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Updated on: 1 September, 2020 2:47 PM IST
Wheat

किसानों को फसलों की खेती से अच्छा और अधिक उत्पादन तभी प्राप्त होता है, जब वह उन्न्त किस्मों की बुवाई करते हैं. खेतीबाड़ी में उन्नत किस्मों का काफी महत्व है. इससे किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद मिलती है, इसलिए कृषि वैज्ञानिक भी किस्मों को लेकर नए-नए शोध करते रहते हैं. हाल ही में, कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं और जौ की नई किस्में विकसित की हैं, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी.

यह किस्में भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल और चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा विकसित की गई हैं. संस्थान का कहना है कि हमारी कोशिश रहती है कि किसानों को ज्यादा उत्पादन देने वाली नई किस्में मिलती रहे. इन नई किस्मों को 24-25 अगस्त को हुए ग्लोबल व्हीट इंप्रूवमेंट सम्मिट में मंजूरी मिली है. ये किस्में ज्यादा उत्पादन देने वाली हैं, जिन्हें देश के अलग-अलग क्षेत्रों के हिसाब से विकसित किया गया है.

11 गेहूं और 1 जौ की किस्म हुई विकसित (11 wheat and 1 barley variety developed)

नई किस्मों में 11 गेहूं और 1 जौ की किस्म शामिल है. ये सारी किस्में ज्यादा उत्पादन देने वाली हैं. इसके साथ ही रोग प्रतिरोधी किस्में हैं. इनमें कई तरह की बीमारियां लगने का खतरा नहीं होगा. इनमें 3 किस्में ऐसी हैं, जो प्रति हेक्टेयर 75 क्विंटल से ज्यादा उत्पादन देंगी.

जौ की नई किस्म (New barley variety)

पहले भारत में उगने वाले जौ से बियर नहीं बनती थी, लेकिन ये नई किस्म बियर बनाने के लिए बेहतरीन किस्म है. इस किस्म से किसानों को अच्छा मुनाफा मिल पाएगा, क्योंकि बाजार में किसानों को इसका अच्छा दाम मिलेगा.

गेहूं की नई किस्में (New varieties of wheat)

देश में लगभग 29.8 मिलियन हेक्टेयर में गेहूं की खेती की जाती है. साल 2006-07 में गेहूं का उत्पादन 75.81 मिलियन मिट्रिक टन था, जबकि साल 2011-12 में यह बढ़कर 94.88 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है. गेहूं उत्पादक में हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश को प्रमुख राज्य माना जाता है. गेहूं की नई किस्मों में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के जम्मू और कठुआ जिले, हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले और उत्तराखंड के तराई क्षेत्र के लिए विकसित की गई हैं.

गेहूं की नई किस्में की विशेषताएं (Features of new varieties of wheat)

  • पहली किस्म एचडी 3298 (HD 3298) है, जो कि सिंचित और देरी से बोई जाने वाली किस्म है.

  • इसके अलावा डीडब्ल्यू 187( DBW 187), डीडब्ल्यू 3030 ( DBW 303) और डब्ल्यूएच 1270 (WH 1270) किस्म है. ये तीनों किस्में जल्दी बोई जाने वाली और सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित की गईं हैं.

  • पू्र्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल के लिए एचडी 3293 (HD3293) किस्म विकसित की गई है, यह सिंचित क्षेत्रों में समय पर बोई जाने वाली किस्म है.

  • मध्य क्षेत्र जैसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कोटा और राजस्थान के उदयपुर डिविजन और उत्तर प्रदेश के झांसी मंडल के लिए सीजी1029 (CG 1029) और एचआई1634 (HI 1634) किस्म विकसित की गई है. यह सिंचित क्षेत्रों में देर से बोई जाने वाली किस्म है.

  • प्रायद्वीपीय क्षेत्रों जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गोवा और तमिलनाडू के लिए डीडीडब्ल्यू 48 (DDW 48) किस्म विकसित की गई है, जो कि सिंचित और समय पर बोई जाने वाली किस्म है.

  • इसके अलावा एचआई 1633 (HI 1633) किस्म है, जो कि सिंचित और देर से बोई जाने वाली किस्म है.

  • इसके साथ एनआईडीडब्ल्यू 1149 ( NIDW 1149) विकसित की गई है.

English Summary: New varieties of wheat and barley have been developed for farmers
Published on: 01 September 2020, 02:55 PM IST

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