ईसबगोल एक औषधीय फसल है जिसे पाचन तंत्र मजबूत करने, मोटापा कम करने, कब्ज दूर करने और पेट संबंधी रोगों के उपचार में इस्तेमाल किया जाता है. ईसबगोल में बीज के ऊपर सफ़ेद रंग का पदार्थ चिपका रहता है जिसे भूसी कहते है.
इसी भूसी में औषधीय गुण पाए जाते हैं. इसकी पैदावार फसल के प्रबंधन और फसल सुरक्षा पर निर्भर है अतः फसल की कीटों और रोगों को पहचान कर फसल की सुरक्षा करना बहुत जरूरी है. ईसबगोल की फसल में का निम्न कीटों और रोगों से बचाव करना आवश्यक है.
तुलासिता रोग के लक्षण और उपचार (Symptoms and treatment of Downey mildew disease)
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फसल बुवाई के 50 से 60 दिन बाद इस रोग का प्रकोप बाली के निकलने पर दिखाई देता है.
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सबसे पहले पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद या कत्थई रंग के धब्बे बन जाते है और पत्ती के ठीक नीचे वाली सतह पर सफेद चूर्ण जैसा कवक जाल दिखाई देने लगता है.
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आगे की अवस्था में ये पत्तियां धीरे-धीरे मुड़कर काली होने लगती है. रोग से प्रभावित पौधों से फूलों और बीजों की संख्या कम होने लगती है.
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बीज छोटा, लाल और काले रंग का हो जाता है.
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रोग के लक्षण दिखाई देते ही मैनकोज़ेब 75% WP की 500 ग्राम या मेटालेक्सिल 8% + मैनकोज़ेब 64% WP दवा की 400 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP की 600 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर देना चाहिए.
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आवश्यकता पड़ने पर यह छिड़काव 15 दिन बाद दोहरा सकते हैं.
उकठा या विल्ट रोग के लक्षण और उपचार (Symptoms and treatment of Wilt disease)
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इस रोग का प्रकोप फसल की किसी भी अवस्था में हो सकता है.
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इस रोग से प्रभावित पौधे मुरझाकर सुख जाते है.
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रोग से बचाव के लिए 2 ग्राम कार्बेंडाजिम 50% WP प्रति किलो बीज की दर से बीजों को उपचारित करना चाहिए.
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बुवाई से पहले 1 किलो ट्राइकोडरमा कल्चर को 2 टन गोबर की खाद में अच्छी तरह मिलाकर अन्तिम जुताई के समय जमीन में मिला देना चाहिए.
एफीड या मोला कीट के लक्षण और उपचार (Symptoms and treatment of Aphid insect)
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इस कीट का प्रकोप सामान्यता बुवाई के 60-70 दिन बाद फूल आने और बीज बनते समय होता है.
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यह कीट पौधे के कोमल भागों पर झुंडों में चिपक कर रस चूसने लगता है. जिससे प्रभावित पौधे कमजोर हो जाते हैं तथा उत्पादन में कमी आ जाती है.
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ये छोटे छोटे कीट पौधे के फूलों, बीजों, कोमल टहनियों, पत्तियों से रस चुसकट गोंद जैसा पदार्थ छोड़ते है, जिससे पूरा पौधा ही चिपचिपा हो जाता है.
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इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 5 मिली प्रति 15 लीटर पानी या थायोमेथोक्सोम 25 डब्लू जी 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.
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कीटनाशकों का बदल-बदल कर छिड़काव करना चाहिए ताकि कीट कीटनाशकों के विरुद्ध प्रतिरोध शक्ति उत्पन्न न हो सके.
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जैविक माध्यम से बवेरिया बेसियाना 500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़ककाव करें.
दीमक कीट के लक्षण और उपचार (Symptoms and treatment of Termite insect)
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यह मिट्टी में रहने वाला सर्वभक्षी कीट है जो पौधे की जड़ों को खाकर नष्ट कर देता हैं.
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इसका प्रकोप अधिक ताप और कम पानी और रेतीली मिट्टी में ज्यादा होता है.
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ज्यादा प्रकोप होने पर दीमक के घर खेतों देखे जा सकते है.
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बचाव के लिए गोबर की अच्छी तरह से सड़ी खाद का ही प्रयोग करे और खरपतवार नष्ट करते रहे.
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दीमक नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 600 FS की 1.5 मिलीलीटर मात्रा को अवश्यकतानुसार पानी में मिलाकर इसका घोल बीजों पर समान रूप से छिड़काव कर बीज उपचारित करें या फिप्रोनिल 5 SC 6 मिलीलीटर प्रति किलो बीज से उपचारित करे.
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जैविक बुवेरिया बेसियाना एक किलो या मेटारिजियम एनिसोपली एक किलो मात्रा को एक एकड़ खेत में 2 टन गोबर की खाद में मिलाकर अन्तिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दे.
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खड़ी फसल में कीट दिखने पर क्लोरोपायरिफोस 20% EC की 300 मिली मात्रा प्रति एकड़ सिंचाई के साथ देनी चाहिए.