भारत देश एक विशाल खेती-आधारित देश है जहां कृषि उत्पादन मुख्य रोजगार स्रोत है। लेकिन, खेती प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाले फसल अवशेषों को जलाने की प्रथा एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रदान करती है। यह स्थानीय और ग्लोबल पर्यावरण समस्याओं का कारण बनती है और मानव स्वास्थ्य पर भी हानिकारक प्रभाव डालती है। इसलिए, फसल अवशेषों को जलाने की समस्या, उसके कारण, प्रभाव और समाधान पर विचार करना महत्वपूर्ण है।
कारण:
कृषि प्रणाली में प्राथमिकताएं: अधिकांश किसान आधुनिक कृषि तकनीकों की कमी से पीड़ित हैं। उनके पास समय की कमी होती है और उचित तकनीक और संसाधनों के अभाव में वे अवशेषों को जलाने के लिए सबसे आसान विकल्प के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
धान उत्पादन प्रक्रिया: धान की उगाई के बाद उच्च स्तर पर अवशेष बचते हैं, जो स्टबल के रूप में जाने जाते हैं। उच्च तापमान और गहरी जलस्तर की मौसमी शर्तों में, इन स्टबल को शुष्क करने में समय लगता है। इसलिए, किसान अक्सर उन्हें जलाने का विकल्प चुनते हैं ताकि वे अगली फसल के लिए जमीन को तैयार कर सकें।
मशीनरी और प्रोसेसिंग की कमी: किसानों के पास उचित तकनीकी सहायता और जरूरी मशीनरी की कमी होने के कारण वे फसल अवशेषों को सही ढंग से प्रबंधित नहीं कर पाते हैं।
प्रभाव:
पर्यावरण प्रदूषण: फसल अवशेषों को जलाने से वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता है, जिसमें वायुमंडलीय प्रदूषण सामग्री जैसे कि- एमोनिया, नाइट्रोजन ऑक्साइड, फास्फोरस, सल्फर डाइऑक्साइड, ऑजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, वायुमंडलीय रासायनिक विषाणुओं, और धूल शामिल होती है। इसके परिणामस्वरूप वायु प्रदूषण के कारण सामान्य वायुमंडल में ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, धरातलीय उष्णता, सामान्य वायुमंडल की बेकार गतिविधियां और स्वास्थ्य समस्याएं जैसे कि श्वसन संबंधी और दिल संबंधी बीमारियां जैसी समस्याएं बढ़ती हैं।
मानव स्वास्थ्य के प्रभाव: जलते हुए फसल अवशेषों के धुएं में विषाणुओं की मौजूदगी अस्वास्थ्यकर होती है। इसके परिणामस्वरूप फसल अवशेषों को जलाने से दमा, अस्थमा, एलर्जी, नजले, खांसी, दिमागी बुखार, चक्कर आना, सिरदर्द और उल्टी जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
मिट्टी स्वास्थ्य के प्रभाव: फसल अवशेषों को जलाने से मिट्टी की गुणवत्ता कम होती है। इसके परिणामस्वरूप मिट्टी का पोषण कम होता है और फसल उत्पादन भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।
जीवन पदार्थों की कमी: फसल अवशेषों को जलाने से उच्च कार्बन सामग्री, ऊर्जा और जल स्रोतों की कमी होती है। इसके कारण खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा प्रश्नों का सामना करना पड़ता है।
समाधान:
जागरूकता और शिक्षा: किसानों को फसल अवशेषों को जलाने से उत्पन्न होने वाली समस्याओं के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए। इसके अलावा कृषि उत्पादन के लिए उचित तकनीक, सुरक्षित और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील खेती प्रथाओं के बारे में भी जागरूकता बढ़ानी चाहिए।
तकनीकी समर्थन: किसानों को सरकार के द्वारा उचित तकनीकी समर्थन प्रदान करानी चाहिए। साथ ही उन्हें समुचित मशीनरी का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए जो अवशेषों को प्रबंधित करने में मदद कर सके।
समन्वयित प्रबंधन: सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के द्वारा अवशेषों को जलाने की प्रथा को नियंत्रित करने और प्रबंधित करने के लिए समन्वित प्रबंधन उपाय अपनाने चाहिए।
प्रदूषण नियंत्रण उपाय: प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए गठित प्रदूषण नियंत्रण नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए। इसमें शक्तिशाली नियमों, धनात्मक प्रोत्साहन और दंडाधिकारी उपाय शामिल होने चाहिए।
सामुदायिक सहभागिता: किसानों, स्थानीय समुदायों, सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के बीच सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देना चाहिए। इससे किसानों को समस्याओं का सामना करने के लिए सहायता मिलेगी और समाधानों की योग्यता बढ़ेगी।
फसल अवशेषों को जलाने की समस्या एक गंभीर मुद्दा है जो भारत के कृषि प्रणाली को प्रभावित करती है। इसका पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्याओं पर नकारात्मक प्रभाव होता है। इसके बचाव के लिए, सही तकनीकी समर्थन, जागरूकता, समन्वयित प्रबंधन, प्रदूषण नियंत्रण उपाय और सामुदायिक सहभागिता के साथ समाधानों पर ध्यान देना आवश्यक है। केवल इस प्रकार की संयुक्त प्रयासों के माध्यम से हम स्वस्थ और सुरक्षित कृषि प्रणाली का निर्माण कर सकते हैं और समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।
लेखक-
विशाल अहलावत1, ज्योति शर्मा1, दीपिका ढांडा2
1मृदा विज्ञान विभाग
2पर्यावरण विज्ञान विभाग
चौ० चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार हरियाणा