Soybean Diseases: भारत में उगाई जाने वाली तिलहन फसलों में सोयाबीन की फसल अहम स्थान रखती है. देश की खाद्य तेल अर्थव्यवस्था में सोयाबीन का बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहा है. कई राज्यों में सोयाबीन की खेती लाखों छोटे और सीमांत किसानों द्वारा की जा रही है. सोयाबीन की फसल में लगने वाले रोग किसानों की सबसे बड़ी चिंता होती है. इसकी फसल में बीमारी लगने पर पत्तियां का रंग पीला पड़ने लग जाता है या फिर पत्तियों में छेद होने लगते हैं. आइये कृषि जागरण के इस आर्टिकल में जानें ये बीमारी क्या है और इसका इलाज कैसे कर सकते हैं.
क्या है पीला मोजेक रोग?
मानसून के मौसम में लगातार बारिश होने की वजह से सोयाबीन की फसल पर पीला मोजेक रोग होने का संभावना काफी होती है. इस बीमारी के होने के बाद सोयाबीन की फसल पीली पड़ने लगती है या उसके पत्तों में छेद हो जाते हैं. जब बारिश के बाद मौसम साफ होना शुरू होता है, तो खेतों में नमी की मात्रा संतुलित होने लगती है. लेकिन इस दौरान ही सोयाबीन की फसल पर पीला मोजेक रोग का प्रकोप शुरू हो जाता है. कुछ किसानों का कहना बै कि इस रोग की वजह से फसल नष्ट हो जाती है और उत्पादन में कमी आती है.
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पीला मोजेक रोग के लक्षण
आपकी जानकारी के लिए जिस खेत में गर्मी के मौसम में मूंग की फसल बोई जाती है, वहां पीला मोजेक वायरस होता है. किसान के सोयाबीन की फसल लगाने के बाद ये वायरस इस पर हमला कर देता है. सोयाबीन की फसल के पत्तों के पीलापन की असली वजह पीला मोजेक वायरस होता है, जो सफेद मक्खी की वजह से फैलता है. इस रोग की चपेट में आने पर पत्ते पीले पड़ने लग जाते हैं और फलियां का आकार छोटा और दाने सिकुड़ने लग जाते हैं. बता दें, फसल में पत्ते पीले दिखाई देना का एक मुख्य कारण खेतों से पानी की निकासी न होना भी हो सकता है.
कैसे करें पीला मोजेक रोग की रोकथाम?
पीवा मोजेक रोग की रोकथाम करने के लिए आपको 1 लीटर पानी में 1 मिली सल्फ्यूरिक एसिड के साथ 0.5 प्रतिशत फेजर सल्फेट को मिलकार सोयाबीन की फसल पर छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा, फसल में प्रकोप दिखने पर आप इसके रोकथाम के लिए सोयाबीन के पौधों को उखाड़कर नष्ट भी कर सकते हैं. बता दें, पीला मोजेक रोग की वजह से पौधों की वृद्धि रुक जाती है और पौधा का आकार छोटा रह जाते हैं. वहीं पत्तियों का आकार बिगड़ने लग जाता है और धीरे-धीरे करके पत्तियां फटने लग जाती हैं.