जलवायु परिवर्तन के इस युग में उत्पादन प्रदूषित होता जा रहा है, जिसके कारण एक तरफ बीमारियां बढ़ रही है, तो वहीं खेतों की सेहत भी खराब होती जा रही है. शायद यही कारण है कि इन दिनों प्राकृतिक संसाधनों वाली खेती को सरकार बढ़ावा दे रही है.
आम तौर पर प्राकृतिक खेती को लोग जैविक खेती या सतत खेती के नाम से जानते हैं. लेकिन इस बात को समझना जरूरी है कि इन दोनो में ज़मीन आसमान का फर्क है. जी हां, एक से मालूम होने वाले ये दोनों शब्द एक दूसरे के पूरक नहीं है. इस लेख के माध्यम से हम यही समझेंगें कि जैविक और सतत खेती में क्या अंतर है और किसानों को अधिक लाभ किस खेती से है.
सतत खेती
सतत प्रकिया के तहत खेती को इस तरह से किया जाता है, जिससे कई लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके. इन लक्ष्यों में आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण के लक्ष्य अहम हैं. आर्थिक पहलू के अंतर्गत टिकाऊ खेती से मुनाफे की तरफ जोर दिया जाता है. सामाजिक पहलू के अंतर्गत इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि उत्पादन से सभी को लाभ होना चाहिए (सेवन करने वाले को अच्छी सेहत मिले, व्यापारियों को अच्छा मुनाफा हो, किसान को मेहनत का फल मिले आदि.)
इसी तरह पर्यावरण का ख्याल रखते हुए खेती के उन तरीकों पर जोर दिया जाता है, जिससे मिट्टी की सेहत बनी रहे. उदाहरण- जल का अपव्यय न हो और प्रदूषण कम से कम हो.
जैविक खेती
वहीं दूसरी तरफ जैविक खेती आम तौर पर कृषि के उत्पादन पहलू से संबंधित होती है. इस विधि में प्राकृतिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों को बढ़ावा दिया जाता है, एवं इसका मुख्य लक्ष्य भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखना होता है.
किसानों के लिए क्या है फायदेमंद
अलग-अलग विद्वानों की अलग-अलग राय है. किसी के मुताबिक अच्छे मुनाफे के लिए छोटा किसान सभी कारकों का ख्याल नहीं रख सकता. इसलिए उसे केवल जैविक खेती की तरफ ध्यान देना चाहिए, जबकि अधिकतर विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे समय तक टिकाऊ खेती के लिए सतत प्रक्रिया को अपनाना चाहिए.
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