चौलाई एक पत्तियों वाली सब्जियों की प्रमुख फसलों में से एक है. इस सब्जी को भारत के अलावा मध्य एवं दक्षिणी अमेरिका, दक्षिणी पूर्वी एशिया, पश्चिम अफ्रीका और और पूर्वी अफ्रीका में भी उगाया जाता है. इसकी 685 प्रजातियां है जो एक दूसरे से काफी भिन्न है. इसकी ज्यादातर पैदावार हिमालय क्षेत्रों में होती है. यह एक गर्म मौसम में उगाये जाने वाली फसल है. इसकी विभिन्न किस्में है जोकि ग्रीष्म व वर्ष ऋतु में उगाई जाती है.
पोषक मूल्य
चौलाई की पत्तों व तनों को बहुत ज्यादा तत्वों के लिए जरूरी माना जाता है. कुछ पोषक तत्व प्रोटीन, खनिज व विटामिन्स ए व सी के लिए मुख्य फसल है.
जलवायु
चौलाई की खेती के लिए सफल उत्पादन हेतु गर्मतर जलवायु की आवश्यकता होती है. यह फसल अधिक गर्मियों व वर्षा ऋतु के मौसम में उगाई जाती है. गर्म दिन इसके विकास, वृद्धि एवं उत्पादन के लिए सर्वोत्तम माने जाते हैं.
भूमि एवं खेती की तैयारी
चौलाई को विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है, परन्तु इसके सफल उत्पादन हेतु उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट या दोमट सर्वोत्तम मानी गयी है. भूमि का पी.एच.मान 6.0 - 7.0 के मध्य उत्तम माना जाता है, जबकि अधिक क्षारीय एवं अम्लीय भूमि इसके उत्पादन में बाधक मानी गयी है. प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें. उसके उपरांत 2 जुताई हैरो या कल्टीवेटर से करें. फिर पाटा लगाएं. बाद में मेड़े करके छोटे - छोटी क्यारियां बनानी चाहिए. क्यारियों के मध्य सिंचाई नालियां बनानी चाहिए जिससे बाद में सिंचाई करने में सुविधा रहे.
खाद एवं उर्वरक
चौलाई की भरपूर उपज लेने हेतु भूमि में पर्याप्त मात्रा में खाद एवं उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए. मृदा - जांच के उपरान्तु खाद्य एवं उर्वरकों को उपयोग आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त होता है. यदि किसी कारणवश मृदा - जाँच न हो सके तो प्रति हेक्टेयर निम्न मात्रा में खाद एवं उर्वरकों का उपयोग अवश्य करना चाहिए.
गोबर की खाद : 10 -15 टन
नाइट्रोजन :50 किलोग्राम
फॉस्फोरस : 50 किलोग्राम
पोटाश: 20 किलोग्राम
उन्नत जातियां:
बड़ी चौलाई
छोटी चौलाई
अन्य उन्नत किस्में
बुवाई का समय:
उत्तरी भारत में चौलाई की बुवाई दो बार की जाती है. पहली बुवाई फरवरी से मार्च के मध्य तक और दूसरी बुवाई जुलाई में की जाती है. केरल और तमिलनाडु में चौलाई की पौध तैयार करके रोपाई की जाती है.
सिंचाई एवं जल निकास
चौलाई की सिंचाई मौसम के ऊपर निर्भर करती है. ग्रीष्मकालीन वाली फसल में सिंचाई 5 - 6 दिन के अंतर पर की जनि चाहिए जबकि वर्षा ऋतु की सिंचाई वर्षा न होने पर नमी की आवश्यकतानुसार करनी चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
चौलाई की फसल के साथ अनेक खरपतवार उग आते है, जो फसल के साथ नमी, पोषक तत्व, धूप, वायु आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करते है, साथ ही कीट व रोगों को आश्रय प्रदान करते हैं इसलिए खरपतवारों को निराई-गुड़ाई करके निकाल देना चाहिए.
फसल की कटाई
फसल की कटाई बुवाई के 20 -25 दिन बाद ही शुरू हो जाती है. बड़ी चौलाई के पत्ते जल्दी बड़े हो जाते है लेकिन छोटी चौलाई की 6 -7 बार कटाई की जाती है. चौलाई के कोमल तनों की शाखाओं को ही तोड़ना चाहिए. इस प्रकार जो भी किस्म लगाई गयी हो 5 -6 तोड़ाई आराम से की जा सकती हैं.