स्वस्थ्य शरीर की बनावट के लिए सही खानपान का होना बहुत जरूरी होता है, उसी प्रकार पौधे की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए कुल 17 पोषक तत्वों की जरूरत पड़ती है. खेती से बेहतर पैदावार और उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करने के लिए मिट्टी परिक्षण करवाना जरूरी हो जाता है. साथ ही मिट्टी की जांच से पता चलता है कि भूमि में किस पोषक तत्व की उपलब्धता है तथा किस पोषक तत्व की अधिकता या कमी है. किसी भी फसल से उन्नत पैदावार के लिए यह जरूरी है कि उस फसल को किस प्रकार की भूमि में उगाया जा रहा है और उस भूमि में किस प्रकार के पोषक तत्व उपलब्ध हैं जो कि मिट्टी जांच से पता चल जाता है. इसके साथ ही मिट्टी जांच पर सरकार ने प्रधानमन्त्री मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना भी चलाई है.
क्यों व कब कराएं मिट्टी की जांच :-
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सघन खेती के कारण मिट्टी में उत्पन्न विकारों की जानकारी एवं सुधार के लिए मिट्टी जांच की जाती है.
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मिट्टी में कौन-कौन से पोषक तत्व कितनी मात्रा में उपस्थित हैं, इसकी जानकारी के लिए मिट्टी जांच की जाती है.
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मिट्टी में बोई जाने वाली फसलों को कितनी मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता है.
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फसल की कटाई के बाद मिट्टी की जांच करवा सकते हैं.
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फसल की बुवाई या रोपाई से एक महीने पहले खेत की मिट्टी की जांच कराएं.
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मिट्टी की जांच सामान्यतः 2 या 3 वर्ष में करवानी चाहिए.
मिट्टी जांच कराने से लाभ :-
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मिट्टी जांच से पता चलता है उस खेत में कौन सी फसल की खेती कर अच्छी पैदावार पा सकते हैं.
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मिट्टी जांच की मदद से पता चलता है कि भूमि में प्राथमिक एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों में किस पोषक तत्व की अधिकता या कमी है.
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मिट्टी की जांच में भूमि के अम्लीय और क्षारीय गुणों की जांच की जाती है.
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मिट्टी जांच से कार्बन उत्सर्जन कम होता है.
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मिट्टी की जांच से मिट्टी की गुणवत्ता बरकरार रहती है.
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उर्वरक की लागत में कमी आती है.
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मिट्टी जांच से प्रदूषण कम होता है.
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फसल में संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करने से फसल में बीमारियां लगने का खतरा कम हो जाता है.
मिट्टी जांच के लिए नमूना लेने कि विधि :-
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नमूना लेने के लिए कुछ वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है. जैसे- औगर, खुरपी, कुदाल, कपड़ा या पॉलीथीन बैग, टैग, सुतली, मार्कर आदि.
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सबसे पहले एक एकड़ खेत में लगभग 8-10 जगह से V आकार के 6 इंच गहरे गड्ढ़े बना लें.
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इसके बाद खुरपी की सहायता से V आकार के किनारे से 1 से. मी. मोटी परत खुरचकर एक थैले में जमा कर लें.
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सभी गड्ढ़े से प्राप्त मिट्टी को एक स्थान पर एकत्र कर उसमें से कंकड़ पत्थर आदि को हटा दें.
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एकत्रित मिट्टी को गोलाकार में फैलाकर उसे चार हिस्सों में बांट दें.
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इसके बाद आमने सामने के दो हिस्सों को रख कर बाकि के दो हिस्सों को फेंक दें.
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ध्यान देने योग्य बात यह हैं कि इस प्रक्रिया को तब तक करना है जब तक नमूने की मिट्टी 500 ग्राम न रह जाए.
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नमूने को थैली में भरकर, उसमें किसान अपना नाम, पिता का नाम, गांव का नाम, खसरा नं, तिथि, पूर्व में ली गई फसल, प्रस्तावित फसल आदि जानकारी भर कर नमूने को मिट्टी जांच प्रयोगशाला में भेज दें.
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मिट्टी का नमूना लेते समय ध्यान रखें इन बातों का:
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खाद या उर्वरक डाले गए स्थान से नमूना नहीं लेना चाहिए.
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वृक्षों के नीचे से नमूना नहीं लेना चाहिए.
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सिंचाई की नाली या मेड़ के बिल्कुल पास से नमूना नहीं लेना चाहिए.
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खेत में अगर खड़ी फसल से नमूना लेना हो तो पंक्तियों के बीच से लेना चाहिए.
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अगर फसल के लिए नमूना ले रहें हो तो सतह से 6 इंच गहराई तक लेना चाहिए.
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बागवानी फसलों के लिए नमूना लेना हो तो सतह से 60 सेमी की गहराई तक नमूना लेना चाहिए.
यहां करवाई जा सकती है मिट्टी की जांचअगर किसान मिट्टी का जांच करवाना चाहते हैं तो इसके लिए कृषि विभाग की मदद से जिले स्तर पर स्थापित कृषि विभाग में मिट्टी की जांच फ्री में करवा सकते हैं, साथ ही किसान का निःशुल्क सॉयल हेल्थ कार्ड बनाया जाता है. इसके अलावा किसान प्राइवेट मिट्टी परीक्षण केन्द्र के माध्यम से भी मिट्टी की जांच करवा सकते हैं.
यह लेख कानपुर (उत्तर प्रदेश) के राज सिंह द्वारा साझा किया गया है.