Krishi Yantra Yojana: रोटावेटर और मल्टी क्रॉप थ्रेशर समेत इन 6 कृषि यंत्रों पर मिल रहा 50% तक अनुदान, जानें कैसे उठाएं लाभ Dudharu Pashu Bima Yojana: दुधारू पशुओं का होगा बीमा, पशुपालकों को मिलेगी 75% सब्सिडी, जानें पात्रता और आवेदन प्रक्रिया! PM Kusum Yojana से मिलेगी सस्ती बिजली, राज्य सरकार करेंगे प्रति मेगावाट 45 लाख रुपए तक की मदद! जानें पात्रता और आवेदन प्रक्रिया Rooftop Farming Scheme: छत पर करें बागवानी, मिलेगा 75% तक अनुदान, जानें आवेदन प्रक्रिया भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ महिलाओं के लिए तंदुरुस्ती और ऊर्जा का खजाना, सर्दियों में करें इन 5 सब्जियों का सेवन ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक Wheat Farming: किसानों के लिए वरदान हैं गेहूं की ये दो किस्में, कम लागत में मिलेगी अधिक पैदावार
Updated on: 5 December, 2019 2:02 PM IST

पिप्पली एक औषधीय पौधा होने के साथ यह एक महत्वपूर्ण मसाला भी है तथा इसे औद्योगिक उत्पादों के निर्माण में भी प्रयुक्त किया जा सकता है. इस पौधे को उचित बढ़त के लिए सहारे की जरुरत होती है. इसकी खेती पर एनएमपीबी द्वारा 30 फीसद अनुदान दिया जा रहा है.चलिए हम आपको पिप्पली की खेती के बारे में विस्तार से बताते हैं.

जलवायु और मिट्टी

इस पौधे को गर्म, नमी वाली जलवायु की जरुरत होती है. बेहतर बढ़त के लिए इसे आंशिक छाया की जरुरत होती है. यह मिश्रित किस्म की मिट्टी में अच्छी तरह फलती-फूलती है. उच्च जैविक पदार्थयुक्त, जल धारण तथा अच्छी निकासी वाली उपजाऊ वाली दोमट मिट्टी में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है.

उगाने की साम्रगी

वर्षा ऋतु की शुरुवात में तनों/शिराओं की कटाई के माध्यम से इसे उगाया जाता है.

हालांकि 3-5 आंतरिक गांठो वाले एक साल पुराने तनों की कटिंग के माध्यम से इसे आसानी से उगाया जा सकता है.

कटिंग को सामान्य मिट्टी से भरे हुए पालीथिन बैगों में लगाया जा सकता है. नर्सरी को मार्च और अप्रैल के दौरान तैयार किया जाता है.

नर्सरी विधि

पौध उगाना

तनों/शिराओं को मानसून की वर्षा आरंभ होने के तुरंत बाद रोपा जा सकता है.

जड़ों पर मीली बग के हमले से बचाने के लिए नर्सरी उगाने का सही समय मार्च और अप्रैल के दौरान होता, मिट्टी के मिश्रण के साथ 10 प्रतिशत डीपी मिलाया जाना है.

पौधों को रोपना

3.0 X 2.0 मी. की क्यारियां तैयार की जाती है और 60 X60 सेमी की दूरी पर गड्ढे खोदे जाते हैं तथा गोबर की खाद 100 ग्राम/गड्ढे की दर से मिट्टी के साथ मिलाई जाती है.

दो जड़ों वाली कटिंग या जड़ों वाले तनों को हर गड्ढे में रोपा जाता है.

खेत में रोपण

भूमि की तैयारी और खाद का प्रयोग

2-3 बार जुताई और उसके बाद निराई और गुड़ाई की जरुरत होती है.

पिप्पली को काफी खाद की जरुरत होती है. कम उपजाऊ भूमि में पौधे की बढ़त बहुत कमजोर होती है.

तैयारी करते समय लगभग 20 टन/हेक्टेयर उर्वरक या अन्य जैविक खाद डाली जाती है.

