वैसे तो दुनिया में कई तरह के फूल पाएं जाते हैं जिसमें से एक है गुलाब, लेकिन एक पौधा ऐसा भी है जो एकदम गुलाब (Rose) की तरह ही महकता है जिसका नाम पामारोजा (Pamaroja) है. इसका उपयोग खुशबु से बनने वाली अत्यधिक उत्पादों में होता है जिसके कारण किसानों ने अब इसकी बड़े पैमाने पर व्यावसायिक खेती करनी शुरू कर दी है. इसको लोग भारतीय गेरियम, अदरक घास और रोशा घास के नाम से भी जानते हैं. साथ ही, यह अपने औषधीय गुणों व लाभों के लिए काफी मशहूर है.
पामारोजा की खेती (Pamaroja Farming in India)
मिट्टी
पामारोजा की खेती किसानों के लिए काफी सफल रही है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है साथ ही यह बंजर भूमि (Barren Land) में भी उग पाने में सक्षम है. भले ही भूमि में नमी की मात्रा कम हो, लेकिन फिर भी इसकी खेती सफल होती है.
बीमारियों से मुक्त
पामारोजा की ख़ासियत यह है कि इसका पौधा बीमारियों से प्रभावित नहीं होता है, रखरखाव भी कम है और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी लोकप्रियता के कारण विपणन (Marketing) भी आसान है. यही कारण है कि इसकी खेती किसानों के लिए बेहद फायदेमंद है.
जुताई
पामारोजा की खेती के लिए कम से कम दो बार खेत की जुताई करें. लगभग 8-10 टन खाद प्रति एकड़ का प्रयोग करें. साथ ही, खेत को समतल करें ताकि जल जमाव न हो.
खाद
असिंचित खेती में बेहतर उपज के लिए प्रति पौधे के बीच 12 किलो नाइट्रोजन, फॉस्फेट और पोटाश का प्रयोग करें. इसके बाद 6 किलो खाद 30-40 दिनों के अंतराल के बाद दिया जाना चाहिए.
सिंचाई
पामारोजा (Pamaroja) को अच्छी तरह से सिंचित और असिंचित दोनों स्थितियों में उगाया जा सकता है. जहां अच्छी तरह से सिंचित परिस्थितियों के मामले में उपज वार्षिक बारिश पर निर्भर करती है. वहीं अच्छी तरह से असिंचित परिस्थितियों में सर्वोत्तम उपज के लिए 12-15 दिनों के अंतराल में या 3 सप्ताह में एक बार भूमि की सिंचाई जरूर करें. पामारोजा की खेती में सिंचाई के लिए बाढ़ सिंचाई (Flood Irrigation) सबसे अच्छा और आधुनिक तरीका है.
कटाई
पामारोजा के पौधे से तेल की सर्वोत्तम क्वालिटी के लिए फूल आने के तुरंत बाद पौधे की कटाई शुरू कर दें. पौधे को ज़मीनी स्तर से 10-15 सेंटीमीटर काटें. पौधे को इकट्ठा करके मोल्ड करें और उन्हें ठंडे स्थान पर स्टोर करें. फिर आसवन प्रक्रिया के माध्यम से पौधे से तेल निकालें. पौधे के फूलों और पत्तियों से अधिकतम तेल निकाला जाता है और तने से बहुत कम मात्रा में तेल निकाला जाता है.
प्रति एकड़ पामारोजा तेल की मात्रा
असिंचित भूमि में प्रति पौधा लगभग 12-16 किलोग्राम तेल और सिंचित भूमि में प्रति पौधा 20-30 किलोग्राम तेल निकाला जा सकता है. बाद के वर्षों में उपज असिंचित क्षेत्र में 20-30 किलोग्राम प्रति एकड़ और सिंचित परिस्थितियों में 40-45 किलोग्राम प्रति एकड़ तक बढ़ जाती है.
Pamaroja Oil के व्यापक उपयोग हैं जिसके कारण इसकी मार्केटिंग काफी आसान है. इसलिए आने वाले दशक में पामारोजा की खेती में अत्यधिक मुनाफा है और इसमें बढ़ने की काफी संभावनाएं हैं.
पामारोजा के औषधीय लाभ
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पामारोजा का तेल में एंटीवायरल और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं.
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पामारोजा पाचन शक्ति में सहायता करता है.
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इसका अरोमाथेरेपी (Aromatherapy) उपचार में उपयोग किया जाता है,
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पामारोजा का तेल मांसपेशियों और तंत्रिकाओं को आराम देता है जो अवसाद, थकान, चिंता, क्रोध और घबराहट से लड़ता है.
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शरीर की नमी (हाइड्रेशन) को बनाए रखने में मदद करता है.
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पामारोजा तेल में इत्र, साबुन और खाद्य उद्योग शामिल हैं.
