फलों और सब्जियों की खेती से किसान भाई अधिक मुनाफा कमाते हैं, लेकिन कभी तापमान में कमी तो कभी उर्वरक में कमी होने की वजह से फसल बर्बाद हो जाती हैं. इससे किसानों को भारी नुकसान होता है. उन्हें अपनी फसलों से अच्छा उत्पादन नहीं मिल पाता है.
अक्सर देखा जाता है कि जब रात का तापमान में कमी, उच्च नमी एवं नाइट्रोजन का स्तर अधिक हो जाता है, तो इसका प्रभाव पपीते की फसल (Papaya Crop) पर पड़ता है. इससे फलों का आकार बदल जाता है और फल के दामों में गिरावट आ जाती है एवं किसानों को उचित दम नहीं मिल पाते हैं.
किसानों को इन समस्याओं से निजात दिलाने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर, बिहार के अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना (All India Fruit Research Project ) के प्रधान अन्वेषक एवं एसोसिएट डायरेक्टर ने रोग से बचाव करने का तरीका बताया है. उन्होंने कहा कि इस समस्या से बचाव के लिए आवश्यक है, ताकि बीज ऐसे फलों से एकत्र किए जाएं, जिसमें इस प्रकार की समस्या न हो.
पपीते फल में रोग लगने का कारण (Causes Of Disease In Papaya Fruit)
आपको बता दें कि जब मिटटी में बोरान (boron) की कमी हो जाती है, तो पपीता की फसल में रोग उत्पन्न हो जाते है. इसके अलावा जब मौसम शुष्क हो जाता है, तो इस तरह की समस्या पपीते की फसल में ज्यादा दिखाई देती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि जब मिट्टी में बोरान की कमी हो जाती है तब पौधे की की बढ़वार रूक जाती है. जबकि इसके विपरीत अगल-बगल के ऊत्तक में वृद्धि होते रहती है. इसकी वजह से फल आकर बिगड़ जाता है.
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आकार बिगड़ने के लक्षण
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बोरोन की कमी की वजह प्रभावित फल में बीज नहीं बनता है या कम विकसित होता है.
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पौधे की वृद्धि प्रभावित होती है और पौधों का कद छोटा हो जाता है.
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अपरिपक्व फल (immature fruit) की सतह पर दूध निकलते हुए दिखाई देता है.
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फल कड़ा हो जाता है, ऐसे फल जल्दी नहीं पकते हैं तथा स्वादहीन होते हैं
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फल का आकार बिगड़ जाता है.
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पौधों से फूल गिरने लगते है.
बचाव (Rescue)
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ऐसे में पपीता की खेती में कार्बनिक खादों का भरपूर उपयोग करना चाहिए.
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मिट्टी की जाँच करवाएं.
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मिटटी में बोरान की मात्रा की जांच कराएं.