मिर्च भारतीय भोजन का अभिन्न अंग है एवं मसालों, सब्जियों एवं औषधियों के अलावा ये सॉस तथा अचार के लिए भी उपयोग होता है. आमतौर पर इसकी खेती आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तामिलनाडु एवं राजस्थान समेत भारत के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में होती है. चलिए आज़ हम आपको बताते हैं कि कैसे आप मिर्च की खेती कर सकते है.
इस तरह का चाहिए उपयुक्त जलवायु
मिर्च की फसल ना तो अत्यधिक ठंड में हो सकती है और ना ही अधिक गर्मी में, इसके लिए आद्र वाला मौसम उपयुक्त है. अगस्त के महीने में इसकी खेती करना इसलिए भी लाभकारी है, क्योंकि ये अपने आप में वर्षा आधारित फसल है. इस मौसम में मिर्च को ना तो पाले के प्रकोप का कोई खतरा है और ना ही लू लगने का डर है.
इस तरह की भूमि में कर सकते हैं खेती
मिर्च की खेती करने के लिए आपको जल-निकास वाली भूमि की जरूरत है. जीवांशयुक्त दोमट या बलुई मिटटी भी इसके लिए उपयोगी है, क्योंकि इसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक होती है. लेकिन ध्यान रहे कि लवण और क्षार युक्त भूमि मिर्च की फसल के लिए नहीं है.
मिर्च में इन किस्मों की है मांगः
1. मसाली किस्में-
मिर्च की कुछ किस्में विशेषतौर पर मसालों के लिए उपयोग होती है, जैसे- पन्त सी- 1, एन पी- 46 ए, जहवार मिर्च- 148, पूसा ज्वाला, पंजाब लाल, आंध्रा ज्योति और जहवार मिर्च आदि.
2. आचारी किस्में-
मिर्च की कुछ किस्में आचार लगाने के लिए उपयोगी है. जैसे अर्का गौरव, अर्का मेघना, अर्का बसंत, सिटी, केलिफोर्निया वंडर, अर्का मोहिनी, चायनीज जायंट, येलो वंडर, हाइब्रिड भारत,काशी अर्ली, तेजस्विनी, आर्का हरित आदि.
रोपाई का तरीका
मिर्च की खेती करने के लिए सबसे पहले 2 से 3 टोकरी वर्मी कंपोस्ट या पूर्णतया सड़ी गोबर खाद को 50 ग्राम फोरेट दवा प्रति क्यारी में मिलाएं. पौधें को लगाने के लिए बीजों की बुवाई 1 मीटर आकार की भूमि से 15 सेंटीमीटर उँची में करें. अब एक दिन छोड़कर क्यारियों में 1 सेंटीमीटर गहरी नालियाँ बनाने के बाद बीजों की बुवाई करें. आप चाहें तो पौधों को सुरक्षित करने के लिए गोबर खाद, मिटटी व बालू का मिश्रण बनाकर क्यारियों को धान के पुआल या पलाष के पत्तों से ढक सकते हैं.
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सिंचाई प्रबंधन
मिर्च की फसल के लिए सबसे उपयुक्त समय यही है. लेकिन अगर आपके यहां बरसात नहीं हो रही है तो आप 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई कर सकते हैं. वैसे अगर दोमट मिट्टी में आपने ये पौधा लगाया है तो 10 से 12 दिन के अंतराल पर सिंचाई किया जा सकता है.