पिछले कुछ सालों से मैदानी क्षेत्र के किसानों में रबी के मौसम में राजमा की खेती करने का चलन काफी बढ़ गया है. हालांकि, राजमा की खेती कितने रकबे में होती है इसके कोई सरकारी आंकड़े उपलब्ध नहीं है. हम आपको राजमा की आधुनिक खेती करने के तरीके और उन्नत किस्मों के बारे में बता रहे हैं.
राजमा की प्रमुख उन्नत किस्में (Major improved varieties of Rajma)
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पीडीआर 14 - इस किस्म को उदय के नाम से भी जाना जाता है. जिसके दानों का रंग लाल चित्तीदार होता है. यह 125 से 130 दिन में पक जाती है और इससे प्रति हेक्टेयर 30 -35 क्विंटल राजमा पैदा होता है.
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मालवीय 137- 110 से 115 में पकने वाली इस किस्म के दानों का रंग लाल होता है. इससे प्रति हेक्टेयर 25 से 30 क्विंटल की पैदावार होती है.
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वीएल 63 - यह किस्म 115 से 120 दिनों में पक जाती है. इसके दानों का रंग भूरा चित्तीदार होता है. इससे भी प्रति हेक्टेयर 25 से 30 क्विंटल होती है.
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अम्बर - राजमा की यह किस्म 120 से 125 दिनों में पक जाती है. इसके दानों का रंग लाल चित्तीदार होता है. इससे प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल होती है.
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उत्कर्ष- इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल की पैदावार होती है. दानों का रंग गहरा चित्तीदार होता है. यह किस्म 130 से 135 दिनों में पक जाती है.
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अरुण - इसके दानों का रंग भी गहरा चित्तीदार होता है. यह किस्म 120 से 125 दिनों में पक जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर 15 से 18 क्विंटल की पैदावार होती है.
राजमा के बीज की मात्रा (Rajma seeds quantity)
बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 120 से 140 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है. कतार से कतार की दूरी 30 से 40 सेंटीमीटर, पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर और पौधे की गहराई 8 से 10 सेंटीमीटर रखें. बुवाई से पहले बीज को उपचारित कर लेना चाहिए.
राजमा फसल की बुवाई (Sowing of rajma crop)
इसकी बुवाई का सही समय अक्टूबर का तीसरा और चौथा सप्ताह है. वहीं पछेती बुवाई नवंबर के पहले सप्ताह तक होती है लेकिन इससे पैदावार घट जाती है.
राजमा फसल के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer for Rajma Crop)
राजमा की अ च्छी पैदावार के लिए प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन 120 किलोग्राम, फास्फेट 60 किलोग्राम और पोटाश 30 किलोग्राम देना चाहिए. बुवाई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा यानी 60 किलो देना चाहिए. वहीं शेष आधी मात्रा टाप ड्रेसिंग में दें.
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राजमा फसल की सिंचाई (Irrigation of Rajma Crop)
इसमें 2 से 3 सिंचाई की जरुरत होती है. पहली सिंचाई बुवाई के चार सप्ताह बाद करना चाहिए. दूसरी सिंचाई एक महीने बाद की जाती है. राजमा की फसल में हल्की सिंचाई करना चाहिए.
राजमा फसल की निराई-गुड़ाई (Weeding of Rajma crop)
पहली सिंचाई के बाद खेत की निराई और गुड़ाई करना चाहिए. ध्यान रहे निराई के समय पौधे के ऊपर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए.
राजमा फसल की कटाई (Harvesting of Rajma crop)
राजमा की फलियां पकने पर कटाई कर लेना चाहिए. सुखने के बाद फलियां कूटकर बीज निकाल लेते हैं.