बाद के वर्षो में भी मानसून के आने से पहले उर्वरक या अन्य जैविक खाद डालनी होती है.

संवर्धन विधि

जरुरत पड़ने पर निराई आवश्यक होती है.

आमतौर पर दो से तीन निराई काफी है.

नारियल, सुहाबुल इत्यादि के साथ इसकी खेती की जा सकती है.

सिंचाई विधियां

गर्मी के महीनों में सिंचाई अत्यंत आवश्यक है.

भूमि की जल धारण क्षमता और मौसम के अनुसार एक सप्ताह में एक या दो बार सिंचाई की जानी चाहिए.

सिंचाई की गई फसल में गर्मी के महीनों में भी फल लगने जारी रहते है.

कीट और बीमारियां

फाइटोप्थोरा पत्ती, तने की सड़न और एंथ्रेक्नोस पिप्पली की महत्वपूर्ण बीमारियां है.

15 दिनों के अंतराल पर 0.5 प्रतिशत बोर्डेक्स मिश्रण के छिड़काव और मासिक अंतराल पर 1.0 प्रतिशत  बोर्डेक्स मिश्रण से भूमि की उपचार इन बीमारियों से होने वाले मुकसान को कम करती है.

0.25 प्रतिशत नीम के बीजों की गिरी या नीम आधारित किसी अन्य कीटनाशक का छिड़काव कोमल पत्तियों और कलियों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों पर प्रभावी तौर पर नियंत्रण करता है.

फसल प्रबंधन

फसल पकना और कटाई

इसकी लताएं रोपण के छह महीने के बाद फूलने लगती है.

इसके फलों को पकने में दो महीने का समय लगता है.

पूरी तरह परिपक्व फल, पकने से पहले तोड़े जाते हैं, जब ये पके और काले हरे रंग के हो जाते हैं.

अधिक परिपक्व और पके हुए फलों से इपज की गुणवत्ता घटती है और ये पूरी तरह सूखने के बाद आसानी से नहीं टूटते.

पहले साल में सूखे फलों की उपज 100-150 किलो/हेक्टेयर होती है और तीसरे , चौथे साल में 0.75-1.0 टन/हेक्टेयर हो जाती है.

उसके बाद इपज घटने लगती है और धीरे-धीरे पांचवें साल के बाद अनार्थिक हो जाती है.

आमतौर पर 4 से 5 वर्षीय फसल के तौर पर इसकी खेती की जैती है.

फसल पश्चात प्रबंधन

कटी हुई बालियों को धूप में 4 से 5 दिन तक सुखाया जाता है जब तब वे पूरी तरह न सूख जायें.

सुखाई गई बालियों को नमी रहित पात्रों में भंडारण किया जाता है.

इन्हें 3.0 से 5.0 सेमी लंबे छोटे टुकड़ों में काटा और सुखाया जाता है.

औसतन प्रति हेक्टेयर में लगभग 500 किलो जड़ें प्राप्त होती है.

छंटाई

तने और जड़ों को सुखाए हुए मोटे भागों में पिप्पलामूल कहा जाता है.

पिप्पलामूल की तीन श्रेणियां होती है.

पैदावार

पहले साल में सूखे फलों की उपज लगभग 100-150 किलो/हेक्टेयर होती है और तीसरे से चौथे साल में 0.75-1.0 टन/हेक्टेयर हो जाती है.

पहले साल के दौरान सूखी बालियों की उपज लगभग 0.5 टन/हेक्टेयर होती है.

तीसरे साल में यह बढ़कर 1.2 टन/हेक्टेयर तक हो जाती है. तीसरे साल के बाद लताएं कम उत्पादक हो जाती है और फिर से रोपा जाना चाहिए.

जड़ों की औसत उपज 0.5 टन/हेक्टेयर है.

English Summary: Scientific cultivation of Pippali, earning millions of profits
Published on: 05 December 2019, 02:15 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now