यह एक बेहद नई सिंचाई प्रणाली है जिसमें सेन्सर की मदद से मिट्टी में उपलब्ध नमी की मात्रा के आधार का पता कर स्वतः ही पौधों की जड़ों के पास पानी को ड्रिप सिंचाई के मदद से दे दिया जाता है.
मृदा नमी सेंसर आधारित स्वचालित ड्रिप सिंचाई प्रणाली में प्रयोग होने वाले उपकरण (Equipment used in soil moisture sensor based automatic drip irrigation system)
सेंसर आधारित ऑटोमेंटिक ड्रिप इरिगेशन सिस्टम में मुख्यतः पारंपरिक ड्रिप सिंचाई में उपयोग होने वाले उपकरणों के साथ-साथ एक सिंचाई कंट्रोलर, मोटर रिले, सोलेनोइड वाल्व व मृदा नमी सेंसर को भी उपयोग में लिया जाता है. फसल उत्पादन में मृदा नमी सेंसर को खेत में पोधे की जड़ के पास मृदा में दबा दिया जाता है. खेत में जाने वाले पाइप के बीच में सोलेनोइड वाल्व को लगाते हैं, जो कंट्रोलर के द्वारा दिये संकेत के आधार पर खुलता व बंद होता है. ये फसल मिर्च, कपास, कदुवर्गीय, भिंडी या बागवानी फसल हो सकती है, जिनमें ड्रिप इरीगेशन सिस्टम उपयोग किया जाता है.
मृदा नमी सेंसर प्रणाली की कार्य पद्धति (Working Method of Soil Moisture Sensor System:)
मृदा नमी सेंसर आधारित ड्रिप सिस्टम में, सेंसर 1 घंटे के समय अंतराल के बाद संकेत के माध्यम से सर्वर को मिट्टी में उपलब्ध नमी की मात्रा का डेटा संचारित करते हैं. फसल के लिए कंट्रोलर के डेटाबेस में नमी की मात्रा फिक्स कर देते हैं. इस नमी की मात्रा से कम नमी होने पर सिस्टम औटोमेंटिक शुरू हो जाता है. सेंसर से प्राप्त नमी संकेतों की तुलना तब तक की जाएगी जब तक कि सेंसर से प्राप्त नमी की मात्रा डेटाबेस में पहले से निर्धारित नमी की मात्रा के बराबर नहीं हो जाती, यदि सेंसर से प्राप्त नमी की मात्रा डेटाबेस मेंल खाती हैं या थ्रेसहोल्ड मान से ऊपर हैं, तो माइक्रोकंट्रोलर पौधों को पानी देना बंद करने के लिए पंप को बंद कर देगा. इस पर्याप्त मृदा नमी से पौधों की जड़ों में हमेंशा एक समान नमी बनी रहती है जिससे पौधों की पत्तिया चैड़ी होती हैं और ज्यादा भोजन बना पाती है.
मृदा नमी सेंसर सिस्टम से पौधे को फायदे (Soil moisture sensor system benefits plants)
इस तकनीक का उपयोग करके ऊबड़-खाबड़, समुद्रीय तटीय एवं बंजर जमीन को भी उपयोगी बनाया जा सकता है. इस पद्धति को अपनाने से जल को 30 से 60 प्रतिशत तक बचा सकते हैं. इसके प्रयोग से फसल में दिये जाने वाले रसायनिक उर्वरक की मात्रा 30 से 45 प्रतिशत तक कम हो जाती है. इस सिंचाई पद्धति में पानी जड़ के समीप ही दिया जाता है.
जिससे आस पास की सूखी भूमि में अनावश्यक खरपतवार पैदा नही होते है. जिससे भूमि में उपलब्ध पोषक तत्व सिर्फ पौधे ही उपयोग करते हैं. इस तकनीक के प्रयोग से अधिक उत्पादन के साथ उच्च गुणवत्ता वाली उपज मिलती है, जिसका बिक्री मूल्य ज्यादा होता है.