Titar Farming: किसानों के लिए है बेहद फायदेमंद तीतर पालन, कम लागत में होगी मोटी कमाई ग्रीष्मकालीन फसलों का रकबा बढ़ा, 7.5% अधिक हुई बुवाई, बंपर उत्पादन होने का अनुमान Rural Business Idea: गांव में रहकर शुरू करें कम बजट के व्यवसाय, होगी हर महीने लाखों की कमाई आम को लग गई है लू, तो अपनाएं ये उपाय, मिलेंगे बढ़िया ताजा आम एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! Guar Varieties: किसानों की पहली पसंद बनीं ग्वार की ये 3 किस्में, उपज जानकर आप हो जाएंगे हैरान!
Updated on: 26 June, 2019 10:17 AM IST

अगस्त माह शुरू होते ही बरसात का मौसम शुरू हो जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल वर्षा का 90 प्रतिशत पानी बेकार जाता है. यदि इस पानी का संरक्षण किया जाए तो हमारे देश में जो सिंचाई के लिए पानी की कमी होती है उसको पूरा किया जा सकता है. देश में लगातार जलस्तर नीचे जा रहा है. इसका मुख्य कारण पानी का दोहन है. यदि बरसात के पानी का दोहन रोक दिया जाए और उसका संरक्षण किया जाए, तो इससे भविष्य में होने वाली जल की समस्या का समाधान किया जा सकता है. सरकार को इसके लिए सख्त कदम उठाने की जरुरत है. हालांकि देश के कुछ क्षेत्रों में वर्षा ऋतु के जल को संचित करने के लिए तालाब या कुँए बनाए जाते हैं.

देश के 3290 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगभग 63 प्रतिशत अभी भी खेती वर्षा पर आधारित है. जल सम्बन्धित इन विषम परिस्थितियों में आयवर्धक टिकाऊ एवं संवृद्ध खेती तभी सम्भव होगी जब हम संरक्षित कृषि तकनीक को बढ़ावा दें. यदि देखा जाए तो खेतों में सिंचाई के वक्त सबसे ज्यादा पानी बर्बाद होता है. यह आने वाले समय में एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में सामने आएगा. पानी के दोहन होने के बहुत से कारण है. जिनमें -

औसत वर्षा में गिरावट आना.

प्रति व्यक्ति जल खपत में वृद्धि.

भू-जल स्तर में निरन्तर गिरावट आना.

जल का आवश्यकता से अधिक दोहन.

जनसंख्या में वृद्धि.

लोगों में जागरुकता का अभाव.

खारेपन की समस्या

खेतों बहता अतिरिक्त पानी

कृषि सिंचाई में सही तकनीक का प्रयोग करना. 

यदि समय रहते जल संरक्षण न किया गया तो एक दिन ऐसा आएगा कि इस संसार को खाने-पीने के भी लाले पड़ जाएंगे. हालांकि बहुत सी संस्थाए राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर जल संरक्षण के लिए काम कर रही हैं. जल को संरक्षित करने के लिए पुराने समय से ही कई प्रकार कि विधियों का प्रयोग किया जा रहा है. लेकिन जैसे-जैसे समय बदल रहा है वैसे ही तकनीकों में बदलाव हो रहा है आज हमारे पास जल संरक्षण के लिए बहुत से विकल्प मौजूद है. जिनको इस्तेमाल कर हम जल और पर्यावरण दोनों को बचा सकते हैं.

जल संरक्षण की विधियां 

सतह जल संग्रह सिस्टम

सतह जल वह पानी होता है जो वर्षा के बाद ज़मीन पर गिर कर धरती के निचले भागों में बहकर जाने लगता है. गंदी अस्वस्थ नालियों में जाने से पहले सतह जल को रोकने के तरीके को सतह जल संग्रह कहा जाता है. बड़े-बड़े ड्रेनेज पाइप के माध्यम से वर्षा जल को कुआं,नदी, ज़क तालाबों में जमा करके रखा जाता है जो बाद में पानी की कमी को दूर करता है.

छत प्रणाली

इस तरीके में आप छत पर गिरने वाले बारिश के पानी को संचय करके रख सकते हैं. ऐसे में ऊंचाई पर खुले टंकियों का उपयोग किया जाता है जिनमें वर्षा के पानी को संग्रहित करके नलों के माध्यम से घरों तक पहुंचाया जाता है. यह पानी स्वच्छ होता है जो थोड़ा बहुत ब्लीचिंग पाउडर मिलाने के बाद पूर्ण तरीके से उपयोग में लाया जा सकता है.

बांध बनाकर 

बड़े - बड़े बांध के माध्यम से वर्षा के पानी को बहुत ही बड़े पैमाने में रोका जाता है जिन्हें गर्मी के महीनों में या पानी की कमी होने पर कृषि, बिजली उत्पादन और नालियों के माध्यम से घरेलू उपयोग में भी इस्तेमाल में लाया जाता है. जल संरक्षण के मामले में बांध बहुत उपयोगी साबित हुए हैं इसलिए भारत में कई बांधों का निर्माण किया गया है और साथ ही नए बांध बनाए भी जा रहे हैं.

