किसी भी व्यवसाय का असूल है कि जिस उत्पाद में सबसे ज्यादा नुकसान हो उसे बदल दिया जाए. यही बात कृषि पर भी लागू होती है, इसे किसानों को समझने की जरूरत है.
राजस्थान से एक ऐसी खबर सामने आई है जहां सोयाबीन में पीला मोजेक वायरस की सबसे ज्यादा समस्या का कारण किसानों द्वारा बीज वैरायटी नहीं बदलना है. कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो किसानों की यह जिद्द ही इसे नुकसान की खेती बना रही है. किसानों को यदि सोयाबीन को लाभ की खेती बनाना है, तो उन्हें 15 साल पुरानी जेएस 9560 वैरायटी बीज को बदलना होगा और नई वैरायटी के बीज अपनाने की कोशिश करनी ही होगी.
दरअसल, राजस्थान की हिंडोली नैनवा विधानसभा में 60 से 65 हेक्टर में सोयाबीन की खेती होती है. कृषि विभाग के अधिकारियों ने खुलासा किया है कि क्षेत्र के लगभग 95% किसान JS 9560 वैरायटी लगाते हैं. इस वैरायटी में एलो मोजैक वायरस सबसे ज्यादा लगता है, जबकि RVS 2001-4 JS 2172 RVSM 1135 ब्लैक बोर्ड जैसी नई वैरायटी आ रही है. इनके उपयोग से किसान सोयाबीन की खेती को उन्नत बना सकता है,यह पीला मोजेके के प्रतिरोधी पाई जाती है.
किसानों को बीज बदलने के लिए कृषि विभाग लगातार प्रयास कर रहा है. लाख कोशिशों के बाद भी फार्मर का पुरानी किस्म से मोह नहीं छूट रहा जिसका खामियाजा नुकसान के रूप में उठाना पड़ रहा है, लेकिन जहां किसान सोयाबीन की कई किस्में लगा रहे हैं, वो इसकी खेती से काफी अच्छी मुनाफा कमा रहे हैं.
नई किस्म से गणेशपुरा के किसान को फायदा
गणेशपुरा के किसान धर्मेंद्र नागर धाकड़ के लिए नई किस्म का सोयाबीन बीज अपनाना फायदेमंद साबित हो रहा है. बता दें कि धर्मेंद्र नागर धाकड़ ने अपने 10 बीघा खेत में से 5 बीघा में आरवीएसएम 1135 वैरायटी लगाई है, 3 बीघा में ब्लैक बोर्ड और 2 बीघा में RVS 2001-4 वैरायटी लगाई है.
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किसान धाकड़ ने बताया कि इसमें बीज प्रति बीघा 14 से 15 किलो ही लग रहा है, जबकि JS 9560 में 20 से 25 किलो प्रति बीघा बीज लगता था. नई वैरायटी में पौधे की हाइट कमर तक चली जाती है जबकि पुरानी किस्मों के पौधे कम हाइट वाले होते हैं. धर्मेंद्र नागर के खेतों को देखकर अन्य किसान भी अब नई किस्मों को लगाने की इच्छा जताने लगे हैं.
जल जमाव वाले खेतों में ज्यादा नुकसान
विशेषज्ञों का कहना है कि जल भराव वाली जमीन या खेतों में JS- 9560 किस्म ज्यादा सफल नहीं है. पानी जमा होने व नमी ज्यादा रहने से इस बीज के पौधों में वायरस अटैक लगना स्वाभाविक है.