बारिश की नमी से आलू पर पछेती झुलसा (Late blight) का खतरा बना हुआ है. उत्तर भारत में बारिश की वजह से वातावरण में नमी बढ़ने से आलू की फसल पर यह बीमारी गंभीर रूप ले सकती है. खासतौर से उत्तर प्रदेश के पश्चिम और मध्य क्षेत्र में जहां आलू का अधिक उत्पादन किया जाता है. देश में उत्तर प्रदेश आलू उत्पादन का सबसे बड़ा केंद्र है और प्रदेश के किसानों ने इस साल आलू की खेती में खूब दिलचस्पी भी दिखाई है. राज्य में 6.20 लाख हेक्टेयर में आलू की बुवाई हो चुकी है और कुछ जगहों पर बुवाई चल रही है.
मौसम बदलाव के कारण आलू की फसल को हो सकता है नुकसान (Potato crop may loss due to weather changes)
मौसम के पूर्वानुमान के अनुसार ऐसी स्थिति अगले तीन-चार दिनों तक बने रहने की संभावना है. इस प्रकार मौसम की यह स्थिति आलू की फसल में रोग बढ़ाने के लिए बेहद अनुकूल है. केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला के मुताबिक बारिश की वजह से वातावरण में आद्रता बनी हुई है जिससे यह रोग अधिक उग्र हो सकता है. यदि आसमान में 3 से 5 दिन तक बादल छाए रहे और धूप ना निकले या हल्की हल्की बूंदाबांदी हो जाए तो निश्चित तौर पर जान लेना चाहिए कि यह बीमारी महामारी का रूप लेने वाली है.
आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग के लक्षण पहचाने (Identified symptoms of Late blight disease in Potato crop)
यह रोग फंगस से होता है, जिसमें कम तापमान पर यह रोग बहुत जल्दी फैलता है. पछेती झुलसा में पत्तियां किनारों से या पत्ती की नोक से झुलसना रोग शुरू होता है और धीरे-धीरे पूरी पत्ती में फैल जाता है. पतियों के निचले हिस्से में सफेद रंग की फफूंदी दिखाई देने लगती है और इस तरह रोग फैलने से पूरा पौधा काला पड़कर झुलस जाता है और कंद नहीं बनते अगर बनते भी है तो बहुत छोटे बनते हैं साथ ही साथ उनकी भंडारण क्षमता भी घट जाती है. बीमारी के बढ़ने में वातावरण का विशेष प्रभाव होता है.
पछेती झुलसा रोग को कैसे रोकें? (How to prevent Late blight disease)
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इसके बचाव के लिए आलू के खेत में पानी जमा नहीं होने दिया जाना चाहिए तथा जल निकासी बेहतर करनी चाहिए.
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सामान्यता आलू के मेड को 9 इंच ऊंची बनाना चाहिए इसके दो लाभ होते हैं एक तो आलू अच्छे बढ़ते हैं और साथ ही साथ रोग के फैलने की संभावना भी कम हो जाती है.
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इसके उपचार के लिए खेत में जैविक स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस की 250 ग्राम मात्रा को 100 किलो गोबर की खाद (FYM) में मिलाकर एक एकड़ खेत में बिखेर दें.
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या रोग दिखाई देने पर रसायनिक विधि से एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC की 300 मिली मात्रा या क्लोरोथालोनिल 75% WP की 400 ग्राम या कीटाजिन (Kitazin) 48% EC की 300 मिली मात्रा या मेटालैक्सिल 4% + मैनकोज़ेब 64% WP की 600 ग्राम प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें.