अब बिना मिट्टी के भी टमाटर की पैदावार की जाएगी जी हां, यह बात आपको सुनने में थोड़ी सी अजीब लगे लेकिन यह एकदम सच है. उत्तर प्रदेश के कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी कृषि विश्वविद्यालय ने पॉली हाउस में यह करके दिखाया है.यहां के वैज्ञानिकों ने टमाटर की बेहतर पैदावार के लिए अब मिट्टी की जरूरत को ही खत्म कर दिया है. उन्होंने कोकोपिट यानि किलेस मीडिया के मिक्चर में इसके उत्पादन को करके दिखाया है. इसमें उर्वरक की भी ज्यादा जरूरत नहीं होती है. साथ ही टपकन सिंचाई के सहारे इसकी खेती होगी.
नई विधि क्या है
नई विधि की बात करें तो इसके सहारे टमाटर की पैदावर काफी बेहतर हो जाती है.सीएसए के कृषि वैज्ञानिक और संयुक्त शोध निदेशक ने अनुसंधान में पाया है कि साधारण पौधे में चार से पांच किलो टमाटर मौजूद होता है. जबकि इस तकनीक के सहारे यह उत्पादन 8 से 10 किलो ही होता है जो कि काफी ज्यादा होगा. इस टमाटर उत्पादन के सफल प्रयोग के बाद अब यह तकनीक और इसके बीज किसानों तक पहुंचाएंगे ताकि वह बेहतर उत्पादन को प्राप्त कर सकें. कोकोपीट विधि से पार्थिनोकार्पिक टमाटर की खेती की तकनीक किसानों को सीखाने के लिए सीएसए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी लागू करेगा.
मिट्टी बन सकती विकल्प
टमाटर की पैदावार उन स्थानों पर की जा सकती है, जहां मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर नहीं है. डॉ सिंह कहते है कि पॉली हाउस तकनीक से किसी भी मौसम में टमाटर की खेती की जा सकती है. इसकी पैदावार या गुणवत्ता पर बदलते मौसम रोग और विषाणुओं का कोई भी असर नहीं पड़ेगा. इसके पॉली हाउस में कोकोपीट तकनीक से क्यारी में तैयार की जाने वाली टमाटर की फसल रोग मुक्त होती है.
कोकोपीट ऐसे बनता है
नारियल के बाहरी हिस्से में इस तरह के तत्व पाए जाते है जो कि पौधों के विकास के लिए लाभदायक है. सबसे खास यह है कि ऐसे तत्व मिट्टी में होते है. नारियल की भूसी और खाद से मिट्टी की तरह से एक मिश्रण को तैयार कर लिया जाता है. इससे तैयार कोकोपीट के मिक्चर से आसानी से खेती की जा सकती है. यह मिश्रण कोकोपीट, वर्मीकुलट और परलाइट क्रमशः के अनुपात में होता है. इससे की जाने वाली खेती में नाइट्रोजन, फास्फेरस और पोटाश का अल्प मात्रा में प्रयोग किया जाता है. इसमें खेती के समय कार्बेन्डाजिम फफूंदनाशक होते है जिससे रोग नहीं लगते है.