Success Story: चायवाला से उद्यमी बने अजय स्वामी, मासिक आमदनी 1.5 लाख रुपये तक, पढ़ें सफलता की कहानी ट्रैक्टर खरीदने से पहले किसान इन बातों का रखें ध्यान, नहीं उठाना पड़ेगा नुकसान! ICAR ने विकसित की पूसा गोल्डन चेरी टमाटर-2 की किस्म, 100 क्विंटल तक मिलेगी पैदावार IFFCO नैनो जिंक और नैनो कॉपर को भी केंद्र की मंजूरी, तीन साल के लिए किया अधिसूचित एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! सबसे अधिक दूध देने वाली गाय की नस्ल, जानें पहचान और खासियत
Updated on: 21 January, 2019 5:42 PM IST

पहाड़ों पर जीवन को जीना काफी कठिन होता है। यहां पर रहने वाले ज्यादातर लोगों की रोजी-रोटी पर्यटन पर निर्भर करती है। चूंकि ये इलाका ऐसा है कि यहां पर खेती बाड़ी मौसम के भरोसे होती है इसीलिए केवल कृषि के भरोसे रहकर पहाड़ों पर जीवनयापन करना बहुत ही मुश्किल है। लेकिन उत्तराखंड में एक ऐसा इलाका है जो अर्थव्यवस्था की नई कहानी लिख रहा है। चमोली जिले की महिलाओं ने राज्य सरकार की मदद का इंतजार नहीं किया है बल्कि हिमालय एक्शन रिसर्च सेंटर के सहयोग से कुछ ऐसा किया कि इससे न केवल महिलाओं की आमदनी बढ़ी है बल्कि वह एक उम्मीद की किरण भी दिखा रही है।

चमोली-गढ़वाल के कर्णप्रयाग के पास अलकनंदा घाटी की महिलाओं ने स्वरोजगार की नई मिसाल पेश की है। इन गांवों के लिए हार्क (हिमालय एक्शन रिसर्च सेंटर) 2006 में वरदान बनकर आया है। हार्क ने अलकनंदा घाटी के दर्जनभर गांवों की महिलाओं को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया है। उन्होंने बाकी महिलाओं को सब्जी, फल और मसाले उत्पादन की ट्रेनिंग दी है। धीरे-धीरे महिलाओं ने अपने समूह तैयार किए. लेकिन, बंदर और सूअर खेतों में फसल को तहस-नहस कर देते थे. ऐसे में हार्क ने स्थानीय लोगों से राय-मशविरा कर तुलसी उत्पादन पर जोर देना शुरु कर दिया. तुलसी का उत्पादन शुरु करने के बाद उसे देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक में भेजा जा रहा है और केवल तुलसी चाय ही लाखों रुपये की बिक रही है।

बहुउद्देशीय खेती में हो रहें हैं कामयाब

पर्वतीय इलाकों में कई महिला सहायता समूह कार्य करते है, लेकिन कई बार मेहनत करने के बाद भी यह बाजार को उपलब्ध नही हो पाते है। इसके पीछे सबसे बड़ा बड़ा कारण स्वंय सहायता समूह का अलग-अलग होना है। अप्रैल 2009 में हार्क के सहयोग से महिलाओं को कई समूहों को कोऑपरेटिव सोसाइटी में बदल दिया गया है। कर्णप्रयाग के पास कालेश्वर गांव में सोसाइटी का प्लांट तैयार किया गया है। हार्क की मदद से फूड प्रोसेसिंग की कई मशीनें भी लगाई गई है और फिर 80 महिलाओं ने माल्टा, बुराश, बेल, आंवला, जैम, चटनी समेत कई स्थानीय उत्पादों को शुरू कर दिया है। कालेश्वर गांवों से शुरू हुआ महिलाओं का ये छोटा सा समूह पूरे चमेली-गढ़भाल में आसानी से फैल चुका है इसमें दो हजार से अधिक महिलाएं जुड़ चुकी है।

तुलसी का उत्पादन

अलकनंदा घाटी में तेजी से तुलसी उत्पादन का कार्य तेजी से फैल रहा है। सका बड़ा कारण यह है कि जानवर तुलसी की फसल को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचा सकते है। साथ ही इसके उत्पादन के लिए ज्यादा पानी की भी आवश्यकता नहीं होती है। दूसरी तुलसी की सबसे अच्छी बात यह है कि एक बार इसे लगाने पर तुलसी की 2-3 बार फसल दुबारा से ली जा सकती है। तुलसी चाय स्वास्थय के लिए काफी लाभदायक है। महिलाओं ने तुलसी चाय के तीन ब्रांड को बाजार में उतारा है इस चाय ने ना केवल देश बल्कि स्वीडन तक अपनी महक को बरकरार रखा हुआ है। तुसली चाय ही नहीं बल्कि अन्य उत्पाद भी धूम मचा रहे है। शुरूआत में मात्र 80 महिलाओं का समूह था जो कि 210 तक पहुंच गया आने वाले समय में इसे 1500 तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।

अभी तुलसी के तीन फ्लेवर

वर्तमान में तुलसी चाय के कुल तीन फ्लेवर को तैयार करने का कार्य किया जा रहा है। जिसमें तुलसी जिंजर टी, ग्रीन तुलसी टी, और तुलसी तेजपत्ता टी प्रमुख है। चमोली-गढ़वाल में 5 ब्लॉक जोशीमठ, पोखरी, घाट और कर्णप्रयाग गैंरसेण में तुलसी की खेती की जा रही है। यहां करीब 400 किसान एक ही नाली मे तुलसी की खेती को करने का कार्य कर रहे है। जैसे -जैसे उत्पादन बढ़ता जा रहा है वैसे ही इसका दूसरी ओर उत्पादन बढ़ाने का कार्य किया जा रहा है। समिति की कोषाध्यक्ष ऊषा सिमल्टी ने बताया कि तुलसी चाय के अभी केवल तीन फ्लेवर बाजार में उपलब्ध है जिनहें बढ़ाकर 15 तक किया जाएगा। चाय के अलावा तुसली कैप्सूल और तुलसी डीप टी भी तैयार की जाएगी।

पलायन रोकने और आमदनी बढ़ाने में मददगार

पहाड़ों पर रोजगार के स्थाई साधन नहीं होने के कारण यहां पलायन जारी रहता है. पर्वतीय इलाकों में अधिकतर कृषि बारिश पर निर्भर है. सिंचाई की कमी के कारण कई फसलें पर्वतीय इलाकों में खराब हो जाती हैं और जो बचती हैं उन्हें जंगली सूअर, बंदर बर्बाद कर देते हैं. कृषि विशेषज्ञ और हार्क संस्था के संस्थापक डां महेन्द्र कुंवर ने बताया कि तुलसी की खेती में इस तरह की कोई समस्या नहीं है. तुलसी यहां के किसानों के लिए रामबाण है. तुलसी ने यहां के लोगों को रोजगार का एक नया ज़रिया दिया है, जिससे पलायन पर काफी हद तक अंकुश लगा है।

English Summary: Mountains of Tulsi Mountains Exceed Abroad, Income Rises
Published on: 21 January 2019, 05:45 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now