गेहूं की पछेती किस्म कम समय में पककर तैयार हो जाती हैं, जिनकी बुवाई 20 नवंबर के बाद शुरू हो जाती है. अगर किसान उन्नत तकनीक से पछेती किस्मों की बुवाई करें, तो ज्यादा पैदावार ली जा सकती है, साथ ही आमदनी भी अच्छी मिल सकती है.
गेहूं की पछेती किस्मों की बुवाई मध्य नवंबर के बाद करना चाहिए. यह किस्में कम समय में पकने वाली होती हैं, साथ ही गर्मी व तापमान को सहन करने वाली होती हैं.
पछेती किस्मों की बुवाई का समय
गेहूं की पछेती किस्मों की बुवाई 20 नवंबर से लेकर 25 दिसंबर तक पूरी कर लेनी चाहिए. इसके बाद गेहूं की बुवाई करना लाभकारी नहीं माना जाता है.
उन्नत किस्में
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डब्ल्यूएच 1021
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डब्ल्यूएच 1124
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एचडी 3059, 2985
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डीबीडब्ल्यू 90,173
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राज 3765
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पीबीडब्ल्यू 590
बीज की मात्रा
गेहूं की पछेती किस्मों की बुवाई के लिए 55 से 60 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ प्रयोग करना चाहिए.
बीज उपचार
सबसे पहले पछेती किस्मों की बुवाई के लिए बीज को लगभग 12 घंटे पानी में भिगोकर रखें. इससे बीज का जल्दी व ज्यादा जमाव होता है. इसके बाद बीज को पानी से निकालें और 2 घंटे फर्श पर छाया में सुखाएं. इसके बाद दीमक, कीटनाशक दवा, फफूंद नाशक और जैविक टीका से उपचारित करके बुवाई करें.
बुवाई का तरीका
बीज की बुवाई उर्वरक ड्रिल से करें और पछेती बुवाई में खूड़ से खूड़ की दूरी लगभग 20 सेंटीमीटर की जगह लगभग 18 सेंटीमीटर रखें. किसान जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल से भी बुवाई कर सकते हैं.
खाद्य व उर्वरक विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को बुवाई से पहले गली सड़ी गोबर की खाद प्रति एकड़ डालना चाहिए. अगर 6 टन गोबर की खाद या कंपोस्ट प्रति एकड़ खेत में डालें, तो फास्फोरस खाद की मात्रा आधी कर दें. इसके साथ ही बुवाई के समय 50 किलोग्राम डीएपी या 75 किलोग्राम एनपीके 12:32:16 तथा 45 किलोग्राम यूरिया व 10 किलोग्राम जिक सल्फेट 21 प्रतिशत डाल दें. ध्यान दें कि एनपीके या डीएपी उर्वरकों को ड्रिल से दें. इसके अलावा जिक और यूरिया को आखिरी जुताई के दौरान डालें. बता दें कि पहली सिंचाई पर 60 से 65 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ डालना चाहिए. अगर रेतीली भूमि है, तो यूरिया को दो बार पहली और दूसरी सिचाई पर डालना चाहिए.
सिंचाई
गेहूं की पहली सिंचाई 3 सप्ताह की जगह 4 सप्ताह बाद करनी चाहिए. इसके बाद की सिंचाई मध्य फरवरी तक 25 से 30 दिन बाद करनाी चाहिए. फिर 20 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
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अगर शिखर जड़े निकलें, तो फुटाव और बाली आते समय पानी की कमी ना होने दें.
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भूमि में नमी बनाए रखें.
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खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई, गुड़ाई व खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग करें.
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कनकी, मंडसी व जंगली जई खरपतवार की रोकथाम करना है, तो क्लोडिनाफाप 15 प्रतिशत 160 ग्राम प्रति एकड़ बुवाई के 30 से 35 दिन बाद 250 लीटर पानी में घोलकर छिड़क दें.
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अगर फसल को दीमक से बचाना है, तो बुवाई से एक दिन पहले 150 मिली. क्लोरोपायरीफोस 20 ईसी दवा को 5 लीटर पानी में घोलकर बनाएं और इसे 100 किलो बीज के ऊपर छिड़क दें.
रोग व कीट नियंत्रण
कीटनाशक व फफूंद नाशक दवाओं से बीज उपचारित कर लें. इसके लिए बीज को रातभर सूखाने के बाद बुवाई करें. बता दें कि पीला रतवा गेहूं की फसल का मुख्य रोग होता है, इसलिए इसकी रोकथाम के लिए लगभग 200 मिलीलीटर प्रापिकानाजोल 25 ईसी दवा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़क दें.
उत्पादन
अगर इस तकनीक से गेहूं की पछेती किस्मों की बुवाई की जाए, तो फसल का अच्छा उच्पादन प्राप्त किया जा सकता है.