हल्दी का उपयोग विभिन्न पकवानों के साथ औषधी के रूप में भी किया जाता है. किसानों के लिए भी हल्दी की खेती फायदे का सौदा बनती जा रही है. केरल के कोझिकोड स्थित भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान (Indian Institute of Spices Research) द्वारा विकसित हल्दी की एक ख़ास किस्म किसानों को अच्छा मुनाफा दे रही है. इस किस्म को संस्थान ने साल 1996 में विकसित किया था. हल्दी की यह ख़ास किस्म है प्रतिभा, जिसकी फसल कम समय में पक जाती है. इस लेख में जानिएं हल्दी की इस खास किस्म के बारे में-
प्रतिभा किस्म की खासियतें (Characteristics of Pratibha Variety)
भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान के सीनियर साइंटिस्ट (एग्री इकोनॉमिक्स) के डॉ. लीजो थॉमस ने कृषि जागरण से बातचीत करते हुए बताया कि हल्दी की दूसरी किस्मों की तुलना में इसमें सड़न की समस्या कम आती है. वहीं, यह किस्म 225 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. दूसरी किस्मों की तुलना में इसमें करक्यूमिन (Curcumin) 6.52 प्रतिशत तक पाया जाता है. वहीं इसमें ओलियोरेसिन (Oleoresin) 16.2 प्रतिशत, सुगंध तेल (Essential oil) की मात्रा 6.2 प्रतिशत तक पाई जाती है. इसके पौधे की ऊंचाई 42.9 सेंटीमीटर तक होती है. वहीं इसका प्रकंद फायबर युक्त, मोटा और बोल्ड होता है.
क्या होता है करक्यूमिन? (What is curcumin?)
बता दें कि हल्दी की विभिन्न किस्मों में 2 से 6 प्रतिशत तक करक्यूमिन पाया जाता है, जो प्राकृतिक रूप से आता है. करक्यूमिन के कारण ही हल्दी का रंग पीला और गंध तीखी होती है. इसी के कारण हल्दी औषधीय रूप से फायदेमंद होती है. विभिन्न बीमारियों में यह इसीलिए लाभदायक होती है.
52 टन तक उत्पादन (Production up to 52 tons)
डॉ. थॉमस ने बताया कि हल्दी की यह उन्नत किस्म है, जो कम समय में पक जाती है. इसकी खेती खरीफ सीजन (जून-जुलाई) में कर सकते हैं. वहीं पानी की पर्याप्त व्यवस्था होने पर इसकी अगेती खेती मई-जून में की जा सकती है. उन्होंने बताया कि प्रतिभा किस्म की खेती आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल समेत देश के विभिन्न राज्यों में की जा सकती है. हल्दी की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 39 से 52 टन उत्पादन लिया जा सकता है.
लाखों रुपये की कमाई (Earning lakhs of rupees)
आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा के रहने वाले प्रगतिशील कृषक पी. चंद्रशेखर 2004 से प्रतिभा हल्दी की खेती कर रहे हैं. प्रतिभा से पहले वे हल्दी की कडप्पा, दुग्गीराला, टेकुरपेटा और अर्मूर जैसी स्थानीय किस्म उगा रहे थे. लेकिन भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की सलाह के बाद उन्होंने हल्दी की उन्नत किस्म की खेती शुरू की. उन्होंने महज 2.75 एकड़ जमीन से लगभग 73 टन प्रकंद का उत्पादन किया. जिससे उन्हें लगभग 12 लाख रुपए की कमाई हुई. हल्दी की खेती चंद्रशेखर मेड़ और कूंड़ विधि से करते हैं. अधिक उत्पादन के लिए वे वर्मीकम्पोस्ट, सुपर फॉस्फेट, जैव उर्वरक और गन्ने की खोई का इस्तेमाल करते हैं.