मेंथा या पिपरमेंट को जापानी पुदीना के नाम से जाना जाता है. दरअसल, इसकी उत्पत्ति चीन में हुई लेकिन यहां से यह जापान पहुंचा. जापान से मेंथा (पिपरमेंट) भारत और दुनिया के अन्य देशों लाया गया. यही वजह है कि मेंथा भारत में जापानी पुदीना के नाम से जाना जाता है. औषधीय गुणों से भरपूर मेंथा का वानस्पतिक नाम मेंथा आर्वेन्सिस है. इसकी शाखों में तेल की अच्छी मात्रा पाई है.
वहीं इसके तेल में मेन्थोन, मेंथाल तथा मिथाइल एसीटेट जैसे पाए जाते हैं. सिरदर्द, कमरदर्द, सांस संबंधित बीमारियों की औषधियों में इसका उपयोग किया जाता है. वहीं विभिन्न प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधनों में भी मेंथा का भरपूर उपयोग किया जाता है. औषधीय गुणों से भरपूर मेंथा की खेती से किसानों की आर्थिक सेहत में भी सुधार हो सकते हैं. तो आईए जानते लाखों रूपये की कमाई के लिए मेंथा की वैज्ञानिक खेती कैसे करें-
भारत में मेंथा की खेती
भारत में मेंथा की खेती पंजाब, जम्मु कश्मीर, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में की जाती है. वहीं इसकी खेती राजस्थान में भी संभव है. गौरतलब है कि मेंथा कि खेती भारत के अलावा जापान, चीन, ब्राजील और थाईलैंड में होती है.
मेंथा की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी
इसकी खेती के लिए अनुकूल जलवायु का होना बेहद जरूरी है. यदि मेंथा की खेती के अनुकूल जलवायु नहीं है तो इसके उत्पादन के साथ ही इससे निकलने वाले तेल की मात्रा पर भी असर पड़ता है. आपको बता दें कि इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु उत्तम मानी जाती है. वहीं सर्दियों के दिनों में जिन क्षेत्रों पाला और बर्फ गिरती है वहां मेंथा की खेती नहीं की जा सकती है. पाला या बर्फ गिरने से पौधों की ग्रोथ कम हो जाती है तो दूसरी तरफ तेल की मात्रा भी कम निकलती है. वहीं इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी उत्तम मानी जाती है. जीवांशयुक्त ऐसी मिट्टी जिसका पीएचमान 6 से 7 हो इसकी खेती के लिए उपयुक्त है. वहीं खेत में जल निकासी की भी अच्छी व्यवस्था होना चाहिए.
मेंथा की खेती के लिए खेत की तैयारी
मेंथा की अच्छी पैदावार के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करना चाहिए. इसके दो जुताई हैरो या कल्टीवेटर से करना चाहिए. अब इसमें 20 से 25 टन गोबर की सड़ी खाद डालें. खाद डालने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना लेना चाहिए.
मेंथा की खेती के लिए उन्नत किस्में
किसी भी फसल की अच्छी पैदावार के लिए अच्छी किस्मों को चुनाव करना बेहद आवश्यक होता है. मेंथा की उन्नत किस्में कुछ इस प्रकार है-कालका, गोमती, एमएएस-1 हाइब्रिड-77, कोशी, हिमालय और शिवालिक आदि.
मेंथा की खेती के लिए बुआई का सही समय
मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई का समय अलग-अलग होता है. जहां मैदानी क्षेत्रों में इसकी बुवाई 15 जनवरी से 15 फरवरी के मध्य उत्तम है, वहीं पहाड़ी क्षेत्रो में मेंथा की बुवाई मार्च और अप्रैल के मध्य करना चाहिए. इसकी बुवाई के कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखना चाहिए.
मेंथा की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक
गोबर खाद के अलावा मेंथा के अच्छे उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन 120 से 130 किलोग्राम, फास्फोरस 50 से 60 किलोग्राम तथा पोटाश 40 से 60 किलोग्राम डालना चाहिए. नाइट्रोजन पहली खुराक 20 से 25 किलोग्राम अंतिम जुताई, दूसरी खुराक बुवाई के दौरान और शेष खुराक 35 से 40 दिनों के अंतराल पर खड़ी फसल में देना चाहिए. वहीं फास्फोरस और पोटाश की खुराक बुवाई से पहले देना चाहिए.
मेंथा की खेती के लिए सिंचाई
पहली सिंचाई मेंथा के पौधों की रोपाई के तुरंत बाद करना चाहिए. इसके बाद 15 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए. मेंथा की अच्छी पैदावार के लिए गर्मी के दिनों में 8 से 10 के अंतराल पर नियमित सिंचाई करना चाहिए.
मेंथा की खेती से कमाई
वैसे तो मेंथा की पैदावार इसकी उन्नत किस्मों, जलवायु, भूमि और मौसम पर निर्भर करती है. हालांकि प्रति हेक्टेयर इसकी खेती से 250 से 300 क्विंटल ताजा शाखाओं की प्राप्त होती है. वहीं 200 से 250 लीटर तेल मिलता है. इसका तेल बाजार में 600 से 1700 प्रति लीटर बिकता है.