सर्दियों में सब्जियों की फसल में लगने वाले कई ऐसे प्रमुख रोग हैं, तो आज हम आपको अपने इस लेख इन रोगों के बारे में विस्तार से बतायेंगे.
फूल गोभी या पत्ता गोभी में लगने वाले प्रमुख रोग (Diseases of cauliflower or cabbage)
भूरी गलन अथवा लाल सड़न रोग (Brown rot or red rot disease): गोभी में लगने वाले इस रोग में उचित जल निकासी नहीं होने पर पौधों की जड़ गल जाती है और पौधे की जड़ रंग लाल-भूरा हो जाता है.
रोकथाम के लिए खेत में जल निकास (Drainage) की उचित व्यवस्था करनी चाहिए. ट्राइकोडर्मा विरिडी की 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर पौधे के तने के पास दें, या रासायनिक कार्बेण्डजिम 50% WP की 2 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर जमीन में तने के पास डालें. रोग अधिक हो जाने की स्थिति में थियोफिनेट मिथाइल 70 WP 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर जड़ों के पास डेंचिंग करें.
आर्द्रगलन रोग (Damping off Disease): इस रोग से छोटे पौधे संक्रमित हो जाते है. तने का निचला भाग जो जमीन की सतह से लगा रहता है गल जाता है और पौधे वहीं से टूटकर गिर जाते हैं.
इस रोग की रोकथाम के लिए बीज को बोने से पहले कार्बेन्डाजीम (Carbendazim) फफूंदनाशी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए. खड़ी फसल में प्रकोप हो जाने पर करें कार्बेण्डजीम 12% + मैंकोजेब 63% WP की 400 ग्राम या कार्बेण्डजीम 50% WP की 200 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर जड़ के पास (Drenching) देवे. अथवा कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें.
काला सड़न (Black rot): इससे फसल गल जाती है तथा तने को चीरने पर कालापन दिखाई देता है. प्रभावित पौधा मुरझा कर मर जाता है. इस रोग से बचाव के लिए स्ट्रिपोसाइक्लिन 2.5 ग्राम अथवा कार्बेन्डाजीम (Carbendazim) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें.
झुलसा रोग (Blight disease): इस रोग में फसल झुलसी हुई दिखाई देती है. शुरुआत में मेंकोजेब 75 डबल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर में घोल बनाकर छिड़काव करें. अधिक रोग दिखाई देने पर मेटालेक्सल 4% + मेंकोजेब 64% WP @ 600 ग्राम या मेटालेक्सल 8% + मेंकोजेब 64% WP @ 500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दे.
पत्ती धब्बा रोग (Leaf spot disease): यह रोग जीवाणु से होता है अतः इससे रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% W/W @ 24 ग्राम/ एकड़ या कसुगामाइसिन 3% SL @ 300 मिली/ एकड़ या कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 250 ग्राम/ एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
सूत्रकृमि (Nematode): ये सूत्रकर्मी (नेमाटोड्स) जड़ों पर आक्रमण करते हैं एवं जड़ में छोटी छोटी गाँठ बना हैं. सूत्रकृमि से ग्रसित पौधों की वृद्धि रुक जाती है एवं पौधा छोटा ही रह जाता है. इसका अधिक संक्रमण होने पर पौधा सुखकर मर जाता है. इसके नियंत्रण के लिए कार्बोफ्युरोन 3% GR या नीम खली के साथ पेसिलोमाइसिस लिनेसियस का उपयोग मिट्टी उपचार के लिए करे.
विषाणु रोग (Virus Disease): मिर्च की फसल में सबसे अधिक नुकसान पत्तियों के मुड़ने वाले रोग से होता है. यह रोग वायरस/ विषाणुजनित होता है जिसे फैलाने का कार्य रस चूसने वाले छोटे छोटे कीट करते है. ये रसचूसक कीट अपनी लार से या सम्पर्क में आने से एक स्थान से दूसरे स्थान यह रोग फैलाते है. मिर्च की पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ कर नाव का आकार हो जाता है तथा जिसके कारण पत्तियां सिकुड़ जाती है और पौधा झाड़ीनुमा दिखने लगता है.
रोकथाम के लिए स्पीनोसेड़ 45 SC नामक कीटनाशी की 75 मिली मात्रा या फिप्रोनिल 5% SC की 400 मिली मात्रा या एसिटामिप्रीड 20% SP की 100 ग्राम मात्रा या एसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP की 400 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ खेत में छिड़काव कर दे.
टमाटर की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग (Tomato diseases)
सूत्रकृमि (Nematode): सूत्रकृमि के जैविक नियंत्रण के लिए 2 किलो वर्टिसिलियम क्लैमाइडोस्पोरियम या 2 किलो पैसिलोमयीसिस लिलसिनस या 2 किलो ट्राइकोडर्मा हरजिएनम को 100 किलो अच्छी सड़ी गोबर के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से अन्तिम जुताई के समय भूमि में मिला दें. सूत्रकृमि प्रतिरोधी किस्म का चयन करके सूत्रकृमि को नियंत्रित किया जा सकता है. टमाटर के लिए हिसार ललित, पूसा-120, अर्का वरदान, पूसा H-2,4, पी.एन.आर.-7, कल्याणपुर 1,2,3 है.
झुलसा रोग (Blight): इस रोग के लगने पर पेड़ों को पत्तियों पर भूरे पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं और पत्तियां किनारों पर से सुखकर सिकुड़ने लगती है. जिससे पेड़ झुलसा हुआ नजर आता है. इसकी रोकथाम के लिए मेंकोजेब 75 WP की 2 ग्राम प्रति लीटर की दर छिडकाव करना चाहिए. जैविक उपचार के रूप में ट्राइकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें.
पर्ण-कुंचन रोग (Virus Disease): रोगी पत्तियाँ नीचे की तरफ मुड़ जाती हैं और फलस्वरूप ये उल्टे प्याले जैसी दिखायी पड़ती है जो पर्ण कुंचन रोग का विशेष लक्षण है. पतियाँ मोटी, भंगुर और ऊपरी सतह पर अतिवृद्धि के कारण खुरदरी हो जाती हैं. रोगी पौधों में फूल कम आते हैं. रोग की तीव्रता में पतियाँ गिर जाती हैं और पौधे की बढ़वार रूक जाती है. यह पर्ण कुंचन रोग विषाणु के कारण होता है तथा इस रोग का फैलाव रोगवाहक सफेद मक्खी के द्वारा होता है.
रोगवाहक कीट के नियंत्रण हेतु डाइफेनथूरोंन 50% WP @ 15 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की में घोलकर पत्तियों पर छिडकाव करें. या पायरिप्रोक्सिफ़ेन 10% + बाइफेन्थ्रिन 10% EC @ 15 मिली या एसिटामिप्रिड 20% SP @ 8 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में घोल बनाकर पत्तियों पर छिडकाव करें. 15-20 दिनों बाद छिड़काव दुबारा करे तथा कीटनाशक को बदलते रहे.