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Updated on: 14 March, 2019 5:21 PM IST

देश में चीड़ की पत्तियों का इस्तेमाल अब स्ट्रॉबेरी की खेती में हो सकेगा. दरअसल ये चीड़ की पत्तियां घने जंगलों में पाई जाती है. उत्तराखंड काउंसिल फॉर बायो टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने स्ट्रॉबेरी की मृदारहित खेती करने में कामयाबी हासिल की है. स्ट्राबेरी की खेती के लिए चीड़ के पत्ते कई चीजों के इस्तेमाल में काफी काम आते है. दरअसल उत्तराखंड के पतंनगर के हल्दी स्थित यूसीबी फूल, फल और औषधीय पौधों पर शोध कार्य किए जाते है. वैज्ञानिकों ने मूल रूप से अमेरिकन फल स्ट्रॉबेरी की खेती का नया तरीका इजाद किया है. उन्होंने कहा है कि नए तरीके से उगने वाली स्ट्रॉबेरी पहाड़ों में भी कारगार साबित होती है. दरअसल यूसीबी के वैज्ञानिक डॉ. सुमित अवस्थी ने कहा कि स्ट्राबेरी की प्रदेश में व्यवसायिक खेती का कोई भी कागज़ी रिकॉर्ड नहीं है. दरअसल रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बिल्कुल भी अच्छी नहीं है. इसीलिए मृदा रहित खेती को लेकर यूसीबी के निर्देशन में सारे कार्य किए गए है.

नर्सरी लगाकर हो रही है खेती

नर्सरी को लगाकर चीड़ के पत्ते, नारियल का बुरादा, लकड़ी के छोटे- छोटे टुकड़ों का मिश्रण करके पॉलीबैग और गमले में रखकर उसमें स्ट्रॉबेरी की खेती को लगाया गया है. इसमें जरूरत के हिसाब से 13 माइक्रो और कईं तरह के मैक्रो तत्वों को डाला जा सकता है. दरअसल सितंबर में लगाई गई स्ट्राबेरी के पौधों में जनवरी के महीने में फल आना शुरू हो जाता है. एक पौधा लगभग आधे किलो से ज्यादा का फल देता है. अगर स्ट्रॉबेरी की खेती की बात करें तो यह पहाड़ों के लिए काफी ज्यादा अनुकूल होता है.

एक साल का हुआ शोध

डॉ सुमित पुरोहित के मुताबिक स्ट्रॉबेरी की उम्दा प्रजाति के लिए स्वीट चार्ली और कामा रोज को शोध कार्य के अंदर शामिल किया गया था. जो भी फूल नर्सरी में लगाए गए हैं उनमें स्ट्रॉबेरी के छोटे-छोटे फूल अब लदने लगे है. नर्सरी में लगे पौधे में एक दिन में एक पॉली बैग में लगे हुए पौधे को पांच से दस मि.ली लीटर पानी की जरूरत होती है. इसके सहारे पहाड़ों के लिए खेती सबसे ज्यादा फायदेमंद होगी.

English Summary: paddy tree will help cultivate strawberries
Published on: 14 March 2019, 05:32 PM IST

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