भिंडी एक लोकप्रिय सब्जी है जिसे लोग लेडीज फिंगर या फिर ओकरा के नाम से भी जानते है. भिंडी की अगेती फसल को लगाकर किसान भाई अधिक से अधिक लाभ को अर्जित कर सकते है. दरअसल भिंडी में मुख्य रूप से कार्बोहाइट्रेड, कैल्शियम, फॉस्फेरस के अतिरिक्त विटामिन बी और सी की मात्रा पाई जाती है. इसमें विटामिन ए और सी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है. भिंडी के फल में आयोडीन की मात्रा अधिक पाई जाती है. भिंडी का फल कब्ज रोगियों के लिए विशेष रूप से गुणकारी होता है. मध्य प्रदेश समेत कई जिलों में भिंड की उपज को प्राप्त करने के लिए संकर भिंडी की किस्मों काविकास कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा किया गया था.
भिंडी की खेती की तैयारी
भिंडी के लिए दीर्घ अवधि गर्म और नम वातावरण काफी ज्यादा श्रेष्ठ माना जाता है. बीज उगाने के लिए 27-30 डिग्री सेल्सियस का तापमान बेहतर माना जाता है. और 17 डिग्री सेल्सियस से कम पर बीज अकुंरित नहीं होते है.इस भूमि पीएच मान 7.0 और 7.8 होना बेहतर माना जाता है. भूमि की दो से तीन बार जुताई करके भुरभुरी करके उसको और पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए.
बीज की मात्रा और बुआई का तरीका
सिंचित अवस्था में 2.5 से 3 किग्रा और असिंचित अवस्था में 5-7 किलोग्राम प्रतिहेक्टेयर की आवश्यकता होती है. संकर किस्मों के लिए5 किलोग्राम की प्रतिहेक्टेयर की दर से बीज पर्याप्त होता है.भिंडी के बीज सीधे खेत में बोये जाते है. इसके बीज की बुआई करने से पहले खेत की जुताई 3 से 4 बार करनी चाहिए.वर्षाकालीन भिंडी के लिए कतार से कतार की दूरी 40 से 45 सेमी और कतारों में पौधें के बीच 25-30 सेमी का अंतर रखना चाहिए. ग्रीष्मकालीन भिंडी की भी बुआई को कतारों में ही करना चाहिए. कतार से कतार के बीच की दूरी 15 से 20 सेमी रखनी चाहिए. बीज की 2 से 3 सेंटीमीटर गहरी बुआई करनी चाहिए. बुवाई के पूर्व भिंडी के बीजों को कुल 3 ग्राम मेन्कोबज कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए.पूरे के पूरे खेत को उचिक पट्टियों में बांट लें जिससे कि सिंचाई करने में सुविधा हो, वर्षा ऋतु में जलभराव आदि से बचाव के लिए क्यारियों में भिंडी की बुआई करना काफी उचित रहता है.
बुआई का समय
अगर हम भिंडी की बुआई की बात करें तो ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुआई फरवरी या मार्च में और वर्षाकालीन भिंडी की बुआई जून और जुलाई में की जाती है. अगर आपको भिंडी की फसल लगातार लेनी है तो तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के मध्य अलग-अलग खेतों में भिंडी की बुआई की जा सकती है.
खाद और उर्वरक
भिंडी की फसल में अच्छा उत्पादन लेने हेतु प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 15-20 टन गोबर की खाद एवं नत्रजन, स्फाटा, पोटाश की क्रमशः 80 किलोग्राम, 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में दे देना चाहिए. नत्रजन की आधी मात्रा और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व भूमि में डाल देना चाहिए. नत्रजन की शेष मात्रा को दो भागों में बांट देना चाहिए.
निराई व गुडाई
नियमित गुड़ाई और निराई से खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए. इसे बोने के 15 से 20 दिन बाद पहली निराई गुड़ाई करना बेहद जरूरी है. खरपतवार नियंत्रण हेतु फ्ल्यूक्लोरिनकी 10 किलोग्राम सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज के बोने से पूर्व मिलाने से प्रभावी नियंत्रइत किया जा सकता है.
सिंचाई
सिंचाई मार्च में 10 से 12 दिन, अप्रैल में 7 से 8 दिन और मई जून में 4-5 दिन के अंतर में करें. बरसात के मौसम में यदि नियमित वर्षा हो तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है.
पौध संरक्षण
भिंडी के रोगों में यलो वेनमोजैक वैइरस और कीटों में मोयला, हरा तेला, सफेद मक्खी, प्ररोहे, फल छेदक कीट, रेड स्पाइडर माइट आदि मुख्य है.
कटाई व उपज
भिंडी की तुड़ाई हेतु पॉड पिकर यंत्र का प्रयोग करें. इसकी किस्म के गुणवत्ता के अनुसार 45-60 दिनों में फलों की तुड़ाई को प्रारंत्र कर दिया जाता है. 4 से 5 दिनों के अंतराल पर इनकी नियमित तुड़ाई करने का कार्य करना चाहिए. ग्रीष्मकालीन भिंडी फसल में उत्पादन 60-70 क्विंटल प्रति हेक्येटर ही होता है. भिंडी की तुड़ाई हर तीसरे और चौथे दिन में आवश्यक हो जाती है.तोड़ने में ज्यादा समय हो जाने पर इसका फल कड़ा हो जाता है. फल को फूल खिलने के 5-7 दिन के भीतर अवश्य तोड़ लेना चहिए. उचित देखरेख , उचित किस्म, खाद और उर्वरकों के प्रयोग से हरी फलिंया प्राप्त होजाती है.