जायद फसलें बहुत ही महत्वपूर्ण सुरक्षात्मक खाद्य पदार्थ हैं, जो मानव पोषण में अहम भूमिका निभाती हैं. खाद, सिंचाई एवं कीटनाशकों के समुचित प्रयोग से इन फसलों से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है. चूंकि खरीफ और जायद की फसलों में संक्रामक रोगों का खतरा अधिक होता है, इसलिए वैज्ञानिकों ने उन पर शोध करके बहुत ही प्रभावशाली कीटनाशक विकसित किए हैं. परंतु पादप रोग विविध प्रकार के होते हैं और संक्रमण फैलाने वाले रोगाणु भी विभिन्न प्रकार के होते हैं.
इन रोगाणुओं में, बैक्टीरिया और कवक के कारण होने वाले रोग प्रत्यक्षक लक्षण दर्शाते हैं. लेकिन वायरस ऐसे रोगाणु होते हैं जो पौधों पर हमला करने पर लक्षण पैदा नहीं करते हैं. हालांकि कुछ वायरस ऐसे भी होते हैं जो फसलों में लक्षण पैदा करते हैं. इसलिए इस आर्टिकल में में हम टमाटर की उपज में वायरस के प्रतिकूल प्रभावों पर चर्चा करेंगे और साथ ही यह भी जानेंगे कि हम अपनी फसलों को वायरस से कैसे बचा सकते हैं.
आखिर टमाटर की खेती में वायरस संक्रमण एक समस्या क्यों है ?
टमाटर में आमतौर पर पाए जाने वाले वायरल रोगों के लक्षण हैं: पत्ती का सिकुड़ना, फलों में धब्बा लगना और अवरुद्ध विकास. ककड़ी मोज़ेक वायरस, तंबाकू मोज़ेक वायरस और टमाटर स्पॉटेड विल्ट वायरस इन उपर्युक्त लक्षणों को उत्पन्न करते हैं.
पौधे में वायरस की आनुवंशिक सामग्री के एकीकरण के बाद वायरस अव्यक्त हो जाता है और रोग के लक्षण पैदा नहीं करता। चूँकि वायरस स्वयं गुणन के लिए पौधे की कोशिका सामग्री का शोषण करते हैं, इसलिए वे उपज और गुणवत्ता को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं.
बीज के माध्यम से भी वायरस का संचरण हो सकता है. आजकल किसान विदेशी रोपण सामग्री का आयात कर रहे हैं जिनमें से अधिकांश का वायरस के लिए परीक्षण नहीं किया जाता है. इसलिए वायरस संक्रमण भविष्य में एक बड़ी महामारी बन सकता है.
टमाटर में वायरस संचरण के मुख्य कारण
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जड़ सूत्रकृमि: ये परजीवी टमाटर को प्रभावित करने वाले सबसे खतरनाक प्रकार के सूत्रकृमि हैं। ये परजीवी पौधों की जड़ों को संक्रमित करते हैं और विशाल कोशिकाओं के निर्माण को प्रेरित करते हैं जिससे पौधों के पोषण और पानी के उद्ग्रहण में कमी आती है. उनके कारण होने वाले घाव वायरस के संक्रमण को प्रेरित कर सकते हैं.
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रोपाई से उत्पन्न घाव: कोशिका भित्ति वायरस के खिलाफ एक अद्भुत बाधा है, लेकिन घाव इसके व्यवधान का कारण बनता है और वायरस के आक्रमण को आसान बनाता है.
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कीटों के माध्यम से संचरण: अधिकांश वायरस भृंग, सफेद मक्खी़, खटमल और लीफहॉपर द्वारा फैलते हैं. ये सभी कीट पौधे का रस चूसते हैं या पत्तियों को खाते हैं, जिसके कारण वे संक्रमित पौधों से स्वस्थ पौधों तक वायरस के कणों को ले जा सकते हैं.
टमाटर में वायरस के संक्रमण को रोकने के विभिन्न तरीके
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संक्रमित पौधों का उन्मूलन: नियमित रूप से पौधों की जांच करें. यदि वायरस के लक्षण प्रदर्शित करने वाले पौधे पाए जाते हैं, तो जड़ों सहित पूरे पौधे को हटा दें.
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प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग: टमाटर की कुछ किस्में ऐसी हैं जो एक या दूसरे वायरस के प्रति प्रतिरोधी हैं. टमाटर की वायरस प्रतिरोधी किस्मों में शामिल हैं: संक्रांति, नंदी, वैभव और पूसा 120.
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खेत और उपकरणों की नियमित स्वच्छता: उपयोग करने से पहले सभी उपकरणों को कीटाणुनाशक घोल में कीटाणुरहित किया जाना चाहिए. टमाटर को उसी खेत में दोबारा लगाने से बचें क्योंकि जड़ के मलबे में वायरस जीवित रह सकता है. कटाई की अवधि के बाद रोगग्रस्त क्षेत्रों से सभी पौधों को जला दें या उन्हें सब्जी उत्पादन क्षेत्रों से दूर दफन कर दें.
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सुरक्षित रोपण सामग्री: प्रमाणित रोग मुक्त बीज का उपयोग करें या किसी प्रतिष्ठित स्रोत से रोपण सामग्री खरीदें. आजकल रोगमुक्त पौधों की खेती का एक नया चलन तेजी से फैल रहा है. टिशू कल्चर कंपनियां स्वच्छ परिस्थितियों में रासायनिक पोषक तत्वों पर फसलों की खेती करती हैं और रोग मुक्त पौधों का उत्पादन करती हैं. यदि टमाटर की रोपण सामग्री टिशू कल्चर कंपनियों से प्राप्त की जाए तो फसलें अच्छी गुणवत्ता और उपज देंगी.
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उचित कीट नियंत्रण: कीटनाशकों के उपयोग से कीट द्वारा स्वस्थ पौधों के संदूषण को रोका जा सकता है. मिट्टी में सूत्रकृमि के नियंत्रण के लिए फॉस्थियाजेट जैसे सूत्रकृमिनाशक विकसित किए गए हैं.
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वर्तमान में वायरस संक्रमित पौधे के उपचार के लिए कोई रासायनिक विकल्प नहीं है. वायरल संक्रमण को रोकने का एकमात्र तरीका कीटों, रोगग्रस्त पौधों और दूषित उपकरणों के माध्यम से इसके संचरण को रोकना है. साथ ही किसानों को टिशू कल्चर विधि से बनाए गए पौधों के लाभ समझने की भी आवश्यकता है. हालांकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों ने टमाटर की कुछ वायरस प्रतिरोधी किस्में जारी की हैं, लेकिन अभी भी किसान अपनी स्वयं की परंपरागत रोपण सामग्री का उपयोग करते हैं. अतः कृषि मंत्रालय को प्रमाणित रोग मुक्त रोपण सामग्री खरीदने वाले किसानों को सब्सिडी प्रदान करने की योजना शुरू करनी चाहिए.