जैविक खेती विविधिकृत खेती की एक ऐसी विशेष पद्धति है जिसमें अप्राकृतिक संश्लेषित तथा प्रदूषणकारी पदार्थो या आदानों का उपयोग निषेध है. यह सवफार्म उत्पादित आदानों तथा प्राकृतिक जैविक प्रक्रियाओं के सम्पूर्ण उपयोग पर आधारित है. आज वर्तमान में जैविक खेती हमारी फसलों से ही प्राप्त पदार्थो से की जाती है. जिसमे हम कृत्रिम खाद, रासायनिक उर्वरको, कीटनाशी व फफूंदनाशी रसायनों आदि का प्रयोग नहीं करते हैं. जैविक खेती मुख्यता फसल चक्र, फसल अवशेष, जीवांश खाद, दलहनी फसल, हरी खाद, खनिज पदार्थों एवं जैविक कीट व व्याधि नियंत्रण पर निर्भर करती है जो मृदा की उत्पादकता बनाये रखते हैं तथा जीवांश खादों व अन्य प्राकृतिक पोषक पदार्थो द्वारा पौधों को पोषक तत्वों की आपूर्ति की जाती है. फसलों में कीटों एवं व्याधियो का नियंत्रण जैविक उपायों से किया जाता है. वर्तमान में जैविक खेती में मृदा एवं जल का प्रबंधन किया जा रहा है. अर्थात प्राय: देखा जा रहा है कि प्रकृति द्वारा प्रदत अनमोल सम्पदा को भविष्य की धरोहर के रूप में संरक्षित किया जा सके.
उद्देश्य: जैविक खेती के मुख्य प्रकार:-
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जैविक खेती में फार्म को एक जीवित संगठन के रूप में ऐसा माना जा रहा है कि जैसे:- खेत, पशु, उद्यान, मित्र कीट, जीवाणु, औषधीय फसलें, मनुष्य आदि इसके महत्वपूर्ण अवयव है. आज वर्तमान में इन सभी घटको के बीच संतुलन बना हुआ है अर्थात एक घटक का अपशिष्ट दूसरे घटक के लिए आदान के रूप में काम में आ रहा है.
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वर्तमान में जैविक खेती लम्बे समय तक मृदा में जैविक स्तर बनाये रखती है जिससे की मृदा काफी मात्रा में उपजाऊ बनी रहती है.
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जैविक खेती पद्धति के तीन मुख्य उद्देश्य जैसे: पर्यावरण सुरक्षा, आर्थिक समृद्धि और सामाजिक आर्थिक क्षमता का संयोजन करती है.
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जैविक उत्पाद के व्यवसायीकरण के लिए जैविक होने की मान्यता होना अति आवश्यक है जो जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण के पश्चात मिलती है
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जैविक खेती के बढ़ते हुए प्रतिस्पर्धा के युग में कृषि उपज को लागत प्रभावी बनाने की आवश्यकता है. इसलिए कम कीमत वाले संसाधनों के उपयोग से टिकाऊ उत्पादन की आवश्यकता है अर्थात जिससे कृषको को अधिक लाभ हो रहा हो.
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अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गुणवत्ता युक्त जैविक कृषि उत्पादों की मांग बढ़ रही है. अतः प्राय देखा गया है की जैविक कृषि उत्पादों के निर्यात से कृषकों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा रहा है.
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जनता में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ ही हमारे देश में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ रही है.
भारत में जैविक खेती का भविष्य:
भारत में जैविक खेती प्राचीन काल से चली आ रही है. वर्तमान में सन 1993 में कृषि मंत्रालय द्वारा गठित तकनिकी समिति ने पहली बार सैद्धांतिक रूप से यह अनुमोदित किया की भारत में रासायनिक पदार्थो की खेती में जैविक पदार्थो के अधिक उपयोग को हतोत्साहित करना चाहिए. अप्रेल 2000 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जैविक कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी है. भारत में 1 जुलाई 2001 से ऑर्गनिक प्रोडक्ट के निर्यात के लिए नए नियमों को लागू किया है. वर्तमान में ऑर्गनिक प्रोडक्ट प्रमाणीकरण के लिए चार संस्थओं स्पाइस बोर्ड, टी बोर्ड, कॉफ़ी बोर्ड एवं एपीडा को अधिकृत एजेंसी बनाया गया है. दसंवी पंचवर्षीय योजना के तहत भारत सरकार ने जैविक खेती को राष्ट्रीय प्राथमिकता क्षेत्र घोषित किया है. भारत में निम्न कारणों से जैविक खेती का भविष्य उज्ज्वल है.
1. संसाधनों की उपलब्धता: कृषको व व्यापारियों का जैविक खेती की तरफ लगाव तथा देश की विविध जलवायु, अपार प्राकृतिक सम्पदा, समृद्ध पशुधन, उपभोक्ता बाजार, रासायनिक उर्वरकों के प्रति इकाई क्षेत्र में कम लागत के कारण भारत में जैविक खेती का भविष्य उज्जवल माना गया है.
2. प्रति इकाई क्षेत्र में कम उर्वरक का उपयोग: भारत में अधिकतर छोटे और मध्यम श्रेणी के कृषको के खेतों पर प्रति इकाई क्षेत्रों में रासायनिक उर्वरको एवं पदार्थो की लागत को बहुत कम या नगण्य माना गया है. अथार्त भारत में देश के पहाड़ी व उत्तर-पूर्वी जंहा उपयोग 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष है. इसलिए ऐसे क्षेत्रों में कृषकों के खेतों पर जैविक खेती से अधिक लाभ लिया जा रहा है. वर्तमान में ऐसी जैविक खेती की फसलों के साथ पशुपालन, वानिकी व चारगाह प्रबंधन में सामंजस्य से जीवन यापन करा है इसलिए ऐसे किसान जैविक खेती के घटको को अपनाकर अच्छा उत्पादन व लाभ ले रहे हैं.
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3. कार्बनिक अवशिष्टों की उपलब्धता: भारत में अधिक मात्रा में प्रति वर्ष कार्बनिक अवशिष्टों का उत्पादन हो रहा है. देश में प्रति वर्ष उपलब्ध 280 मिलियन टन गोबर, 273 मिलियन टन फसल अवशेष, 6351 मिलियन टन कूड़ा-करकट तथा 22 मिलियन हेक्टेयर में उगाई जानी वाली फसलों का उचित उपयोग कर जैविक माध्यम से फसलों की पोषक तत्वों की मांग पूरी की जा रही है.
4. निर्यात की संभावना: भारत में विविध जलवायु के कारण गुणवत्ता युक्त फसलें जैसे- मसाले, औषधीय एवं सुगंधित फसलें, बासमती व अन्य चावल, फल, सब्जियां, चाय, कॉफी, ड्यूरम (कठिया) गेंहू आदि कि जैविक खेती अपनाकर तथा उनका निर्यात कर विदेशी मुद्रा अर्जित की जा रही है.
5. प्रमाणीकरण संस्थाओं की उपलब्धता: वर्तमान में जैविक खेती की मुख्य समस्या है कि जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण. राजस्थान में भी राजस्थान बीज प्रमाणीकरण संस्था को जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण हेतु अधिकृत कर उसका राजस्थान राज्य जैविक उत्पादन एवं बीज प्रमाणीकरण संस्था किया जा रहा है.