पराली प्रवंधन आज की एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप हम सब के सामने खड़ी हो रही है। आज का युग मशीनरी युग चल रहा है। जिसमे लगभग सभी चीजे चाहे वह जिस क्षेत्र में हो वह मशीनों की वजह से बड़ी सुगमता से हो रही है। इसी क्रम में आज कृषि में आज बहुत मशीने आ गई हैं जैसे धान की कटाई के लिए कंबाइन हार्वेस्टर आ गई हैं, जो बहुत बड़े क्षेत्र की फसल को कुछ देर में काट देती हैं। कंबाइन हार्वेस्टर के काटने के बाद जो अवशिष्ट के रूप में बचता है, आज हम उसी के प्रबंधन के बारे में जानेंगे।
पराली जलाने के नुकसान :
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धान की फसल की कटाई के बाद खेतों में किसानों को रबी की फसल की बुआई हेतु जल्दी खाली करने के लिए धान की पराली को जला देते हैं, जो कि सही तरीका नहीं है। यह आसान तरीका जरुर है, लेकिन पर्यावरण की नुकसान पहुंचाता है, उसी के साथ- साथ मिट्टी में उपस्थित लाभदायक जीवाणु भी भूमि से नष्ट हो जाते हैं। इससे यही अर्थ निकलता हैं कि पराली जलाना किसानों के लिए भी हानिकारक हैं।
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यह मुख्यता दिल्ली, पंजाब, हरियाणा व पश्चिम उत्तर प्रदेश में एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में उभर रही है।
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यदि हम धान की फसल को हाथ से काटें और इसके अवशेषों को सुरक्षित ढंग से निपटारा करें तो इसमें कृषि में लागत मूल्य काफी उच्च हो जाता है। जिससे किसानों को घाटा होता है। अत: किसान रबी फसल की बुआई समय से करने के लिए किसान धान की पराली को जलाना उचित समझता है।
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किसानों को ऐसे भ्रम भी हैं कि पराली जलाने के बाद उससे उत्पन्न राख मृदा में उर्वरता को बढाती है।
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मृदा में फसल के अवशेषों जलाने से मृदा के ताप में वृद्धि होती है, जिसके कारण मृदा के भौतिक, रसायनिक व जैविक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ते हैं।
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फसल अवशेष को जलाने से लाभदायक कीट मर जाते हैं, जिससे फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ते हैं।
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नजदीक फसल अवशेष को जलाने से लाभदायक किसनो की फसलों व आबादी में आग लग सकती हैं।
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कृषि के अवशेषों को जलाने से कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, जैसे अन्य जहरीली गैसे निकलते हैं, जो मानव के स्वस्थ पर नकारत्मक प्रभाव डालते हैं। इन गैसों के कारण श्वास की बीमारीयों को काफी हद तक बढा देती हैं।
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पराली के जलाने से निकलने वाली गैसों से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या में इजाफा करती हैं। हाल ही एक विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का हिमालयी क्षेत्र ग्लोबल वार्मिंग से अधिक प्रभावित हो रहा है।
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कुछ अन्य वैज्ञानिको का मानना है कि कृषि अवशेषों को जलाने से फसलों की पैदावार बड़ी मात्रा में घट सकती है, जो भविष्य में सरकार के एक बड़ी समस्या हो सकते हैं, अभी हाल में ही ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 जारी हुआ है जिसमे भारत को 117 देशों में 102 वां स्थान प्राप्त हुआ है।
पराली प्रबंधन: विभिन्न वैज्ञानिकों के अनुभवों से यह ज्ञात हुआ है कि यदि धान और गेहूं के फसल चक्र में धान की पराली को खेत में छोड़ दिया जाए तो गेहूं के उपज में बढ़ोत्तरी होती हैं और खाद की खपत भी कम होती है। धान की पराली को हम विभिन्न प्रकार की मशीनों जैसे सुपर एस. एम. एस., हैप्पी सीडर, चोपर, मल्चर, आदि जैसे मशीनों महतवपूर्ण योगदान दे रही हैं। सरकार इन उपकरणों पर 50 से 80 फीसदी तक की छूट दे रही है.
