खरीफ फसल की अपेक्षा जायद में कीट और बीमारियों का खतरा बहुत कम होता है. मूंगफली खरीफ और जायद दोनों मौसम में ही उगाई जाने वाली फसल है. यह कई जगहों पर ज्यादा क्षेत्रफल में उगाई जाती है. जैसे - झांसी,सीतापुर, उन्नाव, बरेली, हरदोई, बदायूं, एटा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, मुरादाबाद, खीरी, और सहारनपुर आदि.
मूंगफली में 45 से 55 प्रतिशत प्रोटीन (Protein ), 28 से 30 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate) पाया जाता है. इसमें विटामिन बी, विटामिन-सी, कैल्शियम और मैग्नेशियम, जिंक फॉस्फोरस, पोटाश आदि खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाई जाती है.जो मानव शरीर को स्वस्थ रखनें में काफी सहायक है.
मूंगफली की किस्में (Peanut Varieties)
मूंगफली की जायद फसल के लिए प्रमुख प्रजातियां - आईसीजीएस-1, आर-9251, टीजी37, आर-8808, आईसीजीएस-44, डीएच-86
मूंगफली फसल की तैयारी (Peanut harvest preparation)
मूंगफली की खेती करते समय खेत की तैयारी अच्छी तरह से करनी चाहिए. सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करे उसके बाद दो-तीन बार जुताई देशी हल या फिर कल्टीवेटर से करके उसे भुरभुरा बना ले. जायद में आखिरी जुताई के बाद अच्छे से पाटा लगा कर खेत को समतल बना ले. जिससे की पानी लगाने में सुविधा रहे और सभी जगह पानी अच्छे से पहुँच सके. खेत की आखिरी तैयारी करने के समय 2.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से जिप्सम का उपयोग करे.
मूंगफली बीज की बुवाई (Peanut seed sowing)
मूंगफली की खेती में 95 से 100 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज बुवाई में लगता हैं. बोने से पहले बीज को थीरम 2 ग्राम और 50 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के मिश्रण में 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से शोधित करना चाहिए। इस प्रक्रिया को करने के 5 -6 घण्टे बाद बोने से पहले बीज को मूंगफली के राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए.
मूंगफली फसल की सिंचाई (Groundnut crop irrigation)
मूंगफली एक वर्षा आधारित फसल है. इसे सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती। मूंगफली की फसल में कुल 4 वृद्धि अवस्थायें होती है. जैसे- प्रारंभिक वनस्पतिक वृद्धि अवस्था, फूल बनना, अधिकीलन (पैगिंग) तथा फली बनने की अवस्था सिंचाई के प्रति अति संवेदनशील होती है. इस फसल की खेती के समय खेत में अवश्यकता से अधिक जल को तुरंत बाहर निकाल देना चाहिए अन्यथा वृद्धि व इसकी उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है.
मूंगफली फसल की रोगों से रोकथाम (Prevention of diseases of peanut crop)
मूंगफली की फसल में मुख्य रूप से टिक्का, कॉलर, तना गलन और रोजेट आदि रोगों का ख़तरा रहता है. अगर टिक्का के लक्षण दिखते ही इसकी रोकथाम के लिए डायथेन M -45 का 2 ग्रा./लीटर पानी में घोल बनाकर अच्छे से छिड़काव करना चाहिए.
छिड़काव करने के 10-12 दिन के अंदर ही दोबारा यही प्रक्रिया दोहराए और रोजेट वायरस जनित रोग को रोकने के लिए फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./लीटर पानी के मान से घोल बनाकर छिड़काव करें.