हमारे देश में आलू का उत्पादन मुख्यतः सब्जी के लिए होता है. इसके अलावा डॉइस, रवा, आटा, फलेक, चिप्स, फ्रेंच फ्राई, बिस्कुट आदि बनाने में उपयोग किया जाता है. आलू पौष्टिक तत्वों का खजाना है.
इसमें सबसे प्रमुख स्टार्क, जैविक प्रोटीन, सोडा, पोटाश और विटामिन ए और डी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं. यह मानव शरीर के लिए बहुत आवश्यक होते हैं. आलू की सम्भावनाओं को देखते हुए जैविक खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है. इसकी जैविक खेती से बंपर पैदावार पाने के लिए कुछ मुख्य बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना पड़ता है. आज हम अपने इस लेख में आलू की खेती (Potato cultivation) से अधिकतम पैदावार किस तरह प्राप्त कर सकते हैं, इस तकनीक का उल्लेख करने वाले हैं.
आलू की जैविक खेती के लिए जलवायु (Climate for organic farming of potatoes)
जहां सर्दी के मौसम में पाले का प्रभाव नहीं होता है, वहां आलू की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है. इसके कंदों का निर्माण 20 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर सबसे अधिक होता है. जैसे तापमान में वृद्धि होती है, वैसे ही कंदों का निर्माण में भी कम होने लगता है. देश के विभिन्न भागों में उचित जलवायु के अनुसार किसी न किसी भाग में पूरे साल आलू की खेती की जाती है.
आलू की जैविक खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Land suitable for organic cultivation of potato)
इसकी खेती क्षारीय भूमि के अलावा सभी प्रकार की भूमि में हो सकती है, लेकिन जीवांशयुक्त रेतीली दोमट या दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है. इसके अलावा भूमि में उचित जल निकास का प्रबंध आवश्यक है.
आलू की उन्नत किस्में (Improved varieties of potatoes)
अगेती किस्में- कुफरी ख्याती, कुफरी सूर्या, कुफऱी कुफरी पुखराज, कुफरी अशोका, चंदरमुखी, कुफरी अलंकार, जवाहर किस्मों के पकने की अवधि 80 से 100 दिन की होती है.
मध्यम समय वाली किस्में- कुफरी सतलुज, कुफरी चिप्सोना- 1, कुफरी बादशाह, कुफरी बहार ,कुफरी लालिमा, कुफरी चिप्सोना- 3, कुफरी ज्योति, कुफरी चिप्सोना- 4, कुफरी सदाबहार किस्मों के पकने की अवधि 90 से 110 दिन की होती है.
देर से पकने वाली किस्में- कुफरी सिंधुरी, कुफरी फ़्राईसोना और कुफरी बादशाह किस्मों के पकने की अवधि 110 से 120 दिन की होती है.
संकर किस्में- कुफरी सतुलज (जे आई 5857), कुफरी जवाहर (जे एच- 222), 4486- ई, जे एफ- 5106 आदि.
विदेशी किस्में- अपटूडेट, क्रेग्स डिफाइन्स और प्रेसिडेंट आदि है.
आलू के खेत की तैयारी (Potato field preparation)
आलू के कंद मिट्टी के अन्दर तैयार होते हैं, इसलिए सबसे पहले खेती की मिट्टी को भुरभुरा बना लें. खेती की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. इसके बाद दूसरी और तीसरी जुताई देसी हल या हेरों से करनी चाहिए. अगर खेत में ढेले हैं, तो पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभूरा बना लें. ध्यान रहे कि बुवाई के समय मिट्टी में नमी रहे.
फसल-चक्र
आलू जल्द तैयार होने वाली फसल है. इसकी कुछ किस्में 70 से 90 दिन में पक जाती हैं, इसलिए फसल विविधिकरण के लिए यह एक आदर्श नकदी फसल है. किसान मक्का-आलू-गेहूं, मक्का-आलू-मक्का, भिन्डी-आलू-प्याज, लोबिया आलू-भिन्डी आदि फसल प्रणाली को अपना सकते हैं.
आलू के खेत की बुआई का समय (Sowing time of potato field)
आलू की जैविक खेती के लिए बुवाई का समय किस्म और जलवायु पर निर्भर करता है. सालभर में आलू की 3 फसलें प्राप्त की जा सकती है.
