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Updated on: 5 December, 2022 6:22 PM IST
अच्छा मुनाफा पाने के लिए चने की खेती का सही तरीका जानें

कृषि अब किसी बड़े उद्योग से कम नहीं है. अच्छे-अच्छे नौजवान नौकरी छोड़कर मुनाफे की खेती की ओर आगे बढ़ रहे हैं. किसानी अब काफी मुनाफेमंद साबित हो रही है. ऐसे में कौनसी फसल कितना मुनाफा दे सकती है, कितनी आसानी से पैदावार की जा सकती है इसकी जानकारी हम आपको दें रहे हैं. बात करें चने की खेती की तो शीत ऋतु में चना रबी की मुख्य फसलों में से एक है. वैसे तो इसकी खेती सितम्बर से शुरू होती है, पर पछेती किस्मों को दिसम्बर के तीसरे सप्ताह तक लगाया जा सकता है और किसान अभी भी चने की बुवाई कर सकते हैं. अच्छा मुनाफा पाने के लिए खेती का सही तरीका जानें...

भूमि और किस्में- चने के लिए कवक और क्षार रहित जल निकास वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त मानी जाती है. मिट्टी का पीएच मान 6.7-5 के बीच होना चाहिए. बुवाई के लिए विशेष पछेती किस्में पूसा 544, पूसा 572, पूसा 362, पूसा 372, पूसा 547 किस्में के 70-80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर उपयोग कर सकते हैं. इनके अलावा भी चने की बहुत सी किस्म होती हैं. पूसा 2085 चने की काबुली किस्म है जो उत्तरी भारत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और दिल्ली के लिए संस्तुत की गई है. सिंचित अवस्था में यह किस्म 20 क्विंटल तक प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है. पूसा की दूसरी किस्म हरा चना 112 नंबर है. सिंचित अवस्था में समय पर बोई जाने वाली यह किस्म 23 क्विंटल तक उपज देती है. पूसा 5023 काबुली श्रेणी का चना है. सिंचित अवस्था में यह 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देता है. सिंचित अवस्था में 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देने वाली किस्म पूसा 547 देसी दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में बोई जाने योग्य किस्म है.

बीज उपचार- अच्छी पैदावार के लिए 2.5 ग्राम थायरस या कारबेण्डिज्म 0.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करें. 100 किलो बीज उपचारित करने के लिए 800 मिली लीटर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी का प्रयोग करें. 

बुवाई का समय और तरीका- सिंचित क्षेत्र में पछेती किस्में दिसंबर के तीसरे सप्ताह तक लगा लेनी चाहिए. बुवाई के लिए 75-80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लग जाता है, जबकि मोटे दाने वाली किस्म का 64 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है. इसमें कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर रखें और सिंचित क्षेत्र में 5-7 सेंटीमीटर गहरी बुवाई कर सकते हैं.

सिंचाई - चने की खेती असिंचित अवस्था में की जाती है. इस फसल के लिए कम जल की आवश्यकता होती है. पहली सिंचाई बोने के 45 दिन बाद और दूसरी सिंचाई दाना भरने की अवस्था में करनी चाहिए. 

ऊर्वरक का प्रयोग- सिंचित फसल के लिए 40 किलो नाइट्रोजन और 20 किलो फास्फोरस सही रहता है. नाइट्रोजन की आधी और फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय देनी चाहिए. बाकी नाइट्रोजन पहली सिंचाई के साथ दे सकते हैं. असिंचित क्षेत्रों में ऊर्वरकों की आधी मात्रा 20 किलो नाइट्रोजन, 10 किलोग्राम फास्फोरस बुवाई के समय दें. दस किलोग्राम सलटोन का उपयोग बुवाई के समय करें. 

पाले से बचाव- चने की खेती के दौरान पाले से बचाव के लिए 0.1 फीसदी गंधक के तेज़ाब को पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. संभावित पाला पड़ने की अवधि में इस छिड़काव को 10 दिन बाद फिर से दोहरा सकते हैं.

फसल संरक्षण- कीटों का प्रभाव दिखाई देते ही शाम के समय 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मिथाइल पैराथियान दो फीसदी मात्रा पाउडर का पौधों पर छिड़काव करना चाहिए.

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झुलसा रोग - झुलसा के लक्षण दिखाई देते ही मेन्कोजेब 0.2 फीसदी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइट 0.3 फीसदी या घुलनशील गंधक 0.2 फीसदी के घोल का छिड़काव कर सकते हैं. इस तरह चने की उन्नत किस्स की उन्नत खेती करने से किसान सही दाम और मुनाफा कमा सकते हैं. साथ ही नए-नए प्रयोग कर खेती –किसानी को और भी ज्यादा आगे बढ़ा सकते हैं.

English Summary: these varieties of gram in will give benefit
Published on: 05 December 2022, 06:28 PM IST

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