हैप्पी सीडर: धान कि कटाई के बाद पराली को बिना खेतों से निकाले गेहूं की बुआई हैप्पी सीडर नामक यन्त्र से की जा सकती है। इस किस्म में फलेल किस्म की ब्लेड लगी होती है, जो कि ड्रिल के बुआई करने वाले फाले के सामने आने वाले फसलो के अवशेष को काटता है और पीछे को धकेल देता है जिससे अवशेष मशीन में नहीं फसते और बीज सही तरीके से बो दिया जाता है। इस यन्त्र की बुआई से गेहूं की फसल में 50 से 60 फीसदी तक के खरपतवार कम उगते हैं। यह मशीन 45 से 50 हॉर्स पॉवर वाले ट्रैक्टर से चलती है तथा एक दिन में 6 से 8 एकड़ की बुआई करते हैं।
खेत में पराली को बिखारने के लिए कंबाइन हार्वेस्टर के पीछे के ओर सुपर अस. एम. अस. (स्ट्रॉ मैनेजमेंट ) सिस्टम लगाने की सलाह दी जाती है। यह हार्वेस्टर के पीछे गिरने वाली पराली को काटकर खेत में बिखेर देती हैं जिससे हैप्पी सीडर की काम करने की क्षमता बढ़ जाती हैं।
मल्चर: मल्चर एक प्रकार का महतवपूर्ण कृषि यन्त्र है जो ट्रैक्टर के पीछे जोड़कर चलाया जाता है। इसकी मदद से फसल ले अवशेषों को काटकर उन्हें मिट्टी में मिलाया जा सकता है। यह फसल की अवशेषों को छोटे-छोटे टुकडों में विभाजित कर देता है और अवशेषों को मिट्टी में मिला देता है, जिससे मिट्टी का उपजाऊपन बढ़ जाता है। फसल अवशेषों को जलाने से न केवल पर्यावरण को नुकसान होता है वही कृषि भूमि को भी बहुत नुकसान होता है। यह मशीन 1.5 से 2.0 लाख की आती हैं और सरकार इस पर 50 से 60 % तक छूट देती है.
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रोटावेटर : यह ट्रैक्टर के साथ काम करने वाली एक मशीन है। रोटावेटर से विभिन्न प्रकार के फसलों के अवशेष को हटाने में प्रयोग किया जाता है तथा मिट्टी को भुरभुरी बनाने में और विभिन्न फसलों के बीज की बुआई भी की जाती है। यह विभिन्न आकार में आता है जैसे 1.5 मी. से 2.0 मी. की लम्बाई तक मिलता है। इसकी कीमत 90 हजार से 1.20 लाख तक होती है। जिसे सरकार 40 फीसदी तक की छूट पर किसानों को उपलब्ध कराती है।
सैटेलाइट से रखी जाएगी पराली प्रबंधन पर नज़र : कंबाइन हार्वेस्टर के द्वारा धान की फसल की कटाई के बाद किसान पराली को जलाना ज्यादा उचित समझता है यद्पि उसे मिट्टी में मिलाने के अपेक्षा जो कि गलत है। इसी क्रम में सरकार ने एक बहुत बड़ा कदम उठाया है, जिससे सैटेलाइट से पराली जलाने वाले किसान पर नज़र रखी जाएगी व उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाएगा और जुर्माना भी लगाया जाएगा। इसी क्रम में कृषि विभाग ने किसानों से अपील की है कि पराली न जलाए वर्ना पकड़े जाने पर भारी जुर्माना व जेल भी हो सकती है.
लेखक-
सौरभ सिंह1, श्रद्धा सिंह1, मृत्युंजय राय2, अजय सिंह3
1फसल कार्यकी विभाग, 2सब्जी विज्ञान विभाग, 3कृषि अर्थशास्त्र विभाग
आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या (उत्तर प्रदेश) भारत