कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के कारण कई लोग बेरोजगार हो चुके हैं. एक तरफ जहां कई लोगों के उद्योग, धंधे बंद हुए तो कई लोगों की नौकरियां चली गई. मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के युवाओं ने अपनी नौकरी चले जाने के बाद अपने गांव आकर मशरूम की खेती शुरू कर दी है. जिससे उन्हें अब अच्छी आमदानी होने के आसार है.
दरअसल, यहां के हड़बांसी गांव के युवाओं को आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र फार्मर फर्स्ट योजना के तहत मशरूम की खेती के जरिये अच्छी कमाई करने का प्रशिक्षण दे रहा है. इसके लिए गांव के 20 युवाओं को मशरूम की उन्नत खेती करने के लिए जोड़ा गया है. इन सभी युवाओं को केंद्र मशरूम की खेती करने की ट्रेनिंग के साथ मशरूम का बीज और अन्य जरूरत की चीजें पर उपलब्ध करा रहा है.
केंद्र के डॉ. रवि यादव का कहना है कि आजकल बड़े शहरों में मशरूम की अच्छी खासी मांग रहती है. यही वजह है कि गांव के युवा किसानों को मशरूम फार्मिंग का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. जहां मशरूम की खेती करने एक लिए जमीन की आवश्यकता नहीं पड़ती है, वहीं इससे नगद पैसा भी आ जाता हैं. इसके लिए हम युवा किसानों को फार्मर फर्स्ट योजना के जोड़ रहे हैं.
गांव के युवा किसान पवन शर्मा और रोहित शर्मा का कहना है कि हमने मशरूम की खेती की ट्रेनिंग ली है. ट्रेनिंग के बाद मशरूम की खेती शुरू कर दी है. उगाई गई मशरूम को हम मुरैना शहर की होटलों और रेस्टोरेंट को सप्लाई करेंगे.
कैसे होती है मशरूम की खेती (How is mushroom cultivation done?)
प्रशिक्षण पाने वाले सभी किसानों को केंद्र ने एक-एक किलो मशरूम के बीज प्रदान किए हैं. एक बड़ी थैली में भूसे और अन्य सामग्री को भरा जाता है. जिसमें मशरूम के बीज डाले जाते हैं, जो कुछ दिनों में अंकुरित होकर बाहर निकलते हैं. बीज बोने के 15 से 25 दिनों बाद मशरूम बेचने लायक हो जाती है. प्रत्येक थैले से 5 किलो मशरूम निकलती है, वहीं तीन बार इसकी तुड़ाई होती है. बाजार में ताज़ी मशरूम 80 से 100 रुपये किलो बिकती है. वहीं इसे सुखाकर बेचने पर 300 से 400 रूपए किलो के भाव मिलते है.