सरसों रबी में उगाई जाने वाली तिलहन की मुख्य फसल है. सरसों में तेल की मात्रा लगभग 38 से 40 प्रतिशत होती है. इसमें कई तरह की बिमारियों का प्रकोप रहता जोकि इसकी पैदावार को कम कर सकता है.
अगर किसान इन रोगों को समय पर पहचान कर ले तो समय रहते इनका प्रबंधन कर सकते हैं. सरसों में मुख्य रोग और उनकी रोकथाम से जुड़ी पूरी जानकारी:
अल्टेरनेरिया ब्लाइट (Alternaria blight)
इस रोग के प्रकोप से सरसों के पौधों की पत्तियों और फलियों पर गोल, भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं. बाद में ये धब्बे काले रंग के हो जाते हैं और गोल छल्ले की तरह दिखाई देते हैं.
तना गलन (stem rot)
तनों पर लम्बे आकार के भूरे जलशक्ति धब्बे बनते हैं जिन पर बाद में सफ़ेद फफूंद जैसा कुछ बन जाता है. ये लक्षण पत्तों और टहनियों पर भी नजर आ सकते हैं. फूल निकलने या फलियां बनने समय इसका आक्रमण होने से तने टूट जाते हैं. तनो के भीतर काले रंग के पिंड बनते हैं.
रोकथाम
अल्टेरनेरिया ब्लाइट, फुलिया और सफ़ेद रतुआ की रोकथाम के लिए बीमारी के लक्षण नजर आते ही 600 ग्रा. मैंकोजेब (डाइथेन या इंडोफिल एम -45) को 250 से 300 लीटर पानी में मिलकर प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतर पर 3-4 बार छिड़काव करें.
फुलिया या मिल्डू (Phuliya ya Mildu)
पत्तियों की निचली सतह पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और धब्बों का ऊपरी भाग पीला पड़ जाता है. इसके बाद इन धब्बों पर चूर्ण सा बनने लगता है.
सफ़ेद रतुआ (White Rust)
तने और पत्तियों पर सफ़ेद और पीले क्रीम रंग की कीलें दिखने लगती है. जिसकी वजह से तने और फूल बेढंगे आकर के हो जाते हैं. जिन्हें स्टैग हैड कहते हैं. यह ज्यादातर पछेती फसलों होता है.
2 ग्राम कार्बेन्डाजिम (बाविस्टिन) प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार करें.जिन क्षेत्रों में तना गलन रोग का प्रकोप हर साल होता है वहां बिजाई के 45-50 दिन और 65-70 दिन के बाद कार्बेन्डाजिम का 0.1% की दर से दो बार छिड़काव करें.
लेखक:
राकेश पुनियाँ और पवित्रा कुमारी
पादप रोग विभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विवविद्यालय, हिसार