उत्तर प्रदेश में खरीफ सीजन की शुरुआत के साथ ही धान की रोपाई का कार्य जोर पकड़ चुका है. इस बार किसान पारंपरिक तरीकों को छोड़कर आधुनिक तकनीक और कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली वैरायटीज़ को अपना रहे हैं. खासकर धान की 1692 वैरायटी और सीधी बुवाई तकनीक (DSR) किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है. इससे किसानों को न केवल अच्छी पैदावार मिल रही है, बल्कि लागत में भी बचत हो रही है.
धान की उन्नत किस्में
उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के अनुसार, राज्य के अधिकतर किसान धान की खेती करते हैं और इसके लिए वे कई प्रकार की बीज वैरायटीज़ का इस्तेमाल करते हैं. जिनमें मुख्य रूप से 1692, 1509, 1985, 1847, 1718, 120, सुगंध-5, 1781 आदि प्रजातियां शामिल हैं.
- 1692 प्रजाति की सबसे खास बात यह है कि यह सिर्फ 90 दिनों में तैयार हो जाती है.
- वहीं सुगंध-5 और 1781 जैसी खुशबूदार किस्में 120 दिनों में पकती हैं.
- 1509 प्रजाति उन किसानों की पसंद होती है, जो धान के बाद आलू की फसल लगाना चाहते हैं.
इन सब में 1692 प्रजाति सबसे ज्यादा डिमांड में है क्योंकि इसमें जल्दी उत्पादन, बेहतर बाजार मूल्य और अच्छी गुणवत्ता का संतुलन मिलता है.
धान की सीधी बुवाई
उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों को परंपरागत रोपाई के स्थान पर सीधी बुवाई तकनीक (DSR) अपनाने की सलाह दी है. यह तकनीक खासतौर पर उन इलाकों में फायदेमंद है जहां पानी की कमी होती है.
DSR तकनीक के प्रमुख फायदे:
- कम पानी की आवश्यकता (25% से 30% तक की बचत)
- कम मेहनत और लागत
- मृदा जैव कार्बन में 9% की वृद्धि
- फसल जल्दी पकती है (7 से 10 दिन पहले)
- उत्पादन में 10% से 15% तक की बढ़ोतरी
- खेती की लागत में 3500 से 4000 रुपये की बचत
धान की सीधी बुवाई की विधियां
- सूखे खेत में सीधी बुवाई - यह विधि उन क्षेत्रों के लिए है जहां बारिश पर निर्भरता होती है. मशीन से सीधे बीज बोए जाते हैं. लेकिन पुष्पक्रम और दाना भरने के समय पानी उपलब्ध होना जरूरी है.
- तर-वतर बुवाई - सिंचित क्षेत्रों के लिए यह विधि उपयुक्त है. इसमें खेत की हल्की सिंचाई करके बीज बोए जाते हैं. पहली सिंचाई बुवाई के 15 से 21 दिन बाद की जाती है, जिससे खरपतवार नियंत्रण और पानी की बचत दोनों संभव हो पाते हैं.
लेजर लैंड लेवलर से समतलीकरण जरूरी
सीधी बुवाई के लिए खेत का समतल होना बेहद जरूरी है. इसके लिए लेजर लैंड लेवलर का उपयोग किया जाता है, जिससे खेत में पानी का समान वितरण होता है और फसल की पैदावार में सुधार होता है.
- धान की बुवाई का आदर्श समय - 20 मई से 30 जून के बीच को सबसे उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि इस दौरान मानसून की अच्छी शुरुआत होती है.
- बोआई के लिए सुझाव - किसानों को सलाह दी जाती है कि वे प्रमाणित और उपचारित बीजों का ही इस्तेमाल करें, जिससे बीमारी की आशंका कम हो और उत्पादन ज्यादा मिले.