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Updated on: 11 February, 2021 12:59 PM IST
Gram Cultivation

भारत विश्व में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक, आयातक और उपभोक्ता है. गत कई वर्षों से देश में चावल व गेहूँ का पर्याप्त भंडार है, परंतु दालों की कमी रही है. जिसके परिणामस्वरूप दालों की प्रति व्यक्ति प्रतिदिन उपलब्धता वर्ष 1961 में 65 ग्राम से घटकर वर्ष 2016-17 में मात्रा 39.4 ग्राम रह गई. जबकि इसी अवधि में अनाजों की उपलब्धता 399.7 से बढ़कर 423.5 ग्राम हो गई. एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक दालों की आवश्यकता 32 मिलियन टन होगी. भारत की आधे से अधिक आबादी के लिये दालें न केवल पौष्टिकता का आधार है, बल्कि प्रोटीन का सबसे सस्ता स्रोत भी है. साथ ही भोजन में दालों की पर्याप्त मात्रा होने से प्रोटीन की कमी से होने वाले कुपोषण को भी रोका जा सकता है.

विश्व स्तर पर दालें स्वास्थ्य, पोषण, खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ पर्यावरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. रबी में उगायी जाने वाली दलहनी फसलों में चने का महत्त्वपूर्ण स्थान है. दलहनी फसलों के अंतर्गत इसका क्षेत्रफल एवं उत्पादन सबसे अधिक है. चना एक महत्त्वपूर्ण रबी फसल है. चना हमारे भोजन का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जो अधिकांश प्रोटीन की आपूर्ति करता है. चना प्रोटीन और आवश्यक अमीनों अम्लों की आपूर्ति के साथ-साथ जमीन की उपजाऊ शक्ति को भी बढ़ाता है. साथ ही फसल चक्र में चना की फसल लेने से मृदा उर्वरता और गुणवत्ता में भी सुधार होता है. परिणामस्वरूप अगली फसलों का उत्पादन भी अच्छा होता है. चने का प्रयोग दाल के रूप में, भुने हुए चने या उबले हुए चनों में नमक लगातार किया जाता है. चने का छिलका व दाल पशुओं का स्वादिष्ट, पौष्टिक व ताकतवर भोजन है.

चने की भूसी फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, जिंक और मैंग्नीज का अच्छा स्रोत है. हरे चने की ताजी पत्तियाँ साग बनाने में प्रयोग की जाती है. हरे चने के दानों को सब्जी के रूप में भी प्रयोग किया जाता है. चने का भूसा भी पशुओं का सर्वोत्तम आहार है. चने के बेसन से विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ बनाई जाती हैं. चने का प्रयोग खून साफ करने में भी चिकित्सीय महत्व का है. विश्व में भारत, भूमध्य क्षेत्र, इथोपिया, मैक्सिको, अर्जेंटीना, चिली व पेरू में चने की खेती बहुतायत में की जाती है. भारत, विश्व में सबसे अधिक चना उत्पादन करने वाला देश है. भारत में चने का क्षेत्रफल 9.60 मिलियन हेक्टेयर तथा उत्पादन 8.80 मिलियन टन है. भारत में चना उगाने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार व पंजाब प्रमुख है. हमारे देश में चने की औसत पैदावार मात्र 9.20 क्विं/हे॰ है.

चने का पोषण तत्वीय संठन

क्रमांक

घटक

पोषण मान (प्रतिशत में)

1.

कार्बोहाइड्रेट

55.5

2.

प्रोटीन

19.4

3.

वसा

4.5

4.

रेशा

7.4

5.

खनिज लवण

3.4

6.

पानी

10.2

प्रति 100 ग्राम खाद्य भाग में पोषण मान (मि.ग्रा. में)

7.

कैल्शियम

280.0

8.

फॉस्फोरस

301.0

9.

लोहा

12.3

10.

ऊर्जा

396.0

 

Farmer

चने की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण      

विल्ट (उकथा) रोग

इसे आम बोलचाल की भाषा में उकठा रोग कहा जाता है. यह रोग शुरुआत में चने की फसल में छोटे छोटे टुकड़ों में होता है. इस रोग के प्रकोप से पहले पौधे की पत्तियां मुरझाकर सूखने लगती है. लेकिन बाद में चने का पूरा पौधा सूख जाता है. इस रोग से ग्रसित पौधे के तने को चीरकर देखने पर उसमें धागे नुमा काली लाइन नज़र आती है.

