देश में खेती किसानी के दौरान फसलों में सबसे ज्यादा नुकसान खरपतवारों के कारण देखने को मिलता है जो पौधों का पोषण सोखकर उन्हें कमजोर बना देती है. साथ ही कीट-रोगों को भी न्यौता दे देती है जिसकी वजह से फसलों का उत्पादन 40 फीसदी कम हो जाता है.
गाजर घास खेतों में आतंक मचाने वाली इन्हीं समस्याओं में शामिल है जिसके संपर्क में आने से फसलें तो क्या इंसानों की सेहत पर भी खतरनाक असर पड़ता है. इस तरह के खरपतवारों की रोकथाम के लिए कृषि विशेषज्ञों की तरफ से लगातार प्रबंधन और निगरानी करने की सलाह दी जाती है, ताकि समय रहते खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सके और फसलों का नुकसान होने से बचाया जा सके.
गाजर घास के नुकसान
बहुत कम लोग जानते हैं कि खेतों में गाजर घास (Carrot Grass) उगाने पर फसलों के साथ-साथ किसानों की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है इसके संपर्क में आते ही एग्जिमा, एलर्जी, बुखार और दमा जैसी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है ये घास फसलों के उत्पादन (Crop Production) और उत्पादकता (Crop Productivity) पर असर डालती है. खासकर मक्का, सोयाबीन, मटर तिल, अरण्डी, गन्ना, बाजरा, मूंगफली के साथ ही सब्जियों समेत कई बागवानी फसलों पर इसका प्रकोप देखने को मिलता है जिससे फसल के अंकुरण से लेकर पौधों का विकास तक दूभर होता है इसके प्रकोप के कारण पशुओं में दूध उत्पादन की क्षमता भी कम हो जाती है इससे पशु चारे का स्वाद कड़वा हो जाता है और पशुओं की सेहत पर भी बुरा असर पड़ने लगता है बताया जाता है कि फसलों पर 40 फीसदी का नुकसान होता है.
गाजर घास का इतिहास
बता दें यह घास भारत के हर राज्य में पाई जाती है जो करीब 35 मिलियन हेक्टेयर में फैली रहती है ये घास खेत खलिहानों में जम जाती है, आस-पास के पौधों का टिकना मुश्किल कर देती है, जिसकी वजह से औषधीय फसलों के साथ-साथ चारा फसलों के उत्पादन में भी कमी आती है. विशेषज्ञों की मानें तो ये घास भारत की उपज नहीं है बल्कि साल 1955 में अमेरिका से आयात होने वाले गेहूं के जरिये भारत आई और सभी राज्यों में गेहूं की फसल के जरिये फैली.
कैसे करें गाजर घास की रोकथाम
गाजर घास की रोकथाम के लिए कई कृषि संस्थान और कृषि वैज्ञानिक जागरुकता अभियान चलाते हैं जिससे जान-मान की हानि ना हो साथ ही एग्रोनॉमी विज्ञान विभाग, खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर और चौधरी सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार किसानों से जानकारियां साझा कर रहे हैं. और कुछ कृषि विशेषज्ञ रोकथाम के लिए खरपतवारनाशी दवायें जैसे- सिमाजिन, एट्राजिन, एलाक्लोर, डाइयूरोन सल्फेट और सोडियम क्लोराइड आदि के छिड़काव की सलाह दे रहे हैं. इसके अलावा इसके जैविक समाधान के रूप में एक एकड़ के लिए बीटल पालने की सलाह दी जाती है प्रति एकड़ खेत में 3-4 लाख कीटों को पालकर गाजर घास को जड़ से खत्म कर सकते हैं चाहें तो केशिया टोरा, गेंदा, टेफ्रोशिया पर्पूरिया, जंगली चौलाई जैसे पौधों को उगाकर भी इसके प्रकोप से बच सकते हैं.
फायदेमंद भी है गाजर घास
वैसे तो गाजर घास खरपतवारों (Weed) के रूप में फसलों के लिए बड़ी समस्या है लेकिन इसमें मौजूद औषधीय गुणों (Medicinal Properties) के कारण ये संजीवनी भी बन सकती है किसान इसका इस्तेमाल वर्मीकंपोस्ट यूनिट (Vermicompost Unit) गाजर घास में कर सकते हैं, जहां ये खाद के जीवांश और कार्बनिक गुणों में इजाफा करती है साथ ही एक बेहतर कीटनाशक, जीवाणुनाशक और खरपतवारनाशक दवा के रूप में भी इसका इस्तेमाल हो सकता है इसके अलावा मिट्टी के कटाव को रोकने में भी गाजर घास का अहम रोल है इसलिए किसान सावधानी से गाजर घास का प्रबंधन कर सकते हैं.