मूली एक खाद्य जड़ों वाली फसल है. यह एक जल्दी उगने वाली फसल है जिसकी खेती देश के लगभग सभी जगहों पर की जाती है. मूली विटामिन बी 6, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीश्यिम और रिबोफलेविन का मुख्य स्त्रोत है, साथ ही इसमें एसकॉर्बिक एसिड, फॉलिक एसिड और पोटाश्यिम भी भरपूर मात्रा में होता है.
मूली की खेती के लिए जलवायु (Climate for Radish Farming)
मूली एक ठंडी जलवायु की सब्जी वर्गीय फसल है लेकिन कुछ किस्में अधिक तापमान भी सह सकती है. मूली की खेती के लिए 10-15 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे उपयुक्त माना जाता है.
मूली की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव (Selection of soil for Radish cultivation)
मूली की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी या भुरभुरी मिट्टी जिसमें जैविक तत्वों की उच्च मात्रा और पानी का अच्छा निकास हो, अच्छी रहती है क्योंकि इसकी जड़ों को बढने के लिए जमीन का नरम होना जरूरी होता है.
मूली की किस्में (Varieties of Radish)
जापानीज व्हाइट: यह पिछेती किस्म नवंबर-दिसंबर महीने में बोने के लिए अनुकूल है, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में जुलाई से सितंबर महीने में भी इसकी खेती की जा सकती है. इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ है.
पूसा चेतकी: यह जल्दी पकने वाली किस्म अप्रैल-अगस्त में बोने के लिए अनुकूल है. इस किस्म की सिफारिस पंजाब क्षेत्र के लिए की जाती है. इसकी जड़ें नर्म, बर्फ जैसी सफेद और मध्यम आकार की लंबी होती है. इसकी औसतन पैदावार 105 क्विंटल प्रति एकड़ है. बीज पैदावार के लिए दूसरे वर्ष 4.5 क्विंटल उपज प्रति एकड़ आ जाती है.
पूसा हिमानी: इस किस्म की बिजाई जनवरी-फरवरी महीने में की जाती है. 60-65 दिनों में कटाई के लिए तैयार होती हैं. इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ है.
पंजाब पसन्द: यह अगेती किस्म 45 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इसकी जड़ें लम्बी, सफेद और बालों रहित होती है. इसकी बिजाई मुख्य मौसम (200 क्विंटल प्रति एकड़) और ऑफ सीजन (140 क्विंटल प्रति एकड़) में की जा सकती है.
अर्का निशांत: यह लंबी और गुलाबी जड़ों वाली किस्म है, जो 50-55 दिनों में तैयार हो जाती है.
इसके अलावा पंजाब पसन्द मूली-2, पूसा देशी, पूसा रेशमी किस्म भी अच्छी हैं.
मूली के खेत की तैयारी और बुवाई का तरीका (Soil preparation and Method of sowing in Radish farming)
देशी हल या मिट्टी पलटने वाले हल से पहले गहरी जुताई कर लेनी चाहिए. अंतिम जुताई के बाद पाटा चला देना चाहिए, जिससे मिट्टी के ढेले खत्म हो जाए. 150-200 क्विंटल गोबर की अच्छी सड़ी खाद खेत में अंतिम जुताई के समय मिला दें. इसकी बुवाई किस्म के आधार पर की जाती है लेकिन सामान्य तौर पर अक्तूबर-नवंबर माह में इसकी बुवाई 1.5 सेमी गहरी की जाती है. इसमें पंक्ति से पंक्ति का फासला 45 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 7.5 सेमी रखी उचित रहती है. इसकी बुवाई मेढ़ों को बनाकर करना सही है.
मूली की खेती में पौध संरक्षण (Plant protection of Radish farming)
एफीड: यह कीट पत्तियों से रस चूस कर पौधे को कमजोर और रोग ग्रस्त कर देता है. इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 5 मिली प्रति 15 लीटर पानी या थायोमेथोक्सोम 25 डब्लू जी 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.
पत्ता धब्बा रोग: इस रोग से पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं और फसल मुरझा जाती है. रोग नियंत्रण के लिए मेंकोजेब 75 WP @ 2 ग्राम या कार्बेण्डजीम 50 WP @ 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें.
काली बीटल और पत्ते की सुंडी: यह कीट पत्तियों को चट कर देता है. इसके हमले से बचाव के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 0.5 प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. या जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. आवश्यकता अनुसार छिड़काव को दोहराएं.
मूली की खेती में खाद एवं उर्वरक (Manure & Fertilizer of Radish farming)
खेत की अंतिम जुताई के समय गोबर की खाद 150 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें और अच्छी तरह मिलाएं. साथ ही नाइट्रोजन 25 किलो (यूरिया 55 किलो), फासफोरस 12 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 75 किलो) प्रति एकड़ में प्रयोग करें. नाइट्रोजन की दो डोज़ डालें, एक बुवाई के समय और एक 30-35 दिनों बाद.
सिंचाई व्यवस्था (Irrigation management)
बिजाई के बाद, पहली हल्की सिंचाई करें. गर्मियों में 6-7 दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें और सर्दियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई करते रहें. अधिक सिंचाई से जमीन कठोर हो जाती है और जड़ विकसित नहीं हो पाती है. खुदाई से पहले हल्की सिंचाई करें ताकि जड़ों समेत पौधे को उखाड़ा जा सके.
खरपतवार प्रबंधन (Weed management)
खरपतवार की समस्या के लिए हाथों से ही निराई समय-समय पर करते रहे और बिजाई के 2-3 सप्ताह बाद गुड़ाई भी कर लें और मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ाएं. प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के बाद और अंकुरण से पहले पेंडिमेथालीन 38.7% CS @ 700 मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर देना चाहिए.
फसल की तुड़ाई और भंडारण (Crop harvesting and Storage)
फसल की तुड़ाई के लिए हल्की सिंचाई दे कर के जड़ समेत पौधे को 60 दिनों के बाद उखाड़ लेना चाहिए. उखाड़ी गई जड़ों को धोएं और इनके आकार के अनुसार ग्रेडिंग कर दें. छांटने के बाद इन्हे बोरियां और टोकरी में रख कर मंडी बेचने के लिए भेज दें.
मूली में लागत और शुद्ध लाभ (Cost and net profit of Radish)
मूली की खेती में एक एकड़ क्षेत्र के लिए लगभग 15500 रुपए लागत आती है जिससे 33000 रुपए शुद्ध मुनाफा मिल जाता है.
सरकारी दर पर मूली के बीज प्राप्त करने का स्थान (Place to get radish seeds at government rate)
दक्षिण भारत में स्थित भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलौर ने मूली की कई किस्में अर्का नाम से निकाली है. अतः यहां जाकर या निदेशक 080-28466471 080-28466353 से सम्पर्क किया जा सकता है.
दिल्ली में स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) जाकर या 011- 25842686/ 25841428 पर या एग्रिकल्चर टेक्नोलोजी इन्फोर्फेशन सेंटर (ATIC) पर 011-25841670, 1800-11-8989 सम्पर्क किया जा सकता है.