भूमिगत टैंक

यह भी एक बेहतरीन तरीका है जिसके माध्यम से हम भूमि के अंदर पानी को संरक्षित रख सकते हैं. इस प्रक्रिया में वर्षा जल को एक भूमिगत गड्ढे में भेज दिया जाता है जिससे भूमिगत जल की मात्रा बढ़ जाती है. साधारण रूप से भूमि के ऊपर ही भाग पर बहने वाला जल सूर्य के ताप से भाप बन जाता है और हम उसे उपयोग में भी नहीं ला पाते है परंतु इस तरीके में हम ज्यादा से ज्यादा पानी को मिट्टी के अंदर बचा कर रख पाते हैं. यह तरीका बहुत ही मददगार साबित हुआ है क्योंकि मिट्टी के अंदर का पानी आसानी से नहीं सूखता है और लंबे समय तक पंप के माध्यम से हम उसको उपयोग में ला सकते हैं.

जल संग्रह जलाशय

यह साधारण प्रक्रिया है जिसमें बारिश के पानी को तालाबों और छोटे पानी के स्रोतों में जमा किया जाता है. इस तरीके में जमा किए हुए जल को ज्यादातर कृषि के कार्यों में लगाया जाता है, क्योंकि यह जल दूषित होता है.

टपक सिंचाई विधि द्वारा खेत की सिंचाई

देश के अधिकतर हिस्सों में सिंचाई अभी सीधे सरफेस तरीके से करते हैं. जिसमें पानी एक नाली के जरिए सीधे खेत में आता है. इससे बहुत पानी बर्बाद होता है. यदि हम खेतों कि सिंचाई टपक विधि से करने तो इससे 70 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है. इसलिए सरकार भी टपक सिंचाई विधि द्वारा खेतों कि सिंचाई करने पर जोर दे रही है. इसके लिए केंद्र सरकार ने टपक सिंचाई (ड्रिप इरीगेशन) पर ७० प्रतिशत तक अनुदान का प्रावधान रखा है. सरकार द्वारा जल संचयन करने पर कई तरीके से सहायता की जाती है .

जल

संरक्षण के अन्य तरीके  

रेन वाटर हारवेस्टिंग को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए.
मकानों की छत के बरसाती पानी को ट्यूबबैल के पास उतारने से ट्यूबबैल रिचार्ज किया जा सकता है.
शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी अपने मकानों की छत से गिरने वाले वर्षों के पानी को खुले में रेन वाटर कैच पिट बनाकर जल को भूमि में समाहित कर भूमि का जल स्तर बढ़ा सकते हैं.

पोखरों इत्यादि में एकत्रित जल से सिंचाई को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे भूमिगत जल का उपयोग कम हो.

शहरों में प्रत्येक आवास के लिए रिचार्ज कूपों का निर्माण अवष्य किया जाना चाहिए, जिससे वर्षा का पानी नालों में न बहकर भूमिगत हो जाये.

तालाबों, पोखरों के किनारे वृक्ष लगाने की पुरानी परम्परा को पुनजीर्वित किया जाना चाहिए.

ऊँचे स्थानों और  बाँधों आदि के पास गहरे गड्ढ़े खोदे जाने चाहिए, जिससे उनमें वर्षा जल एकत्रित हो जाये और बहकर जाने वाली मिट्टी को अन्यत्र जाने से रोका जा सके.

कृषि भूमि में मृदा की नमी को बनाये रखने के लिए हरित खाद तथा उचित फसल चक्र अपनाया जाना चाहिए. कार्बनिक अवशिष्टों को प्रयोग कर इस नमी को बचाया जा सकता है.

वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए शहरी मकानों में आवश्यक रुप से वाटर टैंक लगाए जाने चाहिए. इस जल का उपयोग अन्य घरेलू जरुरतों में किया जाना चाहिए.

वर्षा जल संचयन के फायदे

घरेलू काम के लिए ज्यादा से ज्यादा पानी बचा सकते हैं और इस पानी को कपड़े साफ करने के लिए खाना पकाने के लिए तथा घर साफ करने के लिए, नहाने के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

बड़े-बड़े कल कारखाना में स्वच्छ पानी के इस्तमाल में लाकर बर्बाद कर दिया जाता है ऐसे में वर्षा जल को संचय करके इस्तेमाल में लाना जल को सुरक्षित करने का एक बेहतरीन उपाय है. ज्यादा से ज्यादा पानी की बचत और जल संचयन करने के लिए ऊपर दिए हुए तरीकों का उपयोग कंपनियां कर सकती हैं.

कुछ ऐसे शहर और गांव होते हैं जहां पानी की बहुत ज्यादा कमी होती है और गर्मी के महीने में पानी की बहुत किल्लत होती है ऐसे में उन क्षेत्रों में पानी को भी लोग बेचा करते हैं. ऐसी जगह में वर्षा के महीने में जल संचयन करना गर्मी के महीने में पानी की कमी को काफी हद तक कम कर सकता है.

वर्षा जल संचयन के द्वारा ज्यादा से ज्यादा पानी एकत्र किया जा सकता है जिससे मुफ्त में गर्मी के महीनों में कृषि से किसान पैसे कमा सकते हैं तथा पानी पर होने वाले खर्च को भी बचा सकते हैं. इसकी मदद से साथ ही ज्यादा बोरवेल वाले क्षेत्रों में बोरवेल के पानी को सूखने से भी रोका जा सकता है. ऐसा तभी संभव हो सकता है जब वर्षा ऋतु में ज्यादा से ज्यादा वर्षा के पानी का उपयोग कृषि के लिए लगाया जाए और गर्मी के महीने में वर्षा ऋतु में बचाए हुए जल का इस्तेमाल किया जाए.

English Summary: To make rainy farming, use these 5 methods to conserve water.
Published on: 26 June 2019, 10:26 AM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now