Tractor Diesel Saving Tips: ट्रैक्टर में डीजल बचाने के 5 आसान तरीके, जिनसे घटेगी लागत और बढ़ेगा मुनाफा आगरा में स्थापित होगा अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र, मोदी कैबिनेट ने 111.5 करोड़ की परियोजना को दी मंजूरी यूपी में डेयरी विकास को बढ़ावा, NDDB को मिली तीन संयंत्रों की जिम्मेदारी किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ जायटॉनिक नीम: फसलों में कीट नियंत्रण का एक प्राकृतिक और टिकाऊ समाधान फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 2 November, 2020 1:41 PM IST

देश में बड़ी मात्रा में फसल अवशेष पैदा होता है. इनका उपयोग मुख्य तौर पर पशु चारे, घरेलू और औद्योगिक ईंधन के रूप में किया जाता है, किन्तु नवीनतम मशीनों जैसे कम्बाइन के उपयोग और मानव श्रम की कमी के कारण यह समस्या साल भर बनी रहती है, विशेषतौर पर धान की कटाई के समय.

वातावरणीय, मानव एवं पशु स्वास्थ में होने वाले दुष्प्रभाव:       

फसल कटाई के बाद विशेषकर धान की कटाई के बाद जो अवशेष बच जाता है उसे किसान जला देते है. इस कारण मिट्टी की संरचना बिगड़ना, मिट्टी में उपस्थित जैविक सूक्ष्म जीव भी नष्ट हो जाते हैं. जिसका सीधा असर वातावरण, मानव एवं पशु स्वस्थ्य पर तो पड़ता है, साथ ही साथ अगली फसल की उत्पादकता पर भी पड़ता है. क्योंकि मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं और पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए लागत में बढ़ोतरी होना स्वाभाविक है. इस समस्या के वातावरणीय दुष्परिणाम से ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ रहा है, जिससे गर्मी की अवधि बढ़ना, मौसम में अनिश्चितता, कीट व रोगों का बढ़ाना आम है.     

यह जो अवशेष अनुपयोगी रह गया है वह नवकरणीय ऊर्जा का स्त्रोत होता है. फसल अवशेषों को जलाने से लगभग 40 प्रतिशत कार्बन डाइ ऑक्साइड, 32 प्रतिशत कार्बन मोनोऑक्साइड तथा 50 प्रतिशत हाइड्रोकार्बन पैदा होता है. जो पूरे वातावरण को दूषित कर मानव एवं पशु स्वस्थ्य पर विपरीत असर डालता है.  

समाधान:

  • समिश्रित खेती करने से इसका हल कुछ हद तक किया जा सकता है, जैसे फसल अवशेष का उपयोग मुर्गीपालन में बिछावन के रूप में, पशुआहार के लिए, पशु आवास या कच्ची छत निर्माण आदि में किया जा सकता है.

  • खेत में ही फसल अवशेष को कम अवधि पर खाद बनाने की तकनीक का तेजी से प्रसार करना.

  • कम अवधि पर खाद बनाने की तकनीक के प्रदर्शन में बढ़ावा देना.

  • फसल अवशेषों को खेत में ही पुनः जोतकर कृषि यत्रों में सरकारी प्रोत्साहन देकर मिट्टी के स्वास्थ्य में बढ़ोतरी की जा सकती है.

  • सरकारी या निजी स्तर पर फसल अवशेष की खरीद व बाजार स्थापित करना

  • फसल अवशेष का जैव ईंधन उत्पादन और मशरूम की खेती में उपयोग करना.

  • इसी प्रकार इसका उपयोग बायो-ईंधन, कार्बनिक उर्वरकों और कागज और गत्ता बनाने वाले उद्योगों में उपयोग किया जा सकता है.

  • फसल अवशेष जलने के स्वास्थ्य पड़ रहे दुष्प्रभाव को उजागर करने के बड़ी मात्रा में जन जागरूकता अभियान चलाने चाहिए.

  • सरकारी सहयोग से फसल अवशेष निस्तारण यंत्रो पर सहायता देना. जैसे हैप्पी सीडर, रोटावेटर, जीरो टिलेज व स्ट्रॉ बाइंडर पर प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है.

English Summary: Side effects by burning crop residues and its solutions
Published on: 02 November 2020, 01:44 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now