भारत में पामारोजा नाम
पामारोजा, गेरियम घास, गुलाब घास, रोशा घास, रुसा घास (अंग्रेजी), गंधबेना, पामारोसा, रोहिसा (बंगाली), रौंस, रोइसा घास, रौसा घास (गुजराती), गंडाबेल, गंधेज घास, मकोरा, मोतियो, रोशा (हिंदी), अंची हुलु, भूतिका हुलु, चट्टा हुलु, चिप्पू हुल्लू, काची हुलु, कसावरे हुलु, कावंचा (कन्नड़), संभरापल्लु (मलयालम), कुसातन, रोशेगवत, रोशसागवथ, रुशा (मराठी), धन्वंतरी, धन्वंतरी घासा (उड़िया), कवथम पिल्लू, कवत्तमपिल्लू, मुंकिलपुल, कामकसिपुल, कवट्टम पुल (तमिल), कच्ची गद्दी, कांची, काशी गद्दी, निम्मा गद्दी (तेलुगु), रौंस, थिसनका (उर्दू).
पामारोजा की किस्में
Pamaroja की लोकप्रिय किस्मों में मोतिया, सोफिया, तृप्ता, तृष्णा, पीआरसी-1, आईडब्ल्यू 31245, आईडब्ल्यू 3244, ओपीडी-1, ओपीडी-2, मोतिया, सोफिया और तृप्ता शामिल हैं. आपको यह सलाह दी जाती है कि अधिक उन्नत किस्मों के लिए अपने स्थानीय बागवानी विभाग से संपर्क करें जो आपके क्षेत्र के लिए उपयुक्त हैं.
पामारोजा के तेल का उपयोग
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इसका का उपयोग फार्मास्युटिकल उद्योग द्वारा बड़ी मात्रा में किया जाता है.
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विशेष रूप से इत्र, तंबाकू के स्वाद और साबुन की खुसबू को बनाने के लिए पामारोजा के तेल का उपयोग किया जाता है.
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यह बहुत उच्च ग्रेड गेरानियोल के स्रोत के रूप में भी कार्य करता है. Geraniol को एक इत्र के रूप में और बड़े रसायनों के लिए टॉप लिस्ट में रखा जाता है, क्योंकि उद्योगकर्मियों को इससे गुलाब जैसी सुगंध मिल जाती है.
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परमोजा तेल का कॉस्मेटिक (सौंदर्य उत्पाद) और इत्र निर्माण द्वारा उपयोग किए जाने के अलावा, विभिन्न दवाओं के निर्माण में भी उपयोग किया जाता है.
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यह तेल एक यौगिक Geranial में समृद्ध है, जो इसे कई औषधीय और घरेलू उद्देश्यों के लिए उपयुक्त बनाता है.
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पामारोजा तेल एंटिफंगल, एंटी-वायरल, जीवाणुनाशक, साइटोफिलेक्टिक और एंटीसेप्टिक है.
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इसका तेल त्वचा को मॉइस्चराइज़ करता है और मुंह में दाने और मुहासों के लिए काफी उपयोगी है.
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पामारोजा तेल मामूली संक्रमणों को दूर करने में भी मदद करता है और घावों को भरने में बदसूरत निशान को रोकता है.
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पामारोजा तेल मन को शांत करता है और सुकून का एहसास दिलाता है.
निष्कर्ष
पामारोजा, तेज़ सुगंधित फसल होने के कारण भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग कृषि-जलवायु परिस्थितियों और विभिन्न प्रकार की बंजर भूमि में उगाई जा सकती है. इसके तेल की इष्टतम मात्रा प्राप्त करने के लिए किसानों को उन्नत कृषि-प्रौद्योगिकी और पौधों की किस्मों को अपनाने के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है. बेहतर गुणवत्ता वाले तेल को सुनिश्चित करने के लिए कटाई के बाद के प्रबंधन के उन्नयन के अलावा कटी हुई फसल का समय पर आसवन सुनिश्चित करने के लिए पामारोजा उगाने वाले क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में आसवन इकाइयां स्थापित करने की आवश्यकता है. इसके अतिरिक्त, प्रभावी विपणन प्रणाली की भी जरूरत है ताकि किसान अपनी उपज सीधे उद्योग को लाभकारी मूल्य पर बेच सकें. राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर संबंधित सरकारी विभागों को पामारोजा तेल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करना चाहिए. अच्छी गुणवत्ता वाले तेल के उत्पादन के लिए फसल के प्राथमिक प्रसंस्करण सहित फसल के बाद के प्रबंधन पर भी पर्याप्त जोर देने की आवश्यकता है और क्लस्टर के आसपास के क्षेत्र में उचित भंडारण की सुविधा भी देनी चाहिए जिससे पामरोसा की खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है.