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Updated on: 15 May, 2020 12:33 PM IST
सोयाबीन की रोग प्रतिरोधी किस्में

सोयाबीन की खेती लाखों किसानों के आय का मुख्य साधन है. भारत के लगभग हर राज्य में इसकी खेती होती है, लेकिन मध्यप्रदेश में इसकी लोकप्रियता सबसे अधिक है. सोयाबीन पर लगातार नए-नए रिसर्च होते रहते हैं, इसी कड़ी में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ने कुछ खास खोज निकाला है. यहां के वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की ऐसी दो किस्में विकसित की हैं, जिन्हें कीटों का कोई भय नहीं है.

रोग प्रतिरोधी है सोयाबीन की दोनों किस्में (Disease resistant Both varieties of soybeans)

इन दोनों को जे.एस. 20-116 और जे.एस. 20-94  का नाम दिया गया है. विशेषज्ञों का मानना है कि कीट एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता होने के कारण इनकी खेती में लागत कम आती है और उत्पादन के मामले में भी आम सोयाबीन के मुकाबले ये अधिक बेहतर हैं. बता दें कि मध्यप्रदेश को ‘‘सोयाराज्य’’ का दर्जा दिलाने में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय का विशेष योगदान रहा है.

सोयाबीन की फसल का तापमान (Soybean crop temperature)

सोयाबीन की इन दोनों किस्मों की खेती गर्म और नम जलवायु में की जा सकती है. इसके पौधों के विकास एवं बीज अंकुरण के लिए लगभग 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है, जबकि फसलों की बढ़ोतरी के लिए लगभग 30 डिग्री सेल्सियस तापमान भी पर्याप्त है.

सोयाबीन की फसल सिंचाई (Soybean Crop Irrigation)

अगर सिंचाई की बात करें तो इसकी खेती में सिंचाई मिट्टी, तापमान और मानसून पर निर्भर करती है. बरसात के दिनों में विशेष सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती. हालांकि अगर बारिश न हो रही हो तो जरूरत के अनुसार सिंचाई की जा सकती है. बस इतना ध्यान रहे कि खेतों में जलभराव न होने पाए. पौधों में फूल और दाना आने की अवस्था तक खेतों में नमी का होना जरूरी है.

ये भी पढ़ें: सोयाबीन की आधुनिक तरीके से खेती करने का तरीका, बुवाई का सही समय और उन्नत किस्में

सोयाबीन की खेती के बारे में अधिक जानने के लिए आप कृषि जागरण के इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं.

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English Summary: these two varieties of soya bean give huge profit to farmers know more about it
Published on: 15 May 2020, 12:33 PM IST

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