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Updated on: 6 July, 2021 4:37 PM IST
Sugarcane Farming

हमारे देश में गन्ना एक नगदी फसल है, जिसका उपयोग चीनी, गुड़ तथा शराब निर्माण में प्रमुखता से किया जाता है. दुनियाभर में गन्ना उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है. इसके बावजूद, गन्ना किसानों की आर्थिक दशा किसी से छुपी नहीं है.

जहां गन्ने की खेती में लागत लगातार बढ़ती जा रही है. वहीं किसानों को आज भी उनकी फसल के उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं. यही वजह हैं कि गन्ने या कोई दूसरी खेती हो किसी चुनौती से कम नहीं है. 

ऐसे में किसानों को आज गन्ने की खेती के लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करने की जरुरत है. तभी उनकी आर्थिक सेहत में सुधार हो पाएगा. तो आइए जानते हैं गन्ने की वैज्ञानिक खेती कैसे करें और लागत कम करने के लिए कौन-सी तकनीक अपनाएं?

गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी तथा जलवायु (Soil and climate suitable for sugarcane cultivation)

गन्ने की खेती के लिए गहरी दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. इसकी खेती के लिए ऐसे खेत का चुनाव करें, जिसमें जल निकासी की उत्तम व्यवस्था. दरअसल, गन्ने के पौधे अधिक जलभराव से खराब हो जाते हैं. वहीं सामान्य पीएचमान वाली मिट्टी में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है. वहीं शुष्क आर्द्र जलवायु गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त होती है. इसकी खेती के लिए न्यूनतम तापमान 20 से 27 डिग्री सेल्सियस तथा अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए. 

गन्ने की खेती के लिए प्रमुख उन्नत किस्में (Major Improved Varieties for Sugarcane Cultivation)

गन्ने की जल्दी पकने वाली किस्में- को-7314, को.सी.-671, को. 8209, को.जे.एन.86-141, को.जे.एन. 9823, को. 94008, को.लख. 14201 आदि हैं.

मध्यम देरी से पकने वाली किस्में- को. जवाहर 86-2087, को.7318, को.जे.86-600, को. जवाहर 94.141 प्रमुख है.

गन्ने की नई उन्नत किस्में  (New improved varieties of sugarcane)

1. को.लख. 14201- यह गन्ने की आधुनिक और उन्नत किस्म हैं जिससे 900-1000 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ली जा सकती है. इस किस्म के पौधे एकदम सीधे होते हैं जिस वजह से बंधाई की भी जरुरत नहीं पड़ती है. इससे निर्मित गुड़ सुनहरा और उत्तम गुणवत्ता का होता है. ऑर्गनिक फार्मिंग के लिए यह किस्में उत्तम हैं. वहीं इस नई किस्म में रेड रॉट रोग से लड़ने की जबरदस्त क्षमता है. इस किस्म की फसल को बेधक भी बेहद कम नुकसान पहुंचाते हैं.

2. को. शा. 14233- यह भी गन्ने की उन्नत किस्म हैं. जिसमें रेड रॉट रोग से लड़ने की जबरदस्त क्षमता है. इसके अलावा, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान ने उत्तर भारत के गन्ना किसानों के लिए गन्ने की चार उन्नत किस्में- को. 15023, को.एलके 14204, को.पी.बी.14185 व को.एस.ई.11453 ईजाद की है. वहीं दक्षिणी राज्यों के लिए संस्थान ने तीन किस्में एमएस 13081, को.13013 और वीएसआई 12121 विकसित की है.

गन्ने की खेती के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for sugarcane cultivation)

सबसे पहले प्लाऊ से खेत की एक गहरी जुताई करके खेत को 10 से 15 दिनों के लिए खुला छोड़ दें. इसके बाद खेत में पुरानी गोबर खाद डालकर कल्टीवेटर से एक जुताई कर दें. 

यदि खेत में नमी कम है तो पलेवा करके कुछ दिनों के लिए खेत को छोड़ देना चाहिए, जिससे विभिन्न खरपतवार उग आते हैं. इसके बाद रिजर चलाकर गन्ने की रोपाई के लिए खेत की तैयारी कर लें.

गन्ने की खेती के लिए समय और रोपाई का तरीका (Timing and planting method for sugarcane cultivation)

गन्ने की रोपाई साल में दो बार यानी शरदकाल व बसंतकाल में की जाती है. आमतौर पर शरदकाल की फसल के लिए रोपाई अक्टूबर से नवंबर महीने में तथा बसंतकाल की रोपाई फरवरी-मार्च के मध्य की जाती है. बसंत काल की तुलना में शरदकाल में इसकी पैदावार मिलती है.

गन्ने की रोपाई गन्ने की काटी हुई पंगेड़ियों या पोरियों के जरिए की जाती है.एक हेक्टेयर के लिए तकरीबन 60 से 70 क्विंटल गन्ने की जरूरत पड़ती है. रोपाई से पहले गन्ने के बीज को कार्बेन्डाजिम के घोल में अच्छी तरह से उपचारित कर लेना चाहिए.

गन्ना खेती के लिए रोपाई की प्रमुख विधियां (Major methods of transplanting for sugarcane cultivation)

गन्ने की खेती के लिए आज भी कई किसान परंपरागत तरीके से ही रोपाई करते हैं. ऐसे में गन्ना रोपाई की आधुनिक विधियां जानना जरूरी है.

