44 प्रतिशत तक होती है. यह उपयुक्त सिंचित एवं असिंचित परिस्थितियों के लिए उपयुक्त मानी गई है. इससे प्रति हेक्टेयर करीब 10 से 14 क्विंटल तक उपज प्राप्त हो सकती है.
जवाहर 23(Jawahar 23)
इस किस्म के पौधे करीब 45 से 60 सेंटीमीटर ऊंचे और सीधे होते हैं. इनकी शाखाएँ मध्य भाग से ऊपर पीलापन लिए होती हैं. इसके फूलों का रंग सफेद होता है. इसके 1000 दानों का वजन 7 से 8 ग्राम होता है. इसके अलावा तेल की मात्रा करीब 43 प्रतिशत होती है. यह रोली, उखटा एवं गिरने के प्रति अवरोधी होती है. अलसी की यह किस्म करीब प्रति हेक्टेयर 10 से 14 क्विंटल तक उपज देने की क्षमता रखती है.=
एल सी के 8528 (शिखा) (LCK8528 (Shikha)
अलसी की यह किस्म दोहरे उपयोग वाली है. इससे करीब 14 से 15 क्विंटल बीज प्राप्त हो सकता है, तो वहीं 10 से 11 क्विंटल तक रेशा भी मिल सकता है.
एल एम एच- 62 (पदमिनी) (LMH- 62 (Padmini)
अलसी की इस किस्म में करीब 42 से 45 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है. यह छाछ्या व उकठा रोगी की प्रतिरोधी है. यह किस्म करीब 120 से 125 दिन में तैयार होकर प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल तक उपज दे सकती है.
आर एल- 933 (मीरा) (RL-933 (Meera)
अलसी की इस किस्म के फूलों का रंग नीला होता है, साथ ही यह छाछ्या, उखटा रोग एवं रोली रोग की प्रतिरोधी हैं. इस किस्म दाने चमकीले भूरे होते हैं. यह किस्म करीब 130 दिन में पककर प्रति हेक्टर करीब 16 क्विंटल तक उपज दे सकती है. इसके तेल की मात्रा करीब 42 प्रतिशत है.
प्रताप अलसी 1 (Pratap Alsi 1)
सफेद फूलों वाली अलसी की यह किस्म राजस्थान के सिंचित क्षेत्र के लिए अनुमोदित की गई है. यह रोली, कलिका मक्खी, झुलसा एवं छाछया रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी है. यह किस्म करीब 130 से 135 दिन में पककर प्रति हेक्टर करीब 20 क्विंटल तक उपज दे सकती है. इस किस्म के दाने चमकीले भूरे रंग के होते हैं.
गौरव (Gaurav)
यह भी द्वि-उद्देश्य यानि दाना व रेशा वाली उन्नत किस्म है, जो कि करीब 135 दिन में पककर तैयार होती है. इससे प्रति हेक्टेयर औसतन 11 क्विंटल बीज और 9 क्विंटल से अधिक रेशा प्राप्त हो सकता है.
जवाहर 552 (Jawahar 552)
इस किस्म के बीज में करीब 44 प्रतिशत तेल पाया जाता है. यह असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जाती है. अलसी की यह किस्म करीब 115 से 120 दिन में पककर प्रति हेक्टर 9 से 10 क्विंटल उपज देने की क्षमता रखती है.
जीवन (Jiwan)
अलसी की यह किस्म करीब 175 दिन में तैयार होती है, जिससे प्रति हेक्टेयर करीब 11 क्विंटल बीज और 11.00 क्विंटल रेशा प्राप्त हो सकता है. यह द्वि-उद्देश्य (दाना व रेशा) वाली उन्नत किस्म मानी जाती है.
प्रताप अलसी 2 (Pratap Alsi 2)
अलसी की यह किस्म सिंचित क्षेत्रों के लिए बेहद उपयुक्त मानी गई है. इस किस्म के फूल नीले होते हैं, तो वहीं दाना मोटा चमकीला और भूरे रंग का होता है. इसके तेल की मात्रा करीब 42 प्रतिशत पाई जाती है. अलसी की यह किस्म करीब 128 से 135 दिन में पककर प्रति हेक्टर 20 से 22 क्विंटल उपज दे सकती है. इस किस्म की खासियत है कि यह कलिका मक्खी, झुलसा, उखटा, छाछ्या और रोली रोग के प्रति मध्यम अवरोधी है.