जौ खाद्यान्न होने के साथ एक औद्योगिक फसल भी है. हरियाणा में जिन क्षेत्रों में कम सिंचाई होती है, वहां इसे लगाया जाता है. जौ की किस्में जिनकी सिफारिश की जाती है, वह इस प्रकार है:
बी एच 75 - इसकी मुख्य विशेषता यह है कि यह बौनी, छः कतार वाली तथा अधिक फुटाव वाली किस्म है. इसे सिंचाई क्षेत्र में उगाया जाता है. इसके दाने हल्के पीले तथा मध्यम आकार के है. इसकी औसत पैदावार 16 क्विं/एकड़ है. यह पीले रतुए और मोल्या रोग के लिए सहनशील है.
बी एच 393 - यह बौनी, छः कतार वाली तथा अधिक फुटाव वाली किस्म है. इसकी सिफारिश भी सिंचित क्षेत्रों में की जाती है तथा यह समय पर बुवाई के लिए उपयुक्त है. इसकी औसत पैदावार 19 क्विं/एकड़ है. इसका दाना मध्यम आकार का, हल्के पीले रंग का है और इसका छिलका भी पतला है. यह किस्म माल्ट के लिए अति उत्तम है. यह किस्म मोल्या तथा पीले व भूरे रतुए के लिए अवरोधी है परन्तु यह चेपा के लिए सहनशील है.
बी एच 902 - इसके दाने मोटे व गोल है. इसकी औसत पैदावार 20 क्विं/एकड़ है. यह किस्म रतुए व पत्तों के झुलसा के लिए रोधी है.
बी एच 885 - यह किस्म माल्ट के लिए उपयुक्त है. इसके दाने मोटे तथा गोल है और इसके दानो पर महीन छिलका होता है. यह बौनी द्विकतारी तथा अधिक फुटाव वाली किस्म है जो कि सिंचित दशा के लिए उपयुक्त है. यह किस्म माल्ट उद्योगों के लिए बहुत ही उत्तम है. इसकी औसत पैदावार 20 क्विं/एकड़ है तथा यह रोग - रोधी है पीला रतुआ व पत्तों के झुलसा के लिए.
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बी एच 946 - इसकी औसत पैदावार 21 क्विं/एकड़ है. यह छः कतारी तथा कम गिरने वाली किस्म है. यह पीला रतुआ व पत्तों के झुलसा के लिए अवरोधी है. इसके दाने बहुत ही मोटे होते हैं.
ज्योति, देवव्रत
आनुवंशिकी व पौध प्रजनन विभाग
चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार