आलू एक सब्जी है. आलू के अंदर विभिन्न प्रकार के विटामिन, मिनरल्स एवं एंटी अक्सीडेंट को बनाए ऱखने के लिए एक महत्वपूर्ण आहार है. आलू की फसल बुवाई हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और बिहार आदि राज्यों में होती है. आलू की खेती आर्थिक रूप से अहम मानी जाती है. आलू जमीन के अंदर पैदा होने वाली फसल है. यदि आलू के उत्पादन की बात करें तो आलू उत्पादन में चीन व रूस के बाद भारत तीसरे नंबर पर आता है. इन राज्यों की जलवायु आलू की फसल के लिए उपयुक्त मानी जाती है.
आलू की फसल के लिए भूमि (Land for potato cultivation)
आलू की फसल के लिए अच्छे निकास वाली अच्छी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. अगर हम मिट्टी का अच्छे से प्रबंधन करें तो आलू अन्य तरह की मिट्टी में भी पैदा की जा सकती है. आलू के फसल के लिए PH6-7.5 तक उपयुक्त माना जाता है. इसके लिए गहरी मिट्टी वाले हल से जोताई करनी चाहिए और उसके बाद 2-3 जुताईयां देसी हल से करनी चाहिए ताकि आलू की फसल के लिए अच्छे खेत बन सकें. खेत में पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए. आलू की खेती के लिए खेत को समतल होना जरूरी होता है ताकि जल की निकासी काफी अच्छी तरह से हो सकें.
खाद व उर्वरक (Manures and fertilizers)
आलू की फसल को बुवाई करने के लिए 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करें. साथ ही 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से ट्राइकोडर्मा गोबर की खाद में मिलाकर खेत में प्रयोग करना चाहिए. खड़ी फसल में मिट्टी को चढ़ाने के समय वर्मी कंपोस्ट डाल देने से पैदावरा बेहतर उपज होती है.
आलू बीज की तैयारी (Potato seed preparation)
आलू के बुवाई के लिए अच्छे किस्म की बाज की आवश्यकता होती है-
आलू के बीज को बेहतर प्रजाति का होना चाहिए. इसके बीज को स्वस्थ, रोग रहित, विषाणु, सूत्रकृमि, व बैक्टीरिया से मुक्त होना चाहिए. बीज अकुंरण की अवस्था में होना चाहिए. इससे आलू की काफी अच्छी पैदावार प्राप्त हो सकती है.
आलू के आकार के अनुसार इसको आसानी से समूचे टुकड़े और छोटे टुकड़ों में काटकर बोया जा सकता है. यदि आलू का आकार ज्यादा बड़ा हो तो आलू को इस तरह काटे की प्रत्येक टुकड़े में दो आंख टुकड़े का भार 30 ग्राम से कम न हो.
आलू की बुवाई का तरीका (Potato sowing method)
आलू की खेती के लिए 50 से 60 सेमी की दूरी कि नालियों व खलियों में ढलान की विपरीत दिशा में होनी चाहिए. बुवाई के तुंरत बाद ही आसपास मेढ़ भी बना दी जानी चाहिए. आलू के बीज का अंतर खेतों में 15-20 सेमी का होना चाहिए.
खरपतवार की रोकथाम (Weed prevention)
जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है कि खरपतवार यानि आसपास उगने वाले छोटे पेड़ पौधे. जब भी आलू की फसल खरपतवार के साथ बढ़ती है तो इसकी पैदावर पर खासा असर पड़ता है. इसीलिए जरूरी है कि आलू की फसल को खरपतवार से मुक्त रखा जाए . इसकी फसल के लिए पहली निराई-गुड़ाई 75 प्रतिशत अंकुरण पर करनी चाहिए जो कि बेहद ही आवश्यक है. इस तरह की व्यवस्था बुआई के 30 दिनों के बाद ही आती है.
फसल में जल प्रबंधन (Crop water management)
आलू के फसल में सिंचाई की भी आवश्यकता पड़ती है. इसीलिए फसल में सिंचाई और समय, मिट्टी की बनावट, मौसम व फसल की बढ़ोतरी आदि उगाई किस्म पर ज्यादा निर्भर करती है. इस अवस्था में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए. अगर आप आलू की खेती में धीरे-धीरें सिंचाई करते है तो यह एकदम सिंचाई देने से ज्यादा फायदेमंद है. अगर आप मेढ़ो तक खेत में पानी भर देंगे तो यह हानिकारक होगा. सिंचाई करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखा जाए कि नालियों में पानी आधा ही भरें और मेढ़ों में पानी के रिसाव स्वंय नमी आ जाए.
फसल की खुदाई (Crop digging)
आलू की फसल जब पूरी तरह से तैयार हो जाए तो इसकी खुदाई कर लेनी चाहिए जब भी आलू की फसल खुदाई की जाय तो उस समय मिट्टी न तो ज्यादा सूखी हो और न ज्यादा गीला होनी चाहिए. यदि आप पौधों की शाखाओं को रगड़ देंगे तो आलू के छिलके रगड़ने पर न निकलना फसल के पक जाने के संकेत है.