आलू की अगेती फसल- यह फसल सितम्बर के तीसरे सप्ताह से अक्टूबर पहले सप्ताह तक प्राप्त की जा सकती है.
मुख्य फसल- यह फसल अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक प्राप्त की जा सकती है.
बसंतकालीन फसल- यह फसल 25 दिसम्बर से 10 जनवरी तक प्राप्त की जा सकती है.
बीज की मात्रा
आलू की खेती में बीज का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि इसके उत्पादन में कुल लागत का 40 से 50 प्रतिशत खर्च बीज पर आता हैं. बता दें कि आलू के बीज की मात्रा किस्म, आकार, बोने की दूरी और भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है.
बीज उपचार
आलू की जैविक खेती के लिए बीज जनित और मृदा जनित रोगों से बचाव के लिए बीज को जीवामृत और ट्राइकोडर्मा विरीडी 50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के घोल के हिसाब से 15 से 20 मिनट के लिए भिगोकर रख दें. इसके साथ ही बुवाई से पहले छांव में सूखा लें. मगर ध्यान दें कि ट्राइकोडर्मा क्षारीय मृदाओं के लिए उपयोगी नहीं होते हैं.
आलू की बुवाई की विधियां (Methods of sowing potatoes)
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समतल खेत में आलू बोना
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समतल खेत में आलू बोकर मिटटी चढ़ाना
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मेंड़ों पर आलू की बुवाई
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पोटैटो प्लांटर से बुवाई
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दोहरा कूंड़ विधि
आलू की सिंचाई प्रबंधन (Potato Irrigation Management)
आलू एक उथली जड़ वाली फसल है, इसलिए इसकी खेती में बार-बार सिंचाई करनी पड़ती है. सिंचाई की संख्या किस्म और मौसम पर निर्भर करता है. इसकी खेती में बुवाई के 3 से 5 दिन बाद पहली सिंचाई हल्की करनी चाहिए. ध्यान रहे कि खेत की मिटटी हमेशा नम रहे. इसके अलावा जलवायु और किस्म के अनुसार आलू में 5 से 10 सिंचाइयां देने की आवश्यकता होती है.
खरपतवार नियंत्रण
आलू की जैविक फसल के साथ उगे खरपतवार को नष्ट करने के लिए फसल में एक बार ही निंदाई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है. इसे बुवाई के 20 से 30 दिन बाद कर देना चाहिए. मगर ध्यान दें कि भूमि के भीतर के तने बाहर न आएं.
प्रमुख कीट
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माहूं
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आलू का पतंगा
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कटुआ
कीटों का प्रबंधन
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गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें.
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आलू की शीघ्र समय से बुवाई करें.
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उचित जल प्रबंधन की व्यवस्था रखें.
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आलू में येलो स्टीकी ट्रेप का प्रयोग कर सकते हैं.
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माहूं के लिए आलू की जैविक खेती में नीम युक्त कीटनाशकों का प्रयोग करें.
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आलू की जैविक खेती में जीवामृत के 4 से 5 छिडकाव कर दें.
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खेतो में प्रकाश प्रपंच का प्रयोग कर सकते हैं.
प्रमुख रोग
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अगेती झुलसा
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पछेती झुलसा
रोगों का प्रबंधन
इसके लिए सम्भावित समय से पहले हर 15 दिन के अंतराल पर नीम या गौ मूत्र आधारित कीटनाशक का छिड़काव करते रहें.
फसल की खुदाई
फसल की खुदाई किस्म और उगाये जाने के उद्देश्य पर निर्भर करती है. फसल की खुदाई करते समय ध्यान दें कि कंद पर किसी भी तरह की खरोच न आए, नहीं तो उनके जल्द सड़ने का खतरा बना रहता है. आलू के कंदो की खुदाई के लिए पोटेटो डिगर या मूंगफली हारवेस्टर का उपयोग कर सकते हैं.
आलू की पैदावार (Potato production)
आलू की जैविक खेती की पैदावार जलवायु, मिट्टी, खाद का उपयोग, किस्म और फसल की देखभाल आदि पर निर्भर करती है. सामान्य रूप से आलू की अगेती किस्मों से औसतन 250 से 400 क्विंटल पैदावार मिल जाती है. इसके अलावा पिछेती किस्मों से 300 से 600 क्विंटल पैदावार प्राप्त की जा सकती है.