नियंत्रण 

  • उकठा रोग के नियंत्रण के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए यानी की हर वर्ष चने के बुआई के लिए जगह बदल देनी चाहिए.

  • रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करना चाहिए.

  • बुआई से पहले बीज को उपचारित कर लेना चाहिए.

  • यदि चने की खड़ी फसल में यह रोग दिखाई दे, तो कार्बेन्डाजिम (50 % WP) का प्रयोग करें.

जड़ सड़न

इस रोग के प्रकोप से पौधे के तने पर सफेद-सफेद फफूंद के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. वहीं ऊपर की तरफ काले रंग की बिंदियां दिखाई देने लगती है. तना फटकर धीरे-धीरे सूख जाता है.

नियंत्रण                  

  • फसल में यह रोग न लगे इसलिए बीज को उपचारित करके बोना चाहिए.

  • खड़ी फसल में रोग दिखाई दे तो कार्बेन्डाजिम (50 % WP) का छिड़काव करना चाहिए.

अंगमारी रोग

इस रोग के प्रकोप से पत्तियों, तने और फलियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. चने की फसल में यह बीमारी फरवरी और मार्च के महीने में नज़र आती है.

नियंत्रण 

  • इस रोग के नियंत्रण के लिए बीज को उपचारित करके ही बोना चाहिए.

  • खड़ी फसल में यह रोग नज़र आये तो मैंकोजेब (75 % WP) का छिड़काव करें.

झुलसा रोग

नीचे की पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है, और धीरे-धीरे पत्तियां झड़ने लगती है. इस रोग के कारण पत्तियों पर शुरुआत में बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, और जो बाद में भूरे रंग में तब्दील हो जाते हैं. जिससे पौधा कमजोर हो जाता है और फलियां कम लगती है.

नियंत्रण

  • बीज को उपचारित करके ही बोना चाहिए.

  • अगर खड़ी फसल में यह रोग नज़र आये तो मैंकोजेब (75 % WP) का छिड़काव करें.

चने की खेती के लिए सिंचाई

भारत में चने की खेती सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में की जाती है. सिंचित क्षेत्र के लिए पलेवा करके इसकी बुआई की जाती है. इसके बाद इसमें सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है. लेकिन यदि आपके पास सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था है, तो बुआई के 30 से 40 दिन बाद, फूल आने की अवस्था से पहले इसमें एक हल्की सिंचाई कर देना चाहिए. जिससे फसल की पैदावार में इजाफा हो जाता है.

चने में खरपतवार नियंत्रण

अच्छी पैदावार के लिए चने की फसल की सही समय पर निराई गुड़ाई करना बेहद आवश्यक है. बुआई के 30 से 40 दिनों के बाद खेत की अच्छे से निराई गुड़ाई कर दें, वहीं खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालिन 30 ई.सी. को 2-5 लीटर की मात्रा में घोलकर छिड़काव करें. वहीं जिन क्षेत्रों में घास अधिक है, वहां क्यूजालोफोप इथाईल 5.0 ई.सी. का छिड़काव करना चाहिए. 

चने की कटाई व मड़ाई

जब फसल पक कर सुखने लगे तब इसकी कटाई करना चाहिए. कटाई के बाद इसकी मड़ाई की जाती है. वहीं इसे आप थ्रेसर में भी निकाल सकते हैं. दरअसल, चने की फसल अच्छी तरह सूख जाने के बाद इसे खलियान में इकट्ठा करके दाने और भूसे को अलग किया जाता है.

चने का भंडारण

बता दें कि चने की फसल नमी की अधिकता होने पर ख़राब हो जाती है. वहीं इसमें अन्य दलहनी फसलों की तरह घुन अधिक लगता है, इसलिए इसे अच्छी तरह सुखाकर उपयुक्त जगह भंडारित करना चाहिए.

लेखक: आदित्य कुमार सिंह1, डॉ.नरेन्द्र सिंह2, डॉ.एच.एस.कुशवाहा3

1वैज्ञानिक/तकनीकी अधिकारी, क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र, भरारी, झाँसी

2एसोसिएट प्रोफेसर, बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा, उत्तर प्रदेश

3प्रोफेसर, महात्मा गाँधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, चित्रकूट, सतना, मध्य प्रदेश

English Summary: Scientific Techniques of Gram Crop Production
Published on: 11 February 2021, 01:18 PM IST

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