पेड़-पौधे (चारा) उगाने और उनके बडे होने के लिये मिट्टी, खाद, पानी और सूर्य के प्रकाश की जरुरत होती है. लेकिन वास्तविकता में पौधे या फसल उत्पादन के लिये मुख्यतः तीन चींजो की आवश्यकता होती है- पानी, पोषक तत्त्व और सूर्य का प्रकाश. दरअसल, बदलते मौसम, जगह और पानी की कमी के कारण पशुओं के लिए गुणवत्ता वाला चारा मिलना एक समस्या बन गया है.
लेकिन हमे इस समस्या का समाधान पाने के लिये आधुनिक तरीके से बिना मिट्टी के चारा या फसलों का उत्पादन करना जरुरी है. इस आधुनिक तकनीक को हाइड्रोपोनिक्स कहते है जिससे यह संभव है. इस तकनीक का इस्तेमाल पारंपरिक तरीके से कम समय में किया जा सकता है. मूल रूप से, इस हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से चारे का उत्पादन करने से लागत और समय दोनों को नियंत्रण में रखने में मदद होती है.
हाइड्रोपोनिक्स चारा क्या है? (What is hydroponics fodder?)
केवल कम जगह और कम पानी में बिना मिट्टी के मक्का, गेहूं, बाजरा, ज्वार या इसी तरह की फसल उगाने के तकनीक को हाइड्रोपोनिक्स चारा कहा जाता है. हाइड्रोपोनिक्स चारा बनाने के लिए हाइड्रोपोनिक्स मशीन (ग्रीनहाउस), फसलों (मक्का, गेहूं, बाजरा आदि), प्लास्टिक ट्रे (लगभग ३ × २ फीट), पानी निकालने की मशीन (मिनी स्पिंकलर या आग्नेयास्त्र प्रणाली और टाइमर) की आवश्यकता होती है. इस विधि में केवल ७ से ८ दिन में (२० से २५ से.मी.) चारा तैयार किया जाता है. सामान्य ५० चै. फीट में एक वर्ष के भीतर ३६ हजार ५०० किलो चारा का उत्पादन होता है. इसके लिए सालाना ३६ हजार ५०० लीटर पानी की आवश्यकता होती है.
यदि इकाई एक मवेशी के पास की जाए तो लागत न्यूनतम हो सकती है. हाइड्रोपोनिक्स चारण विदेशी बनावट का और महंगे होने की वजह से भारतीय किसान के लिए सोयीस्कर नहीं हैं. लेकिन इसे भारत में बाँस, प्लेट, ५० प्रतिशत शेडनेट और प्लास्टिक ट्रे के उपयोग करके कम खर्च और जगह में निर्मित किया जा सकता है, जिसके द्वारा १००-१२५ किलोग्राम पौष्टिक हरे चारे का उत्पादन किया जा सकता है. इसमे प्रकाश, तापमान, आर्द्रता और पानी को नियंत्रित करके अधिकतम हरे चारे का उत्पादन किया जाता है. इसमें चारे वाली फसलों को १५ से ३० डिग्री सेल्सियस तापमान और लगभग ८० से ८५ प्रतिशत आर्द्रता पर नियंत्रित परिस्थितियों में उगाया जाता है.
हाइड्रोपोनिक चारा उत्पादन प्रक्रिया (Hydroponic Fodder Production Process)
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चारे की तैयारी के लिए मक्का, गेहूँ, बाजरा, ज्वार आदि फसलों का उपयोग किया जाता है. इन फसलों को क्लोरीन या सोडियम हाइपोक्लोराइट (०.१ मिली प्रति लीटर) के घोल में सूक्ष्मजिवानूं से बचाने के लिए बीज प्रक्रिया का प्रयास करें. फिर इस अनाज को १२ घंटे तक भिगोके रखें और फिर पानी को निकाल दे. इसे गर्म स्थान पर टोकरी में २४ घंटे के तक मोड आने के लिए रखें.
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उसके बाद, अनाज को प्लास्टिक ट्रे ( ३ × २ फीट × ३ इंच ऊंचाई) में फैलाएं. ट्रे की संख्या को प्रति दुधारु पशु के लिए अधिकतम १० ट्रे तक पशुओं के संख्या नुसार निर्धारित करें.
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प्लास्टिक ट्रे हाइड्रोपोनिक्स चारा उत्पादन तंत्र में अगले ७ से ८ दिनों के लिए रखें. १ इंच इलेक्ट्रिक मोटर को लैटलर का कनेक्शन देकर फगर सिस्टम के द्वारा हर दो घंटे में ५ मिनट के लिए दिन में ६ से ७ बार पानी देना चाहिए. पूरे दिन में कुल २०० लीटर पानी का उपयोग किया जाता है.
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यह तंत्र स्वचालित है, अगर पानी की टंकी को उच्च स्थान पर रखा जाता है, तो इसे इलेक्ट्रिक मोटर का उपयोग किए बिना पानी से आपूर्ति की जा सकती है. केवल ७ से ८ दिन में चारा सिर्फ पानी पर २० से २५ सें. मी. तक बढ़ जाता है.
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इसमें पौधों की उचित बढ़वार के लिये आवश्यक खनिज और पोषक तत्व सही समय पर सही मात्रा में मिलते रहने चाहिए. हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में इन तत्वों की आपूर्ति हम करते हैं, जबकि जमीन से पौधे अपने आप लेते रहते हैं.
प्रति किग्रा चारे में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं (The following properties are found per kg of fodder)
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कैल्शियम - ०.११
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विटामिन ए - २५.०१
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विटामिन सी - ४५.०१
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विटामिन ई - २६.०३
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प्रोटीन - १३ से २०
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रायझेस्टिक फाइबर - ८०.९२ (दूध उत्पादन के लिए आवश्यक)
लाभ:
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बिना मिट्टी के चारा पैदा करें.
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कम खर्चीला
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पानी और जगह की बचत. (हाइड्रोपोनिक तकनिक से कम जगह और कम खर्च में फसलें उगाई जा सकती है.
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प्रशिक्षित जनशक्ति की कोई आवश्यकता नहीं.
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अल्पकालिक उपलब्धता
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कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है.
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स्वास्थ्य के लिये अच्छा (यह फसलें बिना मिट्टी के पैदा करने और इसमें पोषक तत्वों का विशेष घोल डाला जाने की वजह से इनमें बिमारियॉं कम होती है, जिसके कारण उत्पादन में कीटनाशकों, उर्वरकों एवं अन्य रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल करने की आवश्यकता नहीं पडती है. जिसका फायदा पर्यावरण के साथ साथ पशुऔं और हमारे स्वास्थ्य के लिये अच्छा होता है.
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हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से उगाई गई सब्जियाँ और पौधे अधिक पौष्टिक होते हैं.
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हाइड्रोपोनिक्स हरे चारे में अधिक ऊर्जा, विटामिन और अधिक दूध का उत्पादन होता है और उनकी
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प्रजनन क्षमता में भी सुधार होता है.
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शुष्क क्षेत्रों में जहाँ चारे के उत्पादन के लिये अनुकूल जलवायु वाली परिस्थितियाँ नही हैं, उन क्षेत्रों में यह तकनीक वरदान सिद्ध हो सकती है जैसे की राजस्थान. मक्का, जौ, जई और उच्च गुणवत्ता वाले हरे चारे वाली फसलें उगाने के लिये वेटरनरी विश्वविद्यालय, बीकानेर में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है.
लेखक: डॉ. माधुरी स. लहामगे,
सहायक प्रोफेसर, अपोलो कॉलेज ऑफ वेटरनरी मेडिसिन, जयपुर
डॉ. ऋषिकेश अं. कंटाळे
गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइन्स यूनिवर्सिटी, पंजाब