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Updated on: 4 May, 2023 5:16 PM IST
मसूर

Lentils cultivation: मसूर एक दलहनी फसल है. इसे लाल दाल भी कहा जाता है. भारत में मसूर की खेती रबी सीजन के दौरान की जाती है. मसूर की खेती असिंचित स्थानों पर की जाती है क्योंकि इसके पौधे के लिए सूखी, नमी और कम तापमान की जगह उपयुक्त होती है. भारत के मध्य प्रदेश, झारखंड, तेलांगना और छत्तीसगढ़ में इसकी खेती की जाती है. आइये आज हम आपको इसकी खेती के तरीके के बारे में बताते हैं.

खेती का तरीका

मिट्टी

मसूर की खेती नम और भारी दोमट मिट्टी में की जाती है. इसकी खेती क्षारीय भूमि में बिल्कुल ही ना करें, क्योकि ऐसी मिट्टी में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है. इसके लिए उचित पानी के निकासी की जरुरुत होती है. इसके लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7 तक होना चाहिए.

खाद

मसूर की अच्छी पैदावार के लिए रासायनिक उवर्रक के तौर पर सल्फर, नाइट्रोजन और पोटाश की मात्रा का छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा भूमि में जिंक सल्फेट की कमी होने पर इसका छिड़काव करना चाहिए.

सिंचाई

मसूर के पौधे कम पानी में भी उग जाते हैं.  इस फसल को सिर्फ एक से दो बार सिंचाई की जरुरत होती है. इसके बीजो की रोपाई के बाद पहली सिंचाई 40 से 45 दिन बाद की जाती है और दूसरी फसल में दाने आने के  बाद की जाती है. आप खेत की सिंचाई के लिए स्प्रिंकल विधि का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

कीट प्रबंधन

मसूर की फसल को कीटों से भी बचाना होता है. कीटो और खरपतवार से बचाव के लिए खेत की समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए. इसके अलावा आप पेन्डीमेथलीन का छिड़काव बीज के रोपाई के बाद कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें: मसूर की फसल में रोग एवं कीट नियंत्रण

पैदावार

मसूर के पौधे रोपाई के 120 से 150 दिन बाद इसमें फल लगना शुरु हो जाते है. इसकी फसल की कटाई मार्च महिने में शुरु हो जाती है. इसके प्रति हेक्टेयर के खेत में 25 से 30 0 क्विंटल मसूर का उत्पादन हो जाता है और 40 से 45 कुंतल भूसे की भी पैदावार हो जाती है.

English Summary: Proper method and management of lentils cultivation
Published on: 04 May 2023, 05:20 PM IST

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