रिज या फरो विधि (Ridge or furrow method)

इस विधि में गन्ने की रोपाई के लिए नालियों का निर्माण किया जाता है, जिससे जलभराव जैसी समस्या पैदा नहीं होती है. नाली से नाली की दूरी 2 से 2.5 फीट होती है. इन नालियों के दोनों ओर पोरियों की आड़ी तिरछी रोपाई की जाती है.वहीं इस विधि में अधिक बारिश होने पर जलनिकासी के लिए नालियों को खोल दिया जाता है तथा कम बारिश की स्थिति में नालियों को बंद करके पानी को रोक दिया जाता है.

समतल विधि (leveling method)

यह एक परंपरागत विधि है, जिसका प्रयोग आज भी किसान करते हैं. इस विधि में दो से ढाई फीट चौड़ाई की नालियों का निर्माण किया जाता है जिसमें गन्ने की तीन आंख वाली पोरियों एक दूसरे से सटाकर रोपी जाती है. 1 मीटर की दूरी में लगभग 12 पोरियां लगती है. इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना दिया जाता है.

ट्रेंच विधि (Trench method)

इस विधि में ट्रेंच का निर्माण किया जाता है. ट्रेंच से ट्रेंच की दूरी 4, ट्रेंच की चौड़ाई एक फीट तथा गहराई 25 सेंटीमीटर होना चाहिए. दरअसल, इस विधि में गन्ने की रोपाई गहराई पर होती है. बता दें कि हर विधि में गन्ने की रोपाई के बाद तकरीबन 5 से 7 सेंटीमीटर तक मिट्टी चढ़ाना चाहिए. इससे अधिक मिट्टी चढ़ाने पर अंकुरण प्रभावित होने की संभावना बढ़ जाती है. बता दें कि गन्ने की रोपाई पूर्व से पश्चिम दिशा की तरफ करनी चाहिए. इससे जलभराव की समस्या नहीं आती है वहीं हवा भी आसानी से संचारित होती है.

गन्ने की खेती के लिए मिट्टी चढ़ाना (Plowing soil for sugarcane cultivation)

गन्ने के पौधों के अच्छे विकास के लिए मिट्टी चढ़ाना अहम का काम है. साल में दो बार मिट्टी चढ़ाई जानी चाहिए. दरअसल, पौधें गिरे नहीं इसलिए रोपाई के तीन से चार महीने बाद जड़ों पर मिट्टी चढ़ाएं. वहीं इसके एक डेढ़ महीने बाद दोबारा मिट्टी चढ़ाने की प्रक्रिया करें. बता दें कि इससे पैदावार में भी इजाफा होता है.

गन्ने की खेती के लिए पत्तियों को बंधाव तथा बिछाव (Binding and laying of leaves for sugarcane cultivation)

रोपाई के बाद जब पौधा दो से ढाई मीटर का हो जाए तब उनकी बंधाई करना आवश्यक होता है. पौधों की बंधाई से बारिश में इनके गिरने की संभावना काफी कम हो जाती है. गन्ने की पहली बंधाई के डेढ़ महीने बाद ही दूसरी बंधाई करना चाहिए. ध्यान रहे बंधाई ऐसी हो कि पत्तियां एक दूसरे पर चढ़ी न हों इससे इनमें प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया रूक जाती है तथा जिससे पौधे का विकास रूक जाता है.

गन्ने की खेती के लिए सिंचाई (Irrigation for sugarcane)

वर्षाकाल के समय इनमें सिंचाई करने की जरूरत नहीं पड़ती है. वहीं सर्दियों के दिनों में 15 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए. जबकि गर्मी के दिनों में हर सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए.

गन्ने की खेती के लिए फसल कटाई व उत्पादन (Harvesting and production for sugarcane cultivation)

10 से 12 महीनों में गन्ने की अगेती फसल तैयार हो जाती है जबकि पछेती किस्में 14 महीनों में पक जाती है. कटाई के दौरान इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पौधों की कटाई जमीन के नजदीक से हो. जहां तक पैदावार की बात कि जाए तो उन्नत किस्मों की प्रति एकड़ 300 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है. 

अपनाएं इजरायल की आधुनिक तकनीक (Adopt Israel's modern technology)

इजरायल ने खेती की कई आधुनिक तकनीक तथा मशीनें ईजाद की है. गन्ना किसानों के लिए यहां की ऑटोमेशन मशीन बेहद उपयोगी हैं. इस तकनीक से अभी देश के कुछ प्रोग्रेसिव फार्मर अपना रहे हैं. यह ऑटोमेशन मशीन गन्ने की फसल की जरूरत के हिसाब से उसका प्रबंधन करती है. दरअसल, इस मशीन में यह सब फिट हो जाता है कि फसल को कितना पानी देना है, खाद व उर्वरक कितना, कब कहां देना है. वहीं इस मशीन से श्रम की भी बचत होती है. 5 लोगों का काम इस मशीन के जरिए दो लोग कर लेते हैं. इस तकनीक को अपनाकर किसान भाई प्रति एकड़ 80 से 85 टन गन्ने का उत्पादन कर सकते हैं. ऐसे में यह मशीन किसान भाइयों के बेहद उपयोगी है. इससे न सिर्फ खेती की लागत कम होगी बल्कि उत्पादन में भी इजाफा होगा. 

 

English Summary: modern method of cultivation of sugarcane, improved varieties and yield
Published on: 06 July 2021, 04:43